देश की बदनामी का सबब बनता दिल्ली का प्रदूषण
इन दिनों अज़रबाइजान की राजधानी बाकू में चल रहे कॉप-29 शिखर सम्मेलन में हर तरफ भारत की राजधानी दिल्ली की चर्चा है। सम्मेलन में भाग ले रहे हर प्रतिनिधि की जुबान में दिल्ली का नाम है, लेकिन इस ज़िक्र से देश की इज्जत नहीं बढ़ रही बल्कि बदनामी हो रही है, क्योंकि यह चर्चा दिल्ली में जानलेवा हो चले प्रदूषण के कारण हो रही है। दरअसल दिल्ली के प्रदूषण से अब दिल्लीवासी ही नहीं, पूरी दुनिया परेशान हो गई है। दिल्ली के प्रदूषण का स्तर सुनकर ही हर तरफ हाहाकार मच गया है। दिल्ली सरकार के प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के उठाये गये अनेक कदमों के बावजूद दिल्ली में हर गुजरते दिन के साथ प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। हाल में एक मीडिया संस्थान द्वारा कराये गये सर्वे से पता चला है कि दिल्ली में 69 फीसदी परिवार सीधे-सीधे प्रदूषण की चपेट में आ गये हैं, अगर इसमें एनसीआर को भी जोड़ दें तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में करीब 72 फीसदी परिवार का कोई एक न एक सदस्य पिछले 25 दिनों के दौरान प्रदूषण के चलते बीमार पड़ा है या पहले से बीमार होने पर उसकी स्थिति और खराब हुई है।
हालांकि बेहद आशंकाओं के बावजूद इस साल दीपावली के अगले दिन उतना भयानक प्रदूषण नहीं था, जिसकी आशंका थी। सिर्फ 18 में से 3-4 प्रदूषण जांच केंद्र ही ऐसे थे, जहां प्रदूषण का स्तर आपातकालीन स्थिति में पहुंचा था। क्योंकि दीपावली के अगले वाले दिन राजधानी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का औसतन सूचकांक 369 था, जोकि पिछले कुछ सालों के मुकाबले कम था। हालांकि कुछ विशेष क्षेत्रों में इस साल भी दीपावली के अगले दिन 561 से 725 प्वाइंट तक एक्यूआई चला गया था। लेकिन तेज हवाओं के चलते अगले ही दिन दिल्ली को काफी राहत मिल गई थी। हालांकि यह राहत भी सिर्फ दिल्ली के स्तर पर ही थी, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सांस लेने के लिए जिस स्वस्थ वातावरण की दरकार होती है, उसमें सिर्फ 1 से 50 तक का एक्यूआई ही बर्दाश्त के दायरे में होता है।
दरअसल हवा की गुणवत्ता जांचने का पैमाना एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) इन्सान के बुखार नापने के थर्मामीटर जैसा होता है। इसके जरिये वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, ओज़ोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 2.5 का विश्लेषण किया जाता है ताकि यह जाना जा सके कि वातावरण में ज़हरीली गैसों और प्रदूषण कणों का क्या स्तर है? क्या यह सेहत के अनुकूल है अथवा सेहत के लिए खतरनाक है?
लेकिन हैरानी की बात यह है कि दिल्ली तो छोड़िये भारत की बहुत गिनी चुनी जगहों में ही साल में कभी कभी एयर कलिटी इंडेक्स 50 के नीचे पाया जाता है। अगर हम यह जानने की कोशिश करें कि आखिर दिल्ली में प्रदूषण के हाहाकार का इस कदर डरावना शोर क्यों है तो इसे पिछले 20-25 दिनों में दिल्ली के वातावरण में लगातार बढ़े प्रदूषण के आंकड़ों से समझा जा सकता है। 25 अक्तूबर 2024 को दिल्ली का एक्यूआई औसतन 255 अंकों पर था, जो कि 1 नवम्बर, 2024 को बढ़कर औसतन 340 हो गया, लेकिन जल्द ही अलग-अलग वायु गुणवत्ता जांच केंद्रों में एक्यूआई 400 से 725 तक पहुंच गया। हालांकि यह स्थिति कुछ खास गिने चुने क्षेत्रों में थी, मगर 14 नवम्बर, 2024 को तो दिल्ली के ज्यादातर स्थानों में एक्यूआई 400 से ऊपर पहुंच गया।
दिल्ली की प्रदूषित हवा किस तरह से देश के सम्मान में बट्टा लगा रही है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 14 नवम्बर, 2024 से राजधानी में शुरु अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में जिन 15 देशों को शामिल होना था, उनमें से 7 ने स्पष्ट तौर पर इससे दूरी बना ली है। इन देशों का मानना है कि दिल्ली में हवा की गुणवत्ता इतनी खराब है कि सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। गौरतलब है कि इस साल व्यापार मेले में 15 देशों को शामिल होना था, लेकिन मेले की शुरुआत वाले दिन तक इन 15 में से 7 देशों के प्रतिनिधि दिल्ली में रहते हुए भी मेला स्थल तक नहीं गये।
इनका साफ मानना था कि प्रदूषण इस कदर भयावह था कि अगर वे वैसी स्थिति में होटल से निकलकर मेला स्थल तक जाएंगे तो बीमार पड़ जाएंगे, बाकी बचे 8 देशों में से भी सिर्फ इस मेले में हिस्सा लेने के लिए 4 विदेशी प्रतिनिधि पहुंचे थे। जिन देशों ने ऐसी स्थिति में भी हमारी थोड़ी इज्जत रखते हुए 14 नवम्बर, 2024 को व्यापार मेले में शरीक हुए, उनमें थाईलैंड, टर्की, अफगानिस्तान और यूएई के ही प्रतिनिधि रहे।
हालांकि 15 नवम्बर 2024 को जिस समय यह लेख लिखा जा रहा था, दिल्ली में ग्रैप-4 के प्रतिबंध लगा दिए गये, जिसके चलते दिल्ली और एनसीआर में सभी तरह के निर्माण कार्य, तोड़फोड़ तथा खनन जैसी गतिविधियां पूरी तरह से रोक दी गई हैं। इसके साथ ही दिल्ली के बाहर से आने वाली बसों व दूसरे भारी वाहनों को भी दिल्ली में प्रवेश से प्रतिबंधित कर दिया गया है। हालांकि इलेक्ट्रिक वाहनों और बीएस-4 डीज़ल वाहनों को इसमें छूट दी गई है। दिल्ली गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर में बीएस-3 पेट्रोल और बीएस-4 डीज़ल वाहन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके साथ ही सड़कों की मशीन से सफाई कराने की फ्रीक्वेंसी बढ़ाने, हैवी ट्रैफिक वाले रूट पर भीड़भाड़ के समय पानी के भारी छिड़काव के साथ-साथ बड़े वाहनों को इधर से उधर शिफ्ट किया गया है, साथ ही बहुत ज़रूरी न होने पर बुज़ुर्गों को घर में ही रहने की तस्दीक की गई है।
यह स्थिति तब है, जबकि 15 नवम्बर की सुबह 8 बजे से ही ग्रेडेड रिस्पोंस एक्शन प्लान यानी ‘ग्रैप’ के तीसरे फेज को लागू कर दिया गया है। जो इस बात का सबूत है कि दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति कितनी भयावह है। 15 नवम्बर की सुबह दिल्ली में कम से कम 31 जगहों का प्रदूषण स्तर 450 से 500 अंकों तक पाया गया है। इस दिन भी सबसे ज्यादा इंडेक्स पिछले कई बार की तरह जहांगीरपुरी में पाया गया, जो 561 था यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के बहुत गंभीर स्तर कहे जाने से भी ज्यादा गंभीर था।
इससे साफ पता चलता है कि दिल्ली की हालत प्रदूषण रोकने पर लगातार चर्चाओं के बावजूद बद से बदतर होती जा रही है। वक्त आ गया है कि दिल्ली के प्रदूषण नियंत्रण की उम्मीद सिर्फ दिल्ली सरकार से न की जाए, केंद्र सरकार को भी इसमें पूरी क्षमता के साथ लगना चाहिए, क्योंकि अभी यह महज कुछ दिनों की पर्यावरणीय परेशानी भर नहीं है बल्कि अब इससे देश की पहचान, अस्तित्व और हमारी उभरती हुई ताकत की साख भी जुड़ गई है। अत: दिल्ली को दुनिया के बड़े देशों की राजधानियों की तरह का स्टैंडर्ड मेंटेन करना ही होगा। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर