कनिष्क विमान हादसा जिसने बदल दल हवाई उड़ानों की दुनिया!
23 जून 1985 का दिन हवाई उड़ानों की दुनिया का एक बेहद काला दिन था। इस दिन भारतीय एयरलाइंस, ‘एयर इंडिया’ की दो उड़ानों, उड़ान संख्या एआई-182 के बोइंग 747 ‘कनिष्क’ विमान तथा एआई-301 में बम विस्फोट होने से 331 लोग मारे गये थे। उड़ान संख्या एआई-182 कनिष्क विमान में धरती से 94000 मीटर ऊंचाई पर ऐसा खौफनाक विस्फोट हुआ था, जैसा उसके पहले कभी नहीं हुआ था। इस विस्फोट के चलते विमान में 22 चालक दल के सदस्यों सहित 329 लोगों के चीथड़े उड़ गये थे। जबकि दूसरे विमान यानी उड़ान संख्या एआई-301 में रखा गया बम, उड़ान के दौरान न फटकर उस समय फटा, जब टोक्यो के नोरिता हवाई अड्डे में खड़े इस विमान में सामान लोड किया जा रहा था। इस विस्फोट के चलते ग्राउंड क्रू के दो सदस्य मारे गये थे और कई घायल हुए थे तथा फिर यह विमान उड़ान नहीं भर पाया था।
लेकिन इन दो विस्फोटों के बजाय इस दिन को कनिष्क विमान हादसे के रूप में ज्यादा याद रखा जाता है; क्योंकि 9/11 को अमरीका में हुए आत्मघाती विमान हादसे के पहले तक यह दुनिया का सबसे बड़ा और क्रूर विमान हादसा था। हैरानी की बात यह है कि आज जो कनाडा, भारत को कानून का राज बनने की नसीहत दे रहा है, वह कनाडा लगभग 40 साल गुजर जाने के बाद भी अभी तक इस खौफनाक हादसे की जांच भी नहीं कर पाया। अभी कुछ हफ्ते ही इस विमान हादसे के एक आरोपी रिपुदमन सिंह मलिक के हत्यारे दो कनाडाई गैंगर्स्ट्स टैन्नर फॉक्स और जोस लोपेज ने स्वीकारा है कि उन्होंने उसे जुलाई 2022 में मौत के घाट उतार दिया था। बहरहाल हम लौटकर क्रू कनिष्क विमान हादसे की तरफ आते हैं, जिसके बाद समूची दुनिया के हवाई उड़ानों के नियम कायदे बदल दिए गए।
दरअसल 23 जून, 1985 को मांट्रियल के मिराबेल एयरपोर्ट से उड़ान भरकर ये दोनों हवाई जहाज बरास्ता वैंकूवर नई दिल्ली पहुंचने वाले थे। एक उड़ान को वैंकूवर के बाद टोक्यो के नोरिता एयरपोर्ट में रूकना था और दूसरे को लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर। एआई-185 कनिष्क विमान को वैंकूवर के बाद हीथ्रो एयरपोर्ट में उतरना था, लेकिन जब यह लंदन से करीब 45 मिनट की दूरी पर था, तभी ब्रिटेन के समय के मुताबिक सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर यह विमान अचानक रडार से गायब हो गया और फिर हवा में परखच्चे उड़ने के बाद इसका मलबा आयरलैंड के तटवर्ती इलाके पर मिला। इस विमान में भारत का 1 यात्री और 21 चालक दल के सदस्या यानी कुल 22 लोग सवार थे, जबकि भारतीय मूल के 270 कनाडाई नागरिक, 27 नागरिक ब्रिटेन के, 3 रूस के, 2 ब्राजील के, 2 अमरीका के, 2 स्पेन के, 1 फिनलैंड का और 1 अर्जेंटीना का भी विमान कर्मी इसमें सवार था। इस तरह विमान में 307 यात्री, 22 विमान कर्मी, यानी कुल 329 लोग सवार थे, जो इस विस्फोट के बाद चिंदी चिंदी हो गये।
शुरु में समझा जा रहा था कि यह तकनीकी खराबी से हुआ हादसा है, लेकिन जब इस विस्फोट की फोरेंसिक जांच की गई, तब पता चला कि यह तकनीकी हादसा नहीं था बल्कि शक्तिशाली विस्फोटकों के जरिये आसमान में बम के जरिये विमान को उड़ाया गया था। फिर कनाडाई पुलिस और खुफिया अधिकारियों ने इस हादसे के जिम्मेदार कई आरोपियों को पकड़ा, लेकिन ढीली जांच और सबूतों के अभाव के कारण आजतक भी इस विस्फोट में मारे गये लोगों को न्याय नहीं मिल पाया। आजतक इस हादसे की अंतिम सुनवाई नहीं हो सकी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कनाडा की जांच में कितने झोल रहे होंगे। बहरहाल पकड़े गये आरोपियों से पूछताछ के दौरान पता चला कि इस भयंकर हादसे को खालिस्तानी आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत सेना के स्वर्ण मंदिर में प्रवेश के विरोध में अंजाम दिया था। टोक्यो हादसे के लिए इंदरजीत सिंह रेयात को 1991 में 10 साल की जेल की सजा हुई थी और उसके बाद 5 साल की सजा और बढ़ायी गई, क्योंकि उसकी भूमिका कनिष्क विमान में फिट किये गये बम को बनाने में थी।
कनिष्क विमान विस्फोट ने दुनियाभर में हवाई यात्रा को तो बेहद डरावना बना ही दिया था, इस खौफनाक बम विस्फोट के बाद पूरी दुनिया की हवाई सुरक्षा जांच व्यवस्था भी पूरी तरह से बदल गई। इस हादसे के बाद ही सुनिश्चित किया गया कि किसी भी यात्री विमान में बिना यात्री के चेक-इन बैग को विमान में रखने की इजाजत नहीं होगी। जबकि 1985 के पहले कई लोग यात्रा का टिकट बुक कराते थे और खुद यात्रा करने के बजाय उससे अपना सामान या बैग भेज देते थे। जिसे गंतव्य स्थान पर पहुंचने के बाद संबंधित व्यक्ति तक पहुंचा दिया जाता था या वह खुद भी एयरपोर्ट से आकर ले जा सकता था। लेकिन कनिष्क हादसे के बाद यह नियम बदल दिया गया। दुनिया के ज्यादातर देशों में नो मैच, नो ट्रैवल या पॉजीटिव पेसेंजर बैग मैच जैसी नीतियां लागू कर दीं। इसके बाद तब से यदि कोई यात्री बोर्डिंग नहीं करता तो उसके चेक इन बैग को विमान में नहीं भेजा सकता था। कनिष्क विमान हादसे के बाद हवाई सुरक्षा प्रोटोकॉल बेहद कड़े हो गये। हवाई अड्डे छावनियों में तब्दील हो गये, कोई बैग तो दूर एक पेन भी बिना स्कैनर से गुजरे हवाई अड्डे के अंदर नहीं जा सकता। इस कड़ाई का मकसद हवाई यात्रियों की सुरक्षा करना ही है।
कनिष्क हादसे के बाद ही टाइमर डिवाइस और किसी भी तरह की विस्फोटक की पहचान के लिए बेहद शक्तिशाली स्कैनरों को हवाई अड्डों पर लगाया गया। यात्रियों की कड़ी सुरक्षा जांच की जाने लगी। उनकी प्रोफाइलिंग होनी भी शुरु हुई। इसके बाद ही बोर्डिंग पास जांचा जाने लगा। हवाई जहाज में चढ़ने के पहले यात्रियों को कई बार कई तरह की जांच से गुजरना होता है ताकि विमान पर किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधियों का अंदेशा न रहे। इसी घटना के बाद सुरक्षा के नये मानक तय किये गये। इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइजेश (आईसीएओ) तथा इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन ने सुरक्षा प्रोटोकॉल में व्यापक तौर पर संशोधन किए और सुरक्षा एजेंसियों के बीच भरपूर समन्वय को स्थापित किया गया। कनिष्क विमान हादसे के बाद दुनियाभर के हवाई अड्डों में नये सिरे से सुरक्षा बलों की उपस्थिति को जांचा गया और विमान हादसों में पीड़ित यात्रियों के अधिकार और मुआवजा नीति निश्चित की गई। कुल मिलाकर इस हादसे ने समूचे हवाई परिवाहन को बदलकर रख दिया।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर