कानून का शासन

विगत दिवस सर्वोच्च न्यायालय ने घरों को गिराने संबंधी जिन मामलों में फैसला दिया है, वह इसलिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से अलग-अलग स्थानों पर ‘बुल्डोज़र न्याय’ का काम निरन्तर चल रहा था, जिस कारण कुछ स्थानों पर तो हिंसक घटनाएं घटित होने के समाचार सामने आये थे। कुछ चुनिन्दा राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम और गुजरात आदि में अपराधी घोषित लोगों के घरों को बुल्डोज़रों से ज़बरन गिरा दिया गया। इनमें से एक स्थान पर तो बड़ी संख्या में घर गिरा दिए गए थे। उदाहरण के तौर पर हरियाणा के नूह शहर में राज्य सरकार की ओर से लगभग 800 मकान गिराये गये, जिनका संबंध एक विशेष समुदाय से था। इसी  तरह राजस्थान के उदयपुर में दो स्कूली बच्चों में झगड़ा हुआ, जिसे लेकर एक पक्ष के घर पर बुल्डोज़र चला दिया गया, जो उस बच्चे के परिवार का भी नहीं था, अपितु उस घर में किराये पर रह रहे थे। इसी तरह यदि एक व्यक्ति के घर को गिराया जाता है परन्तु ऐसे ही दूसरे व्यक्ति के घर को छुआ तक नहीं जाता तो ऐसी कार्रवाई को संबंधित प्रशासन द्वारा एकतरफा कार्रवाई ही कहा जाएगा। 
इस संबंध में सुनाये गए फैसले में संबंधित माननीय न्यायाधीशों ने कई बेहद महत्त्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं। उन्होंने कड़े शब्दों में कहा कि धक्केशाही का नहीं, अपितु कानून का शासन ही चलना चाहिए। अदालत ने टिप्पणी की कि यदि कार्यकारी अधिकारी न्यायाधीश की तरह काम करते हैं और किसी व्यक्ति पर लगाये किसी आरोप के आधार पर किसी अन्य व्यक्ति का मकान गिराते हैं तो यह संविधान की शक्तियों के आवंटन के सिद्धांत के विपरीत है। अदालत ने यह भी कहा कि कार्यकारी अधिकारी यह फैसला नहीं ले सकते कि एक व्यक्ति आरोपी है तो इसके लिए उसका घर या अन्य अचल सम्पत्ति को गिरा कर उसे सज़ा दी जाये। यदि कोई अधिकारी ऐसा करता है तो ऐसा उसका अपनी सीमाओं को पार करने जैसा होगा। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि किसी एक व्यक्ति के आरोपी होने पर उसकी सज़ा उसके पूरे परिवार को नहीं दी जा सकती। इस तरह यदि किसी मकान को गिराने की स्वीकृति दी जाती है, जिसमें एक परिवार के कई लोग या कुछ परिवार रहते हैं तो ऐसी कार्रवाई एक आरोपी व्यक्ति के कारण पूरे परिवार या उस घर में रहने वाले परिवारों को सामूहिक दंड देने के समान होगी। इसके साथ ही अदालत ने अपने फैसले में दिए गए निर्देश का पालन करने की बात की है। इस फैसले को विस्तार देते हुए कहा गया है कि जहां सड़क, गली, फुटपाथ, रेल पटरी या किसी साझे स्थान पर कोई अवैध ढांचा बना दिया गया हो, उस पर अदालत द्वारा दिए गए फैसले के आधार पर ही कार्रवाई की जानी ज़रूरी है। इसके साथ यह भी कहा गया है कि यदि कोई अधिकारी अदालत के आदेशों को नज़रअंदाज़ करके ऐसा करने का भागी बनता है तो उस पर निजी तौर पर ऐसे हुए नुक्सान की ज़िम्मेदारी होगी तथा यह भी कि रातो-रात या तुरंत कोई घर गिरा देने से महिलाओं और बच्चों का सड़क पर आ जाना भी करुणामय दृश्य पेश करता है। पिछले समय में ज्यादातर राज्यों में ऐसी स्वेच्छानुसार की गई कार्रवाईयों के दृष्टिगत सर्वोच्च न्यायालय की ओर से यह फैसला आना जहां मन को ढांढस देने वाला सिद्ध होगा, वहीं यह कानून के शासन को और भी दृढ़ एवं मज़बूत बनाने में सहायक होगा।
पिछले समय में ऐसी दिशा में आये फैसले राहत पहुंचाने वाले भी हैं तथा इनसे लोगों का कानून एवं अदालतों पर भी विश्वास बंधता है, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश का आधार बन सकने की समर्था रखता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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