बाकू का कॉप-29 शिखर सम्मेलन

जलवायु-परिवर्तन से उभरे संकट के दृष्टिगत अजरबैजान के शहर बाकू में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में वैश्विक स्तर पर आयोजित जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप-29 समस्या का कोई समाधान तलाश करने की अपेक्षा, चिन्ताओं को और बढ़ाते दिखाई देता है। इस सम्मेलन के आयोजन के दूसरे ही दिन विश्व के लगभग 130 देशों के प्रतिनिधियों ने जलवायु-परिवर्तन पर अंकुश लगाये जाने हेतु बनाये गये वित्तीय कोष की सम्भावनाओं को नकारते हुए इसके प्रारूप को ही रद्द कर दिया। इन 130 देशों में जी-77 के सभी देश भी शामिल रहे। चीन ने भी इस प्रारूप पर सहमति जताने से इन्कार कर दिया। बहुत स्वाभाविक है कि इस कारण इस मुद्दे को लेकर पूरा विश्व दो भागों में बट गया लगता है। यह भी प्राय: प्रकट हो गया प्रतीत होता है कि विश्व के विकसित देश इस समस्या को लेकर अभी तक भी गम्भीर नहीं हैं, तथा इस कोष में अंश-दान हेतु आगे आने के लिए तैयार नहीं हैं। अमरीका में हाल ही में हुए सत्ता-परिवर्तन तथा खास तौर पर इस शक्तिशाली देश की राजनीतिक सत्ता रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प के हाथ में आ जाने से समस्या की गम्भीरता और बढ़ गई है क्योंकि इस हेतु बनाये गये कोष की कार्य-प्रणाली को लेकर डोनाल्ड ट्रम्प अतीत में भी विरोध करते रहे हैं। इस समस्या की गम्भीरता का एक पक्ष यह भी है कि विकसित देशों में इस कोष में जमा होने वाली राशि को लेकर विकासशील देशों के साथ मतभेद रहे हैं। विकासशील देश इस हेतु विकसित देशों पर ज़िम्मेदारी आयद कर, प्राथमिक कोष में 1.3 लाख करोड़ डॉलर जमा किये जाने के पक्षधर हैं, जिसमें से अधिकतर भाग विकसित देशों के हिस्से आना चाहिए। इसके विपरीत विकसित देश इस कोष के लिए वैश्विक धरातल पर सभी देशों की सरकारी, बड़ी निजी कम्पनियों और बड़े निवेशकों पर भी समान रूप से ज़िम्मेदारी आयद करने के पक्षधर बताये जाते हैं।
इस सम्मेलन से समाधान की अपेक्षा वैश्विक चिन्ताओं में वृद्धि होने जैसा स्वर उभरने का एक और बड़ा कारण यह भी है कि भारत, अमरीका, फ्रांस, चीन और इण्डोनेशिया जैसे देशों के राष्ट्र-प्रमुख इसमें शरीक ही नहीं हो रहे जबकि फ्रांस, चीन और अमरीका पर्यावरणीय प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन हेतु कारणों को बढ़ाने वाले देशों में शुमार माने जाते हैं। रूस, आस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब और तुर्किये जैसे देश भी कार्बन को बढ़ाकर समस्या को गम्भीर बनाने वाले देशों में शामिल माने जाते हैं। तथापि पिछले पेरिस समझौते में पारित संचालन मानकों को इस सम्मेलन द्वारा अपना लिये जाने से वैश्विक कार्बन बाज़ार की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया लगता है। इससे एक ओर जहां सम्बद्ध देशों के बीच वैश्विक व्यापार का मार्ग प्रशस्त होगा, वहीं कार्बन गैस को नियंत्रित करने में सहायक वस्तुओं, पदार्थों एवं उपकरणों के आदान-प्रदान में इज़ाफा होने से समस्या की गम्भीरता पर स्वत: अंकुश लगने की सम्भावनाएं बढ़ेंगी।
इस समस्या के निदान हेतु अग्रणी एवं समुचित प्रयास करने वाले देशों में भारत, ब्रिटेन, जापान और जर्मनी आदि माने जाते हैं, किन्तु बाकू के कॉप-29 सम्मेलन में भारत के राष्ट्र-प्रमुख के शामिल न होने को देश के विरोध-स्वर में ही देखा जा रहा है। भारत ने एक बार फिर यह आशा जताई है कि विश्व के धनी और समृद्ध देश विश्व में जलवायु-परिवर्तन के इस ़खतरनाक होते जाते मोड़ पर, पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम हेतु अपनी भूमिका को जवाबदेही के साथ निभाने का यत्न करेंगे। इस तथ्य से कभी इन्कार नहीं किया जा सका कि पर्यावरण में बढ़ती कार्बन-उत्सर्जन मात्रा का बड़ा हिस्सा इन गम्भीर देशों की ओर से ही पैदा किया हुआ होता है। ऐसी स्थिति में इन देशों का अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने से संकोच करना किसी भी सूरत विश्व-जन-समुदाय के हित में नहीं माना जा सकता। भारत ने सदैव ऊर्जा-सुरक्षा एवं ऊर्जा-संरक्षण का समर्थन किया है। इससे नि:संदेह कार्बन के उत्सर्जन में कमी होने का प्रवाह बढ़ता है।
हम समझते हैं कि पर्यावरणीय प्रदूषण के धरातल पर स्थिति आज बेहद खराब होते दिखाई देती है। बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के दृष्टिगत एक ओर जहां सर्दियों में हिमपात होने की गतिशीलता प्रभावित हुई है, वहीं बड़े-बड़े ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया तेज़ होने लगी है। गर्मी के प्रस्थान और सर्दी के आगमन के बीच का अन्तर कम होना भी चिन्ता उपजाता है। ऐसी स्थिति में ग्लोबल वार्मिंग को रोकना एवं पर्यावरण में कार्बन के उत्सर्जन पर अंकुश लगाना  ही समस्या का एकमात्र समाधान प्रतीत होता है। यह भी कि इस बेहद महंगी प्रक्रिया के लिए अमीर एवं विकसित देशों को स्वत: आगे आना चाहिए जबकि वे सभी विश्व देशों को एक ही पथ पर रख कर अपनी ज़िम्मेदारी से भागते प्रतीत होते हैं। कॉप-29 का बाकू सम्मेलन इन्हीं चिन्ताओं को रेखांकित करता है। हम समझते हैं कि समय की आवाज़ को पहचान कर समृद्ध एवं विकसित देशों को अपनी इस ज़िम्मेदारी को निभाते हुए, दुनिया को बचाने हेतु अवश्य आगे आना चाहिए।

#बाकू का कॉप-29 शिखर सम्मेलन