कल्पना सोरेन तथा प्रियंका गांधी वाड्रा की राजनीति
इस बार लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में दो महिलाओं की राजनीति से पर्दा उठाया है। कल्पना सोरेन का विशेषकर। 34 वर्षीय कल्पना 4 मार्च, 2024 को पति हेमंत सोरेन के जेल जाने से एक माह बाद अचानक झारखंड के राजनीतिक मंच पर आईं और उन्होंने 1,19,372 मत हासिल करके अपनी विरोधी मुनिया देवी को 17, 142 मतों से हराया। उनके चुनाव प्रचार में इतना दम था कि कई क्षेत्रों के लोग उसकी उपस्थिति चाहते थे और बार-बार उन्हें अपने क्षेत्र में बोलने के लिए बुलाते रहे थे।
52 वर्षीय प्रियंका गांधी वाड्रा वायनाड लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर लोकसभा की सदस्य बनी हैं। चाहे वह रायबरेली तथा अमेठी से अपनी मां सोनिया गांधी तथा भाई राहुल गांधी के पक्ष में सफल चुनाव रैलियों के लिए जानी जाती थीं और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव होने के कारण भी, परन्तु वायनाड की जीत ने उनका कद और भी ऊंचा किया है। यहां उन्हें 622338 वोट पड़े जबकि दूसरे नम्बर पर आने वाले विरोधी को 211407 तथा तीसरे नम्बर वाले को 109939 वोट पड़े।
दोनों महिलाओं की जीत ने भाजपा के बड़े नेताओं के पंडित नेहरू के खानदान को शाही परिवार तथा राहुल गांधी को शहज़ादा कहने के व्यंग्य की भी हवा निकाल दी है। सोरेन जोड़ी ने झारखंड में बांग्लादेशी शरनार्थियों की आमद वाले ताने का जवाब भी जमकर दिया है। इस विष्य को राज्य सरकार के स्थान पर केन्द्र का कह कर। उन्होंने अपने राज्य में आपसी साझ की बात करते हुए अशर्फुल शेख का जीता-जागता प्रमाण दिया, जिसने नर्तानपुर गांव की हिन्दू महिला झरना मरांडी से शादी की हुई है।
लाहौर में जन्मी सुरजीत तथा सुरेन्द्र कौर
मेरी मित्र मंडली में पाकिस्तान से आए शरनार्थियों द्वारा उधर रह गईं रहमतों की बात करते हुए लाहौर का गुणगान करते समय एक वाक्य बोलना कि ‘जिसने लाहौर नहीं देखा, वह जन्मा ही नहीं।’ हम जैसों के पास कोई उत्तर न होता। मुश्किल से मेरी शादी ने मुझे बोलना शुरू करवा दिया। मैंने लाहौर तो नहीं देखा था, परन्तु उस शहर में जन्म लेने वाली को विवाह कर लाया था। गत माह की 25 तारीख को यह भी पता चला कि पंजाब की कोयल सुरेन्द्र कौर भी लाहौर में पैदा हुई थीं। काश, इस बात का ज्ञान मुझे 68 वर्ष पहले होता, जब अपने विवाह के आठ वर्ष पहले मैं 1952 में उन्हें दिल्ली से करनाल लेकर गया था। वहां सुरेन्द्र कौर तथा आसा सिंह मस्ताना का मेरे मित्र कुलवंत सिंह विर्क के भतीजे की शादी में गाने का कार्यक्रम था। अब तो मेरे लिए यह बात भी नई थी कि सुरेन्द्र कौर के पिता का नाम बिशन दास था, जिन्होंने माया देवी से शादी कर ली थी। यह तो पता नहीं कि सुरेन्द्र कौर के पिता रोज़ी-रोटी के लिए क्या करते थे, परन्तु उनकी माता संगीत जगत को समर्पित थीं। वही थीं, जिन्होंने अपनी बेटियों सुरेन्द्र कौर, प्रकाश कौर तथा नरेन्द्र कौर को गीत संगीत के मार्ग पर ला दिया था। सुरेन्द्र कौर ने प्राथमिक शिक्षा बड़े गुलाम अली खान (पटियाला घराना) के भांजे इनायत हुसैन तथा पंडित कुंदन लाल से प्राप्त की थी। इस कला ने उन्हें 13 वर्ष की कम आयु में लाहौर रेडियो का कार्यक्रम दिलाया और अंत में ‘पंजाब की कोयल’ ‘लोक गीतों की रानी’ बन गईं।
जहां तक सुरजीत का संबंध है, उनके पिता लाहौर में वकील थे तथा दादा सीआईडी अधिकारी जो लाहौर रेलवे स्टेशन पर चारपाई पर बैठे भगत सिंह की तस्वीर में उनसे पूछताछ कर रहे दिखाई देते हैं।
सुरजीत आयु में तो सुरेन्द्र कौर से अढ़ाई माह बड़ी हैं, परन्तु पूरी आयु सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थानों में समाज सेवा, परिवार नियोजन तथा महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण में गुम रही हैं। पंजाब स्त्री सभा की अध्यक्षता से इस्तीफा तो कल की बात है। उन्हें यह पता है कि उनका जन्म जिस घर में हुआ था, उसे लाल कोठी कहते थे। यह भी कि 1947 के बाद घर में सुरजीत परिवार के जानकार हफीज़ुल्ला ने आंखों का अस्पताल खोल लिया था।
मेरा पहली बार लाहौर जाने का सबब 1998 में बना, जब मैं देश सेवक अखबार का सम्पादक था। तब गोवा के राज्यपाल रह चुके कर्नल प्रताप सिंह गिल ने वहां के नवाज़ शरीफ के साथ देश के विभाजन से पहले की ग्रामीण साझ बारे बात करके अपने-अपने जानकारों को पाकिस्तान ले जाने का कार्यक्रम बना लिया था। सुरजीत भी मेरे साथ थीं। चाहे उसके बाद भी हम दोनों तीन बार पाकिस्तान गए हैं। लाहौर सहित। अब तो पुराने मुहाविरों के अनुसार हम तीन बार जन्म ले चके हैं जिसमें सुरजीत का सचमुच वहां जन्म लेना शामिल नहीं। जहां तक सुरेन्द्र कौर का संबंध है, वह भी लोक-गायकी के कार्यक्रम के लिए लाहौर जाती रही हैं।
देश के विभाजन के बाद तो लाहौर जाना और भी कठिन हो गया है। सुरेन्द्र कौर 2006 में अलविदा कह गई हैं और सुरजीत 95 वर्ष की हो गई हैं। फिर भी यदि कोई मेरे जीवित रहते अपने लाहौर में जन्म लेने की बात करना चाहे तो इस कॉलम में जगह मिल सकती है।
अंतिका
(रावी पार से बुशरा एजाज़)
मैं रोई मैं रज्ज के रोई, मैैंनूं किते ना आवे कल्ल,
मैं उधड़ी जावां अंदरों, मेरी लहिंदी जावे खल्ल।
नी तत्तिये हिज़र दुपहरे, हुण मेरे पासें टल,
आ विहड़े सूरज मेरिया, मेरी ज़ुल्फां दे विच्च ढल।।