प्रशंसनीय है ‘बुल्डोज़र न्याय’ पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जिस समय सुप्रीम कोर्ट ‘बुल्डोज़र न्याय’ को असंवैधानिक घोषित करते हुए उस पर प्रतिबंध लगा रहा था और अवैध निर्माणों को गिराने के लिए दिशानिर्देश जारी कर रहा था, ठीक उसी वक्त नई दिल्ली से लगभग 302 किमी दूर पीलीभीत के गांव तिल्ची में उत्तर प्रदेश का राजस्व प्रशासन ग्राम प्रधान ज़ेनब बेगम के मकान व दुकानों पर बुल्डोज़र चला रहा था, जिससे ग्राम प्रधान का परिवार तो बेघर हुआ ही, साथ ही जिन लोगों ने दुकानें किराये पर ले रखी थीं, उनका कारोबार भी बंद हो गया। जबकि यह मामला (जिसके बारे में प्रशासन का कहना है कि निर्माण आरक्षित ग्राम पंचायत की भूमि पर अवैध रूप से हुआ था और ग्राम प्रधान का कहना है कि उनका परिवार 1965 से इस भूमि पर वैध रूप से रह रहा था) फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक है कि सुप्रीम कोर्ट के ‘बुल्डोज़र न्याय’ पर प्रतिबंध और इस असंवैधानिक कार्यवाही के लिए अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने के बावजूद अधिकारी अदालतों से डरेंगे या सत्तारूढ़ नेताओं से, हमें नहीं मालूम।
सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवम्बर, 2024 को ‘बुल्डोज़र न्याय’ के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों पर जुर्माना परिभाषित करके उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम, गुजरात, झारखंड, दिल्ली आदि की राज्य सरकारों की निर्लज अराजकता को ध्वस्त करने का प्रयास किया है, जोकि सर्वोच्च न्यायालय के इन शब्दों के कारण ही अच्छा व स्वीकार्य कदम है, ‘अगर कानून का शासन गायब रहेगा तो कोई जवाबदेही नहीं रहेगी, सत्ता का दुरुपयोग होगा और भ्रष्टाचार होगा। हम कानून से शासित होने की बजाय सत्ता में बैठे लोगों के पागलपन और सनक से शासित होने लगेंगे।’ सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यत: तीन बिंदुओं पर बल दिया। एक, कानून के शासन की अनिवार्यता पर कि इससे ही ‘राज्य शक्ति के मनमाने प्रयोग के विरुद्ध सुरक्षा मिलती है’। सबसे महत्वपूर्ण है ‘यह अंतर करना कि सत्ता का उपयोग नेक नीयत से किया जा रहा है या बद नीयत से दुरूपयोग’। दो, शक्ति के विभाजन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब सरकारें अपनी मनमज़र्ी से किसी व्यक्ति को ‘दोषी’ घोषित करती हैं, तो वह न्यायपालिका के कार्यों में दखल दे रही होती हैं। इसलिए राज्य सरकारों को यह उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
तीन, सुप्रीम कोर्ट ने एकदम सही एहसास किया कि मकान गिराने के सिलसिले में केवल दिशानिर्देश जारी करना पर्याप्त नहीं होगा, इसलिए उसने ‘तोड़ी गई सम्पत्तियों की बहाली को शामिल किया... अधिकारियों के व्यक्तिगत खर्च पर, नुकसान की भरपाई के अलावा’, ताकि ‘अधिकारियों को मनमज़र्ी करने की कोई गुंजाइश ही न रहे’। ‘बुल्डोज़र न्याय’ पर अखिल भारतीय प्रतिबंध लगाते हुए न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायाधीश के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि एक नागरिक का घर केवल इसलिए तोड़ना कि वह आरोपी है या दोषी भी है, वह भी कानून द्वारा निर्धारित उचित प्रक्रिया का पालन किये बिना, ‘पूर्णत: असंवैधानिक’ होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माणों को गिराने के लिए विस्तृत प्रक्रिया जारी की और कवि प्रदीप की पंक्तियों (अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है। इन्सान के दिल की ये चाहत है कि एक घर का सपना कभी न छूटे।) को कोट करते हुए आदेश दिया कि राज्य घर गिराकर किसी परिवार के शेल्टर का अधिकार केवल इसलिए नहीं छीन सकता कि उसका एक सदस्य गंभीर अपराध में आरोपी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कार्यकारिणी न्यायाधीश नहीं बन सकती और तय नहीं कर सकती कि आरोपी दोषी है और इसलिए उसकी सम्पत्तियों को गिराकर उसे सज़ा दी जाये। इस किस्म की कार्रवाई कार्यकारिणी की सीमाओं का उल्लंघन होंगीं। ...जब एक विशेष स्ट्रक्चर का चयन...गिराने के लिए किया जाता है और शेष को स्पर्श तक नहीं किया जाता, तो इसमें बदनीयत की बू आने लगती है।... बुल्डोज़र द्वारा बिल्ंिडग को गिराने वाला भयावह दृश्य उस अराजक राज्य के मामलों की याद दिलाता है जिसमें ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ का चलन था। ....अगर विध्वंस की अनुमति केवल इस आधार पर दी जायेगी कि एक व्यक्ति आरोपी है या दोषी तो यह पूरे परिवार को सामूहिक सज़ा देना होगा।’ सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि सामूहिक सज़ा के लिए कोई स्थान नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि तथाकथित आरोपी या दोषी का जब त्वरित-न्याय के नाम पर घर गिराया जाता है, तो वह एक परिवार के लिए सामूहिक सज़ा ही होती है। अवैध निर्माणों को गिराने के लिए भी पर्याप्त प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अधिक बारीक और अखिल-भारतीय बना दिया है।
किसी अवैध निर्माण को तोड़ने के लिए भी उसके मालिक को कार्यवाही से 15 दिन पहले नोटिस देना होगा, जो दोनों रजिस्टर्ड पोस्ट से और सम्पत्ति की बाहरी दीवारों पर चस्पा करने के ज़रिये दिया जायेगा। साथ ही नोटिस की जानकारी संबंधित कलेक्टर/डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को भी भेजी जायेगी, जो नगरपालिका अधिकारियों से कम्यूनिकेट करने के लिए नोडल अधिकारी तय करेंगे। समय-अवधि उस समय से गिनी जायेगी, जब मालिक नोटिस प्राप्त करेगा। इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन अदालत की अवमानना प्रक्रिया को आमंत्रित तो करेगा ही संबंधित अधिकारियों पर मुकद्दमा भी चलेगा। अगर तोड़फोड़ अदालत के आदेशों के विपरीत पायी गई, तो उसके लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों को अपने खर्च पर तोड़ी गई प्रॉपर्टी बहाल करनी होगी और नुकसान की भरपाई भी करनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों से ‘बुल्डोज़र न्याय’ पर पूर्णत: विराम लगना कठिन प्रतीत होता है। सरकारी मशीनरी में जवाबदेही एक ऐसा गुण है, जो सबसे अधिक अस्पष्ट है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश बहुत शानदार है। फिलहाल तो राज्य सरकारों ने इसका स्वागत किया है, अब देखना शेष यह है कि आगे वह इस सिलसिले में करती क्या हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर