राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
अमरीका में डोनाल्ड ट्रम्प की सात स्विंग स्टेटों में बड़ी जीत ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नरेन्द्र मोदी को पूरा ज़ोर लगाने के लिए उत्साहित कर दिया है। उन्होंने महाराष्ट्र में ज़िला चंद्रपुर के चिमूर ब्लॉक में 20 नवम्बर को होने वाले विधानसभा चुनावों से संबंधित एक रैली को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस पार्टी की शाही परिवार कह कर आलोचना की और राहुल गांधी को शहज़ादा कहने से गुरेज़ नहीं किया। यह भी कि इस परिवार ने कभी भी दलितों, पिछड़े वर्गों एवं आदिवासियों का विकास नहीं होने दिया। यह भूल-भुला कर देश के संविधान में आरक्षण के माध्यम से सुविधाएं देने के कारण ही पिछड़े कारोबारी प्रधानमंत्री पद की सीढ़ी चढ़ने के योग्य हुए हैं।
दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय चिन्तक तथा राजनीतिज्ञ तो यह भी मानते हैं कि ट्रम्प की जीत वैश्वीकरण, प्रवास तथा उदारवाद की वर्तमान परिस्थितियों के लिए घातक हो सकती है। आज तक वैश्विक शक्तियां प्रवास के पक्ष में हैं और राष्ट्रवादी शक्तियां उसके विपरीत, परन्तु अब यह रूझान बदल रहा है। देखने में आया है कि अमरीका तथा कनाडा में ही नहीं पश्चिमी देशों में भी वे पार्टियां शक्तिशाली हुई हैं, जिन्होंने प्रवास के खिलाफ स्टैंड लिया है। उनका विचार है कि वैश्वीकरण की धारणा ने स्थानीय समाज को ठेस पहुंचाई है। वैसे भी अमरीका निवासी प्रवास, प्रवासियों तथा रूस-यूक्रेन युद्ध को अपनी आर्थिक कठिनाइयों की जड़ मानते हैं। ट्रम्प स्वयं अपने चुनाव अभियान में अमरीका को गार्बेज़ कैन (कूड़ादान) घोषित करके चुनाव जीते हैं। इधर प्रवास की राह में आने वाली सम्भावित बाधाएं पंजाब में अभिभावकों को प्रभावित कर सकती हैं, जो अपने बच्चों के भविष्य को प्रवास के साथ जोड़ कर देखने के आदी हो चुके हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति द्वारा माइक वाल्टज़ को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार चुने जाने पर अंतर्राष्ट्रीय नीति निर्माताओं की निम्नलिखित टिप्पणी पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है :
‘अमरीका से दुश्मनी खतरनाक हो सकती है, परन्तु दोस्ती आतंक’
अमरीका से दोस्ती का दावा करने वाले नरेन्द्र मोदी को अपना ध्यान कांग्रेस को शाही परिवार तथा राहुल को शहज़ादा कहने के स्थान पर अमरीका, चीन तथा इस्लामिक दुनिया से भविष्य की साझ की ओर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। तुरंत।
अंतर्जातीय विवाहों के दु:ख-सुख
इन दिनों की दो घटनाओं ने मुझे अंतर्जातीय विवाहों की बात करने के लिए प्रेरित किया है। पहली घटना का संबंध मेरे सांडू की मृत्यु से है। कमलेश टंडन के निधन से जिसने 64 वर्ष पहले पंजाब पब्लिक स्कूल नाभा का प्रमुख होते हुए मेरी पत्नी से छोटी कीर्तन प्रकाश कौर से नाता जोड़ लिया था। मुझ से दो वर्ष छोटा कमलेश पाकिस्तान के सियालकोट ज़िला में जन्मा था जिसके सिर से पिता का साया दो वर्ष की नन्ही आयु में ही उठ गया था। उसका उसकी विधवा मां ने मायके रह कर पालन-पोषण किया। देश के विभाजन के बाद परिवार का निवास हरिवल्लभ संगीत के लिए जाने जाते जालन्धर शहर में हो गया। गणित, अल्जबरा एवं विज्ञान में होशियार होने के कारण घर वाले उसे इंजीनियर बनना चाहते थे, परन्तु उनका मन संगीत में था।
उनकी इच्छापूर्ति के लिए उन्हें शांति निकेतन भेजा गया जहां उन्होंने तीन वर्ष पढ़ते हुए तबला, सितार तथा असराज में अच्छे अंक प्राप्त किये। इतने अच्छे कि वह अंतिम वर्ष में अपने सहपाठियों की कक्षाएं भी लेते रहे। यह बात अलग है कि अपने जीवन में ऊंची उपलब्धियां हासिल करने की भावना से उन्होंने इतिहास की एम.ए. ही नहीं की, बी.एड. तथा एम.एड. करके पंजाब पब्लिक स्कूल में अपनी पैठ बनाई तथा जुग्राफिया पढ़ाती सहकर्मी कीर्तन से शादी की। कीर्तन उन्हें राय साहिब कहती थी और वह कीर्तन को मैडम या दिल्लगी के तौर पर नुशहरे की रानी। नुशहरा पुन्नूंआ मेरा भी ससुराल है।
कमलेश टंडन की बड़ी उपलब्धि पंजाब पब्लिक स्कूल नाभा की 17 शाखाएं स्थापित करना था, जिनके चुनिंदा प्रतिनिधि बलौंगी वाले श्मशानघाट में उनके संस्कार के समय या सैक्टर 34 के गुरु घर उनकी अंतिम अरदास के समय दूरवर्ती स्थानों से पहुंचे हुए थे। अब जब मेरे बहुत बड़े ससुराल परिवार के बहुत-से सदस्य बिछुड़ गए हैं या सात समुद्र पार के देशों में जा बसे हैं, कमलेश की बेटियां एमी तथा बावा हमारा सहारा हैं। बावा के जीवन साथी कैप्टन संदीप संधू तथा एमी के राजीव कुमार सहित। अंतर्जातीय दूसरी जोड़ी जो इन दिनों में हमारी जानकार हुई, वह हमारे नए पड़ोसी हैं। चेन्नई वाला कृष्णास्वामी तथा उसकी पत्नी हरलीन कौर जिसका मायका गांव बसी पठाना ब्लाक का गांव घड़ूयां है। हमारा इस जोड़ी के साथ भी करीबी संबंध बन गया है।
जाते-जाते यह भी बता दूं कि 6 दशक पहले मेरे पंजाबी मित्र ने आंध्र प्रदेश की लड़की से विवाह कर लिया था। पहले-पहले पंजाबी माता-पिता के लिए अपनी बहू की तेलुगू भाषा बड़ी समस्या बनी रही, परन्तु जब उनके घर एक बच्चा बड़ा हो गया तो वह इंटरप्रेटर (व्याख्याकार) का कार्य करने लग पड़ा। बच्चा मां की भाषा (तेलुगू) भी समझता था और बाप की भाषा (पंजाबी) भी। दादा-दादी प्रत्येक काम के लिए बच्चे का सहारा लेते थे।
कम शब्दों में यह बात समेटनी हो तो अंग्रेज़ी का मुहाविरा ‘चाइल्ड इज़ द फादर ऑफ मैन’ (बच्चा व्यक्ति का बाप है) इस्तेमाल कर सकते हैं।
अंतिका
(तारा सिंह कामल)
जुआनी दी सिक सी, तुसीं हाल पुच्छो,
चली गई जुआनी, मेरा हाल पुच्छिया।
गुनाहां सणे पेश होया, तां रब्ब ने,
धरी कन्न ’ते दानी, मेरा हाल पुच्छिया।