मणिपुर में अफस्पा से नहीं, साझी सियासी कोशिशों से रुकेगी हिंसा 

मणिपुर के जिरिबाम पुलिस स्टेशन के अंतर्गत गांव जैरावन में सशस्त्र घुसपैठियों ने न सिर्फ तीन बच्चों की 31 वर्षीय आदिवासी मां को थर्ड डिग्री यातनाएं दीं व उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया बल्कि ज़िन्दा जलाकर उसकी हत्या कर दी। यह 7 नवम्बर, 2024 की घटना है, जिसके बाद से मणिपुर में, कुछ समय की तनावपूर्ण शांति के बाद, एक बार फिर से हिंसक वारदातें आरंभ हो गई हैं। इस देशज टकराव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 14 नवम्बर, 2024 को मणिपुर के पांच जिलों- इम्फाल पश्चिम, इम्फाल पूर्व, जिरिबाम, कंगपोकपी और बिष्णुपुर के छह पुलिस स्टेशनों को फिर से ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित करते हुए, उनमें आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल पावर्स) एक्ट, 1958 (एएफएसपीए) लगा दिया है। इस एक्ट को फिर से लागू करने का आधार यह बताया गया है कि राज्य में ‘स्थिति अस्थिर’ है और ‘देशज हिंसा जारी है’, इसके अतिरिक्त बिष्णुपुर-चुराचांदपुर, इम्फाल पूर्व व कंगपोकपी-इम्फाल पश्चिम और जिरिबाम के सीमांत क्षेत्रों में ‘रुक-रुककर फायरिंग’ हो रही है, गंभीर हिंसा की अनेक ऐसी वारदातें हुई हैं, जिनमें विद्रोही गुटों ने सक्रिय हिस्सेदारी की है। केंद्र ने लगभग 2,500 अतिरिक्त अर्द्धसैनिक राज्य में तैनात किये हैं। हालांकि हाल की हिंसक वारदातें जिरिबाम ज़िले में केंद्रित हैं, लेकिन इम्फाल घाटी और मणिपुर पहाड़ियों के बीच जो गहरा ध्रुवीकरण है, उसे मद्देनज़र रखते हुए राज्य की असम्भव प्रतीत होती स्थिति में केंद्रीय बलों को तैनात किया गया है। गौरतलब है कि ़गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह मैतेई समुदाय की मांग की सिफारिश केंद्र को भेजे। इससे राज्य के आदिवासियों को लगने लगा कि उन्हें जो आरक्षण लाभ मिल रहे हैं, उनमें बहुत कमी आ जायेगी। इसलिए 3 मई, 2023 को आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया, जिसके बाद राज्य में हिंसा अचानक भड़क उठी, जो अभी तक नहीं रुकी है। 14 नवम्बर को जिरिबाम ज़िले में तीन महिलाओं व तीन बच्चों को अगवा किया गया। इसके विरोध में छात्रों ने अपनी अपनी शैक्षिक संस्थाओं के बाहर अनेक मानव श्रृंखलाएं बनायीं और अगवा किये गये व्यक्तियों की सुरक्षित रिहाई की मांग की।
दरअसल, 19 माह पुरानी तनावपूर्ण अशांति ने मणिपुर को वर्चुअली देशज रेखाओं में विभाजित कर दिया है और दोनों तरफ से विशाल विस्थापन हुआ है। अब यह केंद्रीय बलों की ज़िम्मेदारी है कि बफ र के रूप में काम करें और शरारती तत्वों को नियंत्रित करें, लेकिन दो मुख्य कारणों से यह काम बहुत अधिक जटिल हो गया है। एक, मणिपुर पुलिस को ही एक पक्ष समस्या का हिस्सा समझता है, जबकि उससे उम्मीद की जाती है कि वह संयुक्त कमांड संरचना के तहत कार्य करे और केंद्रीय बलों का सहयोग करे। इस वजह से राज्य में केंद्रीय बलों के ऑपरेशन बाधित हुए। दूसरा यह कि केंद्र सरकार ने 2008 में 25 मिलिटेंट गुटों (जिनमें से अधिकतर पहाड़ों से संबंधित हैं) के साथ कार्यवाही स्थगन (सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस) का समझौता किया हुआ है। इस समझौते की गरिमा को बनाये रखना महत्वपूर्ण है ताकि उत्तरपूर्व में विद्रोह के खिलाफ भारत सरकार ने जो लाभ अर्जित किया है उसे बरकरार रखा जा सके। इसलिए केंद्रीय बलों को अत्यधिक सावधान रहना पड़ेगा यह सुनिश्चित करने के लिए कि समझौता छिन-भिन्न न हो और ज़मीनी स्थिति अतिरिक्त जटिल न हो जाये। 
मणिपुर में दोनों पक्षों ने अपने आप ही गांव रक्षा वालंटियर्स गठित किये हुए हैं। इनसे जूझना आसान नहीं है। इससे जटिलता की एक अन्य परत उत्पन्न हो गई है। अनेक मामलों में मणिपुर पुलिस पहाड़ों के वालंटियर्स को ‘मिलिटेंटस’ कहती है, जबकि पहाड़ी पक्ष घाटी के ऐसे वालंटियर्स (जिनमें सशस्त्र आरामबाई तेंग्गोल भी शामिल है) को ‘मिलिशिया’ कहता है। इस संदर्भ में 11 नवम्बर, 2024 को जिरिबाम में हुई हिंसा को याद कीजिये। मणिपुर पुलिस का कहना है कि 10 मिलिटेंट्स को मुठभेड़ में मार गिराया गया था, जबकि पहाड़ी पक्ष का कहना है कि वह वास्तव में वालंटियर्स थे जिन्हें यह सूचना मिली थी कि आरामबाई तेंग्गोल के सदस्य स्थानीय पुलिस स्टेशन में छुपे हुए हैं। 
आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल पावर्स) एक्ट फिर से लागू करने से दोनों केंद्र व राज्य को समवर्ती शक्तियां मिल जाती हैं, लेकिन इस कानून को लागू करना खतरे से भरा है। इससे जनाक्रोश व आलोचना के साथ ही ज़बरदस्त विरोध भी आरंभ हो सकता है। मणिपुर में इस कानून के विरोध में हिंसक आंदोलनों का लम्बा इतिहास है। सरकार का कहना है, ‘चूंकि देशज हिंसा रुकने का नाम ही नहीं ले रही है इसलिए आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल पावर्स) एक्ट को हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में वापस लाने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं था ताकि सेना सहित सभी सुरक्षा बल समन्वित प्रयासों से सशस्त्र शरारती तत्वों को सीमांत क्षेत्रों में नियंत्रित कर सकें।’ यहां यह बताना आवश्यक है कि 1958 से पूरा मणिपुर आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल पावर्स) एक्ट के तहत था, लेकिन अगस्त 2004 में इम्फाल नगर पालिका क्षेत्रों को इसकी परिधि से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद अप्रैल 2022 में 15 पुलिस स्टेशनों और अप्रैल 2023 में चार अन्य पुलिस स्टेशनों को इसकी परिधि से बाहर किया गया। अब छह पुलिस स्टेशनों को एक बार फिर से इस कानून की परिधि में लाया गया है। 
मणिपुर में स्थिति निश्चित रूप से चिंताजनक है। वहां पहली ज़रूरत शांति स्थापित करने की है। आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल पावर्स) एक्ट फिर से लागू करने से कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर हो जायेगी, यह कहना कठिन है। वैसे बेहतर तो यह होगा कि सभी राजनीतिक पार्टियों का एक दल मणिपुर का दौरा करे और राज्य में स्थायी शांति का कोई रास्ता निकालें। दिलचस्प यह है कि सुरक्षा बलों ने भी इसी बात को दोहराया है कि इस समय मणिपुर में ज़रूरत राजनीतिक हस्तक्षेप की है और वह भी विशेषकर इसलिए क्योंकि आज देशज टकराव बहुत अधिक बढ़ गया है और सैन्य बल ‘विकल्प’ नहीं है। यह अपने आप में समझदारी भरा सुझाव है और इसलिए भी कि सेना इस क्षेत्र में अपने वर्षों के अनुभव से जानती है कि वह वास्तव में क्या कह रही है। मणिपुर में सेना लम्बे समय से तीन मुख्य समुदायों के विद्रोही गुटों से लड़ती आ रही है। इस बार उसने राज्य सरकार की आवश्यकता अनुसार मदद की है। सेना नेतृत्व का कहना है कि स्थिति काउंटर-इंसरजेंसी की नहीं बल्कि ‘कानून व्यवस्था’ की है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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