सुखबीर का इस्तीफा

सुखबीर सिंह बादल ने शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। विगत कुछ वर्षों से पार्टी के भीतर भी और बाहर से भी इस्तीफे की मांग की जा रही थी। इसी कारण अकाली दल का एक गुट भी पार्टी से अलग हो गया था। इस गुट में बड़ी संख्या में वे अकाली नेता भी शामिल थे जिन्होंने बाद में अकाली दल के भीतर सुधार करने के लिए अभियान चलाने की घोषणा भी कर दी थी। सुखबीर सिंह बादल लगभग पिछले 16 वर्ष से अकाली दल (ब) के अध्यक्ष चले आ रहे थे। इससे पहले इतने वर्ष ही उनके पिता स. प्रकाश सिंह बादल ने भी दल की अध्यक्षता की थी। सुखबीर सिंह बादल की उम्र लगभग 62 वर्ष है। एक सम्पन्न परिवार से संबंधित होने के कारण उन्होंने अच्छे स्कूलों से शिक्षा प्राप्त की तथा विदेशी यूनिवर्सिटियों से भी बड़ी डिग्रियां प्राप्त कीं। वह तीन बार लोकसभा के सदस्य चुने गए तथा राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
वह वर्ष 2008 में अकाली दल (ब) के अध्यक्ष बने तथा वर्ष 2009 में अपने पिता के मुख्यमंत्री होते उप-मुख्यमंत्री बनाये गये। वह अकाली-भाजपा सरकारों के दौरान दो बार उप-मुख्यमंत्री बने। दशकों तक उनका राजनीतिक सितारा बुलंदियों पर रहा। केन्द्र में भाजपा से भागीदारी होने के कारण वह केन्द्रीय राज्य मंत्री भी बने। वर्ष 2020-21 में किसान आन्दोलन के दौरान शुरुआती हिचकिचाहट के बाद उनकी पत्नी हरसिमरत कौर बादल ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा भी दे दिया था, परन्तु  इससे पहले 2017 में हुए पंजाब विधानसभा के चुनाव में अकाली दल सिर्फ 15 सीटें ही जीत सका था। इन विधानसभा चुनावों में अकाली-भाजपा गठबंधन की हार हुई तथा कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुआ था। 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में भी अकाली दल 2 सीटें ही जीत सका था। इन चुनावों में वह एवं उनकी पत्नी हरसिमरत कौर ही जीत सके थे परन्तु वर्ष 2022 में पंजाब विधानसभा के चुनावों में वह जलालाबाद सीट से चुनाव हार गए थे। अकाली दल ने उस समय बसपा के साथ गठबंधन करके 117 सीटों पर चुनाव लड़ा था, परन्तु उन्हें सिर्फ तीन सीटें ही मिल सकी थीं। क्योंकि शिरोमणि अकाली दल में अध्यक्ष तथा अकाली-भाजपा सरकार में उप-मुख्यमंत्री के रूप में उनकी अहम भूमिका रही थी, जिस कारण अकाली दल की एक के बाद एक हार के कारण कई पक्षों से उनकी आलोचना भी शुरू हो गई थी तथा उनसे दल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी मांगा जाने लगा था। 
उनसे इस्तीफा मांगने वाले कई परिपक्व एवं बुजुर्ग अकाली नेता निराश होकर पार्टी छोड़ गए थे। धीरे-धीरे यह सुलगती हुई ब़गावत सामने आ गई जिसने पार्टी के भीतर बड़ी दरारें पैदा कर दीं। इस कारण अकाली दल और भी कमज़ोर होता गया। यहां तक कि अपने 100 वर्ष से भी अधिक लम्बे इतिहास में यह पार्टी इस तरह से कभी भी कमज़ोर नहीं हुई थी। इस संबंध में गहन जांच-पड़ताल करने के लिए दल की ओर से स्वयं अकाली नेता इकबाल सिंह झूंदा के नेतृत्व में एक कमेटी भी बनाई गई थी, जिसकी रिपोर्ट में अकाली नेतृत्व पर बड़ी उंगलियां उठाई गई थीं तथा अकाली दल के संगठात्मक ढांचे और कार्यशैली में भी बड़े बदलाव करने के सुझाव दिए गए थे? परन्तु यह रिपोर्ट अलमारी तक ही सीमित होकर रह गई थी। सक्रिय हुए ब़ागी अकाली गुट ने अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार के समक्ष सुखबीर सिंह बादल के विरुद्ध सम्पर्क किया था तथा अकाली शासन के दौरान हुई अनेक त्रुटियों एवं गलतियों संबंधी एक पत्र भी सौंपा था, जिसके आधार पर सुखबीर सिंह बादल को श्री अकाल तख्त साहिब से ‘तन्खाईया’ करार दिया गया था, परन्तु पिछले अढ़ाई मास से उन्हें तख़्त की ओर से तन्खाह नहीं लगाई गई थी। 
विगत दिवस उन्होंने अकाल तख्त साहिब को इस संबंध में शीघ्र फैसला करने हेतु निवेदन किया था। पैदा हुए ऐसे हालात के दृष्टिगत सुखबीर सिंह बादल के इस्तीफे ने जहां पंथक हलकों में राहत का अहसास पैदा किया है, वहीं आगामी समय में अकाली नेताओं से यह उम्मीद भी की जाने लगी है कि वे एक सामूहिक भावना से एकजुट होकर संयुक्त रूप में पार्टी के नए ढांचे संबंधी कोई ऐसा फैसला लें जिससे अकाली कतारों में पुन: बड़ी सक्रियता एवं उत्साह पैदा हो सके तथा वह पहले की भांति ही अपनी ऐतिहासिक  भूमिका निभाने के लिए समर्थ हों। सुखबीर सिंह बादल के इस्तीफे के बाद देश-विदेश से ऐसे उम्मीद भरे फैसले का ही इंतज़ार किया जाने लगा है जो लोगों के मन में पुन: एक बड़ा विश्वास पैदा कर सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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