बजट 2025-26 : कर-व्यवस्था सरल हो तो बढ़ेगा राजस्व!
आयकर अधिनियम 1961 में किये गये कुछ भ्रामक संशोधनों के साथ आज भी, देश में छह दशक पुरानी और एक जटिल कर व्यवस्था मौजूद है। ठीक इसी तरह 1 जुलाई 2017 से जो वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम को लागू किया गया, वह भी अनेक सुधारात्मक कदमों के साथ लगातार जीएसटी कर संरचना को बदली जाने वाली परंपरा का रूप दिये हुए है, जिससे बहुत सारे भ्रम अनेक जटिल प्रावधानों के साथ समस्या बने हुए हैं। वास्तव में बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की गई छूटों से रहित एक नई कर व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, जो हमें कर प्रणाली संबंधित कई तरह की परेशानियों और जटिलाताओं से बचा सके। क्योंकि दुनिया के अधिकांश देशों के अनुरूप हमने भी उच्चतम 30 प्रतिशत की जो कर दर राजा चेलैय्या समिति की सिफारिशें पर शुरू की थी, जिसने काले धन का सफेद धन में बदलने की कोशिशें लगभग समाप्त कर दी थी, वह फायदा उपकर और अधिभार लगाते रहने के कारण करीब-करीब खत्म हो गया है। अत: किसी भी खुलासा की गयी आय पर 30 प्रतिशत का उच्चतम स्लैब बहाल किया जाना चाहिए ताकि लोगों को अपनी पूरी आय का खुलासा करना यानी उसे किताब में लाना फायदेमंद लगे। साथ ही एक स्थायी स्वैक्षिक योजना शुरु की जानी चाहिए, जिसके तहत कर रिटर्न में आय के स्रोत के खुलासे की बाध्यता न हो।
इसे विशेष रूप से संपत्ति-सौदों में नगद लेनदेन के मामले में ध्यान में रखा जाये। अगर संपत्ति-सौदों पर पंजीकरण शुल्क भी घटाकर 3 प्रतिशत कर दिया जाए, साथ ही 30 प्रतिशत स्लैब के तहत अपनी आय का खुलासा करने वाले सभी लोगों के नाम वेबसाइट पर मौजूद हों, जिससे दूसरे लोग भी प्रेरित होकर इस छूट का फायदा उठा सकें, तो देश की कर व्यवस्था के लिए बहुत अच्छा होगा। दान, चंदा, राजनीतिक दलों को दिया गया योगदान व यहां तक कि कृषि आय जिसका बड़े पैमाने पर दुरूपयोग किया जाता है, जैसी तमाम कर छूटों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। समग्रता में 5 लाख रुपये तक की छूट की घोषणा की जानी चाहिए; क्योंकि सामान्य किसान हर साल 5 लाख रुपये से ज्यादा नहीं कमाता। कृषि आय में कर छूट का फायदा जानी मानी हस्तियां अपनी बेहिसाब आय को कृषि आय के रूप में घोषित करके उठाती हैं। यह आमतौर पर व्यवहारिक रूप से बिना किसी उद्देश्य के लिए गांवों में खरीदी गई जमीनों के माध्यम से होता है। कृषि उपज में 5 से 10 लाख और 10 से 15 लाख के बीच की आय के लिए आयकर स्लैब क्रमश: 10 और 20 प्रतिशत हो सकते हैं, उसके बाद की आय के लिए 30 प्रतिशत के स्लैब का प्रावधान उचित होगा। कैलेंडर वर्ष को ही वित्तीय वर्ष बनाने की एलके झा समिति की सिफारिशों को मान लिया जाना चाहिए और इसे दुनिया के दूसरे देशों के अनुरूप लागू किया जाना चाहिए। इससे अप्रैल-मार्च को वर्तमान वित्तीय वर्ष के रूप में अपनाने की एक और ब्रिटिश विरासत का खात्मा हो जायेगा। इस बात पर भी गौर फरमाना होगा कि टैक्स और कारपोरेट ऑडिट के लिए अलग-अलग मूल्यहृस-नियम रखना हास्यस्पद है। एकल एवं एकीकृत कर एवं कारपोरेट ऑडिट होना चाहिए।
छोटे नगद लेनदेन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय 10 हजार रुपये से ऊपर की सभी खरीद बिक्री को अनिवार्य रूप से बैंक लेनदेन के माध्यम से सुनिश्चित करना चाहिए। इसके लिए क्रेडिट कार्ड पर लेनदेन शुल्क को घटाकर केवल आधा प्रतिशत किया जाना चाहिए और इसे जीएसटी से मुक्त होना चाहिए। इस आधा प्रतिशत शुल्क को भी केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही क्रेडिट कार्ड के माध्यम से की गई खरीदारी पर सभी तरह के प्रोत्साहन समाप्त करने चाहिए। क्रेडिट कार्ड पर वर्तमान उच्च 2 प्रतिशत लेनदेन शुल्क व्यापारियों को ग्राहकों से अलग से पैसे लेने के लिए मज़बूर करता है। खासकर जहां व्यापार मार्जिन काफी कम है। केंद्र सरकार द्वारा आधा प्रतिशत लेनदेन शुल्क वहन करने की तुलना में इस प्रणाली से कहीं ज्यादा राजस्व प्राप्त होगा। क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंकों को भी क्रेडिट कार्ड के कई गुना ज्यादा उपयोग बढ़ जाने के कारण आधे प्रतिशत लेनदेन में भी बहुत कमाई होगी। इसी के साथ नगदी में लेनदेन करने वाले प्रत्येक जीएसटी पंजीकृत डीलर को क्रेडिट कार्ड स्वैपिंग मशीनों के दो सेट अनिवार्य रूप से दिए जाने चाहिए ताकि वे स्वैपिंग मशीन खराब है, का बहाना बनाकर क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भुगतान रसीद देने से न बच सकें।
सरकार को ऐसे डीलरों के विरूद्ध सख्त कारवाई करनी चाहिए, जो क्रेडिट/डेबिट कार्ड से भुगतान को इंकार करें। विनिर्माण के क्षेत्र में इनपुट-टैक्स, क्रेडिट भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा जरिया है। आम ग्राहकों द्वारा छोड़े गये जीएसटी चालान व्यापारियों द्वारा झूठे इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने के लिए बेंचे जाते हैं। व्यापारियों द्वारा वास्तविक उपभोक्ताओं के बचे हुए जीएसटी चालान खरीदने वालों को नगदी का भुगतान किया जाता है, जिससे नगद मुद्रा ज्यादा प्रचलन में आती है। यही कारण है कि मुद्रा विमुद्रीकरण का मूल उद्देश्य विफल हो गया। मुद्रा प्रचलन में अनुमानित कमी आने की बजाय यह बढ़ी है। वास्तव में अत्यधिक इनपुट-टैक्स क्रेडिट के झूठे दावों से बचने के लिए निर्माताओं द्वारा इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिए किए गए दावों की अनिवार्य रूप से फॉरेंसिक ऑडिट होनी चाहिए। इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि 18 प्रतिशत जीएसटी स्लैब को समाप्त करने के साथ क्या इनपुट टैक्स क्रेडिट को विनिर्माण/उत्पादक क्षेत्रों से पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है? साथ ही क्या इसे केवल व्यापार योग्य वस्तुओं पर बरकरार रखा जा सकता है।
वकीलों को जीएसटी टैक्स के दायरे से बाहर रखना पूरी तरह से अतार्किक है। जीएसटी के लिए स्रोत पर ही कर कटौती को पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए। साथ ही एक सरकार की एक जेब से दूसरी जेब में टैक्स रखने के अनावश्यक सरकारी लेखकांकन से बचने के लिए सभी सरकारी भुगतानों को जीएसटी से छूट देने पर विचार करना चाहिए। इसी क्रम में यह अतार्किक है कि स्पीड पोस्ट जैसी कुछ प्रीमियम डाक सेवाओं पर कर लगता है, लेकिन अन्य डाक सेवाओं पर जीएसटी लागू नहीं होता। डाक शुल्क में भी सरलीकरण और तार्किकता की ज़रूरत है। पंजीकृत समाचार पत्रों और पोस्ट कार्डों को छोड़कर जिनकी कीमत अब एक रुपये हो सकती है, अंतर्देशीय डाक वस्तुओं के लिए सभी डाक टैरिफ 10 रुपये के गुणक में होनी चाहिए। वर्तमान में 200 ग्राम वजन वाले डाक पैकेट की कीमत स्थानीय स्पीड पोस्ट से 30 रुपये में भेजना संभव है। लेकिन अगर इसे साधारण डाक द्वारा भेजा जाए तो इसकी कीमत 50 रूपये बैठती है। इन अतार्किक प्रणालियों को दुरुस्त किया जाना चाहिए।
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