कांग्रेस को अपनी मौजूदा रणनीति में बदलाव करने की ज़रूरत

भारत के मतदाता पिछले कुछ समय से कांग्रेस को ऊपर-नीचे कर रहे हैं और यह प्रवृत्ति पिछले डेढ़ साल में और भी स्पष्ट हो गयी है। विशेषकर मई 2023 में कर्नाटक चुनाव के समय से जब लोगों ने भाजपा को सत्ता से बाहर करते हुए कांग्रेस को भारी बहुमत से जिताया था। इस अवधि के दौरान देश भर में लगभग हर छह महीने में मतदाताओं का मूड बदलता हुआ देखा गया है, खासकर कांग्रेस के पक्ष में या उसके खिलाफ। नवम्बर 2023 में राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव, अक्तूबर 2024 में हरियाणा चुनाव और अब नवम्बर 2024 में महाराष्ट्र चुनाव में मिली असफलता ने स्पष्ट रूप से दिखा दिया है कि अगर कांग्रेस को देश भर में आगामी चुनावों में भाजपा से मुकाबला करना है तो उसके सामने महत्वपूर्ण कार्य हैं, जिन्हें उसे करना ही होगा। 
कांग्रेस को चुनावी रुझानों और मतदाताओं के बीच मूड में  तेज़ी से आने वाले परिवर्तन को समझना होगा जो पार्टी का समर्थन और उसकी अस्वीकृति करते हैं। जैसा कि हम छह महीने के भीतर होने वाले चुनावों में देखते हैं। वही मतदाता जिन्होंने मई 2024 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों को बहुत उत्साह से वोट दिया था, जो भाजपा और उसके सहयोगियों के प्रति अपनी घृणा के दर्शा रहे थे—जैसे कि हरियाणा और महाराष्ट्र में। कुछ महीने बाद अक्तूबर और नवम्बर में हुए चुनावों में भाजपा और सहयोगियों के पक्ष में मतदान किया, जो ‘इंडिया’ ब्लॉक में कांग्रेस और उसके सहयोगियों के प्रति अपनी अस्वीकृति दर्शाते हैं। यह एक बहुत ही आश्चर्यजनक रूझान है जो प्रथम दृष्टया दर्शाता है कि अब वोटरों को किसी भी पार्टी या गठबंधन द्वारा हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इस स्थिति में कांग्रेस के पास विपक्ष में किसी भी अन्य राजनीतिक दल की तुलना में सर्वाधिक दांव पर है, क्योंकि यह केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। कांग्रेस को वास्तव में वर्तमान चुनावी रुझानों को गहराई से समझने की आवश्यकता है, जो कुछ ही महीनों के भीतर अपने मूड को बदलने की प्रवृत्ति दिखाते हैं और अंतत: पार्टी के चुनावी भाग्य को प्रभावित करते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले डेढ़ साल में मतदान के रूझान में बहुत भिन्नता देखी गयी है, जो क्षेत्र दर क्षेत्र और जनसांख्यिकीय पृष्ठभूमि बदलने के साथ ही बदल जाते हैं। कांग्रेस को न केवल इस रूझान को गहराई से समझने की आवश्यकता होगी, बल्कि मतदाताओं के तेज़ी से बदलते व्यवहार के कारणों को भी समझना होगा।
कांग्रेस को सबसे पहले हार का विश्लेषण करने की आवश्यकता है और फिर हार के कारणों की। हार का विश्लेषण करने के अलावा उसे आत्मनिरीक्षण करने, अपने अभियान को तैयार करने, उम्मीदवारों के चयन, सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे और मतदाताओं को स्पष्ट रूप से संदेश देने में पार्टी द्वारा की गई रणनीतिक गलतियों की पहचान करने की आवश्यकता। कांग्रेस नेतृत्व वास्तव में क्या करना चाहता है, का संदेश भी स्पष्ट रूप मतदाताओं तक संप्रेषित करना होगा। हाल के सभी चुनावों में कांग्रेस पार्टी को मिली असफलताओं का भी मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
पार्टी में नये विचारों को शामिल करने और संगठन तथा उसकी नीतियों के प्रति दृष्टिकोण में अधिक संतुलन लाने के लिए पुराने और नये कंधों दोनों की आवश्यकता है। पिछले कुछ चुनावों ने दिखाया है कि कांग्रेस को रणनीतिक गठबंधनों के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है। क्षेत्रीय दलों के साथ सार्थक गठबंधन बनाने से हर जगह लाभ हुआ है और जहां भी क्षेत्रीय कांग्रेस नेतृत्व और क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व के बीच मतभेद थे, कांग्रेस ने बहुत खराब प्रदर्शन किया। किसी भी सार्थक और सफल गठबंधन को बनाने में कांग्रेस को वैचारिक स्पष्टता बनाये रखने की आवश्यकता है। राज्य और केंद्रीय कांग्रेस नेतृत्व को अलग-अलग सुरों पर बात करते नहीं सुना जाना चाहिए। 
कांग्रेस का संचार सम्पर्क नेटवर्क कमजोर लगता है। इसे विरोधाभासों से बचते हुए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर एक सुसंगत कथा विकसित करनी होगी। यदि ऐसा कोई जटिल मुद्दा उठता है, तो पार्टी को चुप नहीं रहना चाहिए बल्कि स्पष्ट सैद्धांतिक रुख अपनाना चाहिए। मतदाताओं को भ्रम पसंद नहीं है। भाजपा के डिजिटल प्लेटफॉर्म के मुकाबले के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया की उपस्थिति को काफी मजबूत करने की ज़रूरत है। यात्राएं, रैलियां, सार्वजनिक बैठकें आयोजित करना और पार्टी की छवि को फिर से बनाना समय की ज़रूरत है। 
देश के सामने मौजूद कई मुद्दों पर सैद्धांतिक रुख के अलावा कांग्रेस को अपने शासन के मॉडल को भी पेश करना चाहिए, जहां वह राज्यों में शासन करती है। पार्टी नेतृत्व को सरकार की नीतियों, सत्तारूढ़ भाजपा की चूक और कमियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना चाहिए और लोगों के सामने ऐसी भाषा में विकल्प प्रस्तुत करना चाहिए, जिसे वे बिना किसी भ्रम के समझ सकें। भूख, स्वास्थ्य, शिक्षा को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है। बेरोज़गारी, महंगाई, मूल्य वृद्धि और असमानता पर अधिक ज़ोर दिया जाना चाहिए। (संवाद)

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