न्याय में देरी और अन्याय एक समान 

हमारे देश की कानूनी प्रक्रिया कुछ ऐसी है कि अगर जानबूझ कर या अनजाने में कोई अपराध हो जाये तो न्याय की मंज़िल तक पहुंचने न देने के लिए ऐसे पैरोकारों की कमी नहीं है जो कुछ भी कर सकते हैं। सामान्य व्यक्ति के साथ कोई जुर्म होता है तो उसकी सुनवाई और फैसले को अनिश्चित काल के लिये टाला जा सकता है। न्याय के विभिन्न मंदिरों में पांच करोड़ से अधिक मुकद्दमे प्रतीक्षा में हैं कि वादी प्रतिवादी की सहनशक्ति समाप्त होने से पहले उनका निपटारा हो जाये। 
कुछ प्रदेशों में काफी समय से तुरत-फुरत इन्साफ देने के लिए एक मुहावरे की तरह कहा जाता है कि अपराध के फैसले के बाद अपराधी को सज़ा देने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल करना न्यायसंगत है। शर्त यही है कि सभी न्यायिक प्रावधानों पर चलने और अपनाने के बाद ही ऐसा किया गया हो। अब समाज के जिस तबके को यह आदत पड़ी हो कि दादा के समय शुरू हुआ मुकद्दमा पोते तक चलता रह सकता है तो उसे तो यह अजीब ही नहीं नागवार लगेगा। जुर्म की बदौलत जो शानदार ज़िंदगी जीने को मिल रही थी, सब हवा हवाई हो जायेगा, जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी। इससे उन लोगों को ज़रूर राहत महसूस होने लगी थी जो इन सफेदपोश तथा दबंग अपराधियों के राजपाट से त्रस्त रहते थे। उनकी मज़र्ी के बिना ज़ुबान तक नहीं खोल सकते थे। उन लोगों को कैसे रास आ सकता था कि जिन्हें वे अपनी प्रजा या गुलाम मानकर चलते थे, वे चैन की नींद सो रहे हैं। 
माननीय उच्चतम न्यायालय ने संविधान के सत्य को पुन: परिभाषित किया है। किसी के संवैधानिक अधिकारों का हनन यदि होता है तो वह सब कारगुज़ारी अवैध मानी जाएगी जो किसी का घर, कोठी, बंगला उजाड़ने के लिए बुलडोज़री न्याय के अन्तर्गत इस्तेमाल की गई हो। परिवार के एक सदस्य की गैर-कानूनी हरकतों के लिए उसके बाल बच्चों को बेसहारा करना गलत है। वास्तविकता है कि वे भी एक तरह से अपराध के साझेदार थे क्योंकि मस्त जीवन जी रहे थे। क्या उन्होंने कभी सोचा कि घर के अपराधी के खिलाफ गवाही दें या फिर उन परिवारों का ध्यान करें जो उनके पति, पिता या पुत्र की गुंडागर्दी के कारण भयभीत होकर जी रहे थे। 
कौन नहीं जानता कि शहरी सरकारी सम्पत्ति को अवैध रूप से कब्ज़ाने का सिलसिला बेरोकटोक चल रहा है क्योंकि ऐसे लोगों पर राजनीतिज्ञों का वरद हस्त होता है। कुछ तो स्वयं भी नेतागिरी का चोला ओढ़ लेते हैं। उनकी शान और शौकत में कोई रुकावट नहीं आती। आम जनता उनकी करनी का फल भोगती है, अपनी किस्मत को दोष देने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकती। फुटपाथ गायब हो जाते है, सड़क सिमट जाती है, सुबह जिस रास्ते से अपने काम पर गए थे, ज़रूरी नहीं कि शाम को उसी से वापिस आ पायें। जल, जंगल और ज़मीन तथा खनिज पदार्थों की प्राकृतिक सम्पदाओं पर जो व्यक्ति अपना मौरूसी अधिकार समझता हो, उसके आगे कौन से अधिकार या कानून की मज़ाल है जो कार्रवाई हो सके और यदि किसी ने की तो निर्दोष ही कठघरे में खड़ा मिलेगा। अतिक्रमण की बीमारी महानगरों और नगरों से निकल कर गांव देहात और दूरदराज के इलाकों तक फैल चुकी है जहां कानून का पहुंचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा है। कोई इस बात की जुर्रत ही नहीं कर सकता कि अन्याय के खिलाफ मुंह खोल सके क्योंकि गुजर बसर तो वहीं रह कर करनी है। एक लम्बी प्रक्रिया का पालन जैसे कारण बताओ नोटिस, अग्रिम सूचना, ध्वस्त कार्रवाई की रिकॉर्डिंग और ऐसी ही अन्य बातें ताकि कार्रवाई न्यायसम्मत हो। यह जानना भी ज़रूरी है कि बहुत से अधिकारी बिना किसी तथ्य और प्रमाण के उन लोगों को ऐसे सख्त नोटिस भेजते हैं जो डर कर अधिकारियों से सौदेबाज़ी करना बेहतर समझते हैं। भ्रष्टाचार की असीमित गंगा का बहाव यहीं से शुरू होता है। रिश्वत रूपी जल के कुछ छींटे पड़ते ही समस्त कार्रवाई निरस्त हो सकती है। पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं मोल लिया जा सकता। 
ऐसा दुकानदार, व्यापारी, उद्योगपति नहीं मिलेगा जिस पर किसी सरकारी विभाग की गाज़ कभी न कभी गिरी न हो। पहले लोग गली में सिपाही को देखते ही दुबक जाते थे या सलाम ठोकने लगते थे, अब सरकारी नोटिस मिलते ही सिट्टी-पिट्टी ऐसे गुम हो जाती है कि जैसे अपराध सिद्ध हो गया हो, सज़ा मिल गई हो और यह तक पता न हो कि कुसूर क्या था? अब इन परिस्थितियों में यदि कोई राजनेता जनता की सांसों को उखड़ने से रोकने के लिए सख्त कदम उठाता है तो फिर उसकी तारीफ के बजाय दोषी क्यों समझा जाता है जिसका परिणाम लोकतांत्रिक देश में चुनाव के नतीजों के रूप में देखने को मिलता है। 
धैर्य की परीक्षा 
प्रति वर्ष 16 नवम्बर को यूनेस्को द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस मनाया जाता है। जब इसकी घोषणा हुई होगी तो अवश्य ही यह सोचा होगा कि विश्व में लोगों की सहनशक्ति का हृस हो रहा है, बातचीत कम होती है, बेनतीजा और बेमतलब की बहस अधिक होती है। क्रोध की भाषा बोलने में कोई संकोच नहीं होता। इसके लिए शांत रहने, अधिक से अधिक वार्तालाप और संवाद के ज़रिये किसी भी समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करना इसका उद्देश्य रहा होगा। 

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