कभी 85 मंदिरों का शहर हुआ करता था खजुराहो!
दिल्ली से खजुराहो की एक मात्र फ्लाइट से जैसे ही शाम सवा पांच बजे खजुराहो एयरपोर्ट पहुंचा तो एयरपोर्ट के बाहर हाथों में वेलकम की तख्ती लेकर बड़ी संख्या में टैक्सी ड्राइवर खड़े थे, उन्हीं में से एक ने कहा, साहब कहां जाओगे? खजुराहो में कही भी जाओ एक ही किराया है साढ़े तीन सौ रुपये। मैं बिना कोई समय गंवाये अपनी पत्नी सुनीता के साथ टैक्सी में बैठ गया और होटल जा पहुंचे जहां रात्रि विश्राम के बाद हमें पन्ना के लिए निकलना था। जहां ठहरे थे वहीं सामने एक खूबसूरत झील और विश्व धरोहर घोषित खुजराहो की मंदिर श्रंखला थी, जिन्हें देखने के लिए ऑन लाइन प्रति व्यक्ति 35 रुपये टिकट खुद के मोबाईल से और एजेंट द्वारा 40 रुपये लगते है।
कहते है चंदेल वंश के राजाओं के शासनकाल में खजुराहो में तांत्रिक समुदाय की उपासनामार्गी शाखा का अत्याधिक बोलबाला हुआ करता था। इस समुदाय के लोग योग और भोग दोनों को ही मोक्ष का साधन माना करते थे। इसी कारण खजुराहो को तंत्र साधना की नगरी भी कहा गया है।
मध्यप्रदेश के छतरपुर ज़िले में स्थित खजुराहो के ऐतिहासिक मंदिर विश्व धरोहर में शामिल है। यहां के मंदिरों में भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की बेमिसाल कलाकारी देखने को मिलती है। इन मंदिरों को देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं। चंदेल वंश के राजाओं ने यहां जो काम कला से युक्त प्रतिमाएं मंदिरों की दीवारों पर बनवाई थीं, उनका रहस्य आज भी समझ से परे है। जिस भगवान शिव के मंदिर की दीवारों पर ये प्रतिमाएं उकेरी गई है, उन्ही भगवान शिव को पवित्रता का पर्याय माना गया है। आज भी हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर इन पवित्र मंदिरों में कामकला की प्रतिमाओं को क्यो उकेरा या फिर तराशा गया, हालांकि यहां आध्यात्म, नृत्य मुद्राओं और प्रेम रस की प्रतिमाओं को भी स्थान दिया गया है। अपने समय मे चंद्रवर्मन एक प्रभावशाली राजा माना गया है। चंद्रवर्मन की माता हेमवती ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और मंदिरों के निर्माण के लिए कहा। चंद्रवर्मन ने मंदिरों के निर्माण के लिए खजुराहो को चुना और खजुराहों को अपनी राजधानी बनाकर उन्होंने यहां 85 वेदियों का एक विशाल यज्ञ किया, बाद में 85 वेदियों के स्थान पर ही 85 मंदिर बनवाए गए थे, इन 85 मंदिरों में से आज यहां केवल 22 मंदिर ही शेष हैं।
14वीं शताब्दी में चंदेल खजुराहो से प्रस्थान कर दिए थे और उसी के साथ वह दौर भी खत्म हो गया था। इन मंदिरों को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी गई है। यहां भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की बेमिसाल कलाकारी देखने को मिलती है। जिसे देखने के लिए हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं। खजुराहो स्मारक समूह को सन् 1986 से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और इसे भारत के सात आश्चर्यों में से एक माना जाता है। इस शहर का नाम, प्राचीन काल में खर्जुरावाहक संस्कृत शब्द खर्जुर से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘खजूर’ ये शहर एक बार सिर्फ खजूर के पेड़ों से ही घिरा हुआ था, इसलिए ही इसका नाम खजुराहो रख दिया गया। इसका नाम खजुरा-वाहक भी रखा गया। जो भगवान शिव का एक प्रतीकात्मक नाम है। इन मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच चंदेल वंश के दौरान किया गया था। इस मंदिर की दीवारों पर बनी सिर्फ 10 प्रतिशत नक्काशी काम कला से जुड़ी हैं इसके अलावा यहां की 90 प्रतिशत नक्काशी उस वक्त के लोगों के जीवन को प्रदर्शित करती है। इस मंदिर में संगीतकारों, किसानों, कुम्हारों और महिलाओं की मूर्तियां भी बनाई गई है। खजुराहो मंदिर एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। कैप्टन टी.एस. बर्ट ने वर्ष 1838 में इन मंदिरों को खोजा और दुनिया के सामने पेश किया। उस वक्त बर्ट एक ब्रिटिश सेना के कप्तान थे। उनकी पोस्टिंग खजुराहो में थी। यह पन्ना से खजुराहो 40 किमी. की दूरी पर है। खजुराहो बुंदेलखंड इलाके में पड़ता है। प्राचीन समय में इसे वत्स नाम से, मध्य काल में जेजाक भुक्ति के नाम से और 14वीं शताब्दी के बाद बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है। खजुराहों न ज़िला है, न तहसील फिर भी दुनिया भर के लोग खजुराहों आकर यहां के रमणीय मंदिरों का लुत्फ उठाते है।