अमीरों पर सुपर टैक्स लगाने के मुद्दे पर केन्द्र सरकार चुप क्यों ?
नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के दूसरे बजट को संसद में पेश किये जाने में दो महीने से भी कम समय बचे हैं। वित्त वर्ष 2025-26 के इस केन्द्रीय बजट को अगले साल फरवरी में संसद में पेश किया जाना है। वित्त मंत्रालय में बजट की कवायद जारी है और विकास व्यय को पूरा करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। ब्राज़ील में आयोजित जी-20 देशों की हाल ही में हुए शिखर सम्मेलन ने अपने घोषणा-पत्र में गरीब देशों में भूख से लड़ने और अन्य देशों में समावेशी विकास की लागतों का ध्यान रखने के लिए समूह के प्रयासों के एक हिस्से के रूप में अति धनवानों पर कर लगाने का आह्वान किया है। भारत इस घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षरकर्ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया था। भारत के लिए बजट 2025-26 के माध्यम से प्रस्ताव को लागू करना अनिवार्य है।
संसदीय लोकतंत्र में किसी भी सरकार के लिए लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पहले दो बजट वंचितों के जीवन स्तर को सुधारने के उद्देश्य से दिशा-निर्देशों को सही करने का एक बड़ा अवसर देते हैं। अभी भारतीय अर्थव्यवस्था की दो प्रमुख चुनौतियों में बड़े पैमाने पर नौकरियों का सृजन और निचले स्तर के लोगों की आय में सुधार शामिल है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वे बेरोज़गारों, खासकर महिलाओं और शिक्षित युवाओं के लिये नयी नौकरियों के सृजन के कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिए सुपर अमीरों से अतिरिक्त संसाधन जुटायें।
प्रसिद्ध व्यवसायियों और फिल्मी सितारों के परिवारों में हुई शादी की धूमधाम ने दिखाया है कि एक सुपर अमीर व्यक्ति अपने बेटे या बेटी की शादी के लिए किस हद तक धन खर्च कर सकता है। भारत में सुपर अमीरों का एक ट्रिलियन डॉलर का विवाह उद्योग है। इनमें उद्योगपति, खिलाड़ी, फिल्मी हस्तियां और उच्च पदस्थ राजनेता शामिल हैं। उनकी शादी के खर्च की जांच की जानी चाहिए और एक सीमा से अधिक कर लगाया जाना चाहिए।
एक अनुमान के अनुसार भारत में 170 से अधिक डॉलर-अरबपति हैं और यह संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। दो प्रतिशत कर से 1.5 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे। यह राशि श्रम प्रधान परियोजनाओं में रोज़गार सृजन सहित विकास कार्यक्रमों पर खर्च की जा सकती है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. प्रणब बर्धन द्वारा किये गये विश्लेषण के अनुसार सरकार द्वारा संपन्न लोगों को दी जाने वाली प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी को कम करके अतिरिक्त संसाधन उत्पन्न किये जा सकते हैं।
भारत में विरासत और संपत्ति कर शून्य है और पूंजीगत लाभ कर अमरीका की तुलना में बहुत कम है। कर प्रणाली अभी भी अमीरों के पक्ष में झुकी हुई है। उदाहरण के लिए महामारी के संदर्भ में केन्द्र सरकार ने एक ही झटके में कॉर्पोरेट टैक्स की दर कम कर दी और सरकारी खजाने को 18.4 खरब रुपये का नुकसान हुआ। डॉ. बर्धन का अनुमान है कि 10 खरब रुपये के फंड से भारत में 200 लाख नौकरियां पैदा की जा सकती हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत सहित वैश्विक स्तर पर कंपनियों द्वारा कर चोरी पर हाल ही में किये गये अध्ययनों को अवश्य पढ़ा होगा। वकालत समूह टैक्स जस्टिस नेटवर्क द्वारा 2023 के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर के देशों को टैक्स पनाहगाह के कारण अगले दशक में कर राजस्व में 48 खरब डालर तक का नुकसान हो सकता है। इन पनाहगाहों को वैश्विक कंपनियों के साथ-साथ भारत के कई अमीरों द्वारा संरक्षण दिया जाता है। इस साल की शुरुआत में यूरोपीय संघ कर वेधशाला द्वारा एक रिपोर्ट में पाया गया कि दुनिया भर के अरबपतियों की प्रभावी कर दरें उनकी संपत्ति के 0 प्रतिशत से 0.5 प्रतिशत के बराबर हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि महामारी के वर्षों के दौरान जबकि गरीब और अन्य लोग पीड़ित थे, बड़ी कंपनियों के मुनाफे और अमीर व्यक्तियों की संपत्ति में वृद्धि हुई। वास्तव में महामारी को दौरान असमानता और बढ़ गयी।
भारत के लिए सुपर रिच पर विशेष कर लगाना बहुत समय से लंबित है। इस साल जनवरी में जारी नवीनतम ऑक्सफैम रिपोर्ट सहित सभी हालिया रपटों से पता चलता है कि असमानता लगातार बढ़ रही है। महामारी और महामारी के बाद के वर्षों में बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के गरीब लोगों की जीवन स्थिति दयनीय है जबकि उच्च मध्यम वर्ग और अमीरों की आय में वृद्धि हुई है। असमानता के बढ़ने का भारत में विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि आम नागरिकों को पश्चिम और लैटिन अमरीका के कई अन्य देशों और अन्य विकासशील देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से संरक्षित नहीं किया जाता है।
ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार भारत केवल पांच हाथों में बढ़ते औद्योगिक संकेन्द्रण का सामना कर रहा है और अरबपतियों, निजी इक्विटी फंडों और मित्र पूंजीपतियों को समृद्ध कर रहा है, जिससे लोगों के बीच असमानता और गरीबी का अभूतपूर्व स्तर बढ़ रहा है। दलितों को निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उच्च और असहनीय आउट-ऑफ पॉकेट शुल्क का सामना करना पड़ रहा है।निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में वित्तीय बहिष्कार और दोनों में खुला भेदभाव।
कई वर्षों से ऑक्सफैम ने बढ़ती और अत्यधिक असमानता के बारे में चिंता जतायी है। 2024 में सबसे बड़ा खतरा यह है कि ये असाधारण चरम सीमाएं नयी सामान्य स्थिति बन जायेंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉर्पोरेट और एकाधिकार शक्ति एक निरंतर असमानता पैदा करने वाली मशीन है, साथ ही यह भी कहा गया है कि हम एक दशक के विभाजन की शुरुआत के दौर से गुज़र रहे हैं। सिर्फ तीन वर्षों में हमने एक वैश्विक महामारी, युद्ध, जीवन-यापन की लागत का संकट और जलवायु परिवर्तन का अनुभव किया है। प्रत्येक संकट ने खाई को चौड़ा किया है—अमीरों और गरीबी में रहने वाले लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि कुलीनतंत्र और विशाल बहुमत के बीच भी।
नवम्बर शिखर सम्मेलन में जी-20 राष्ट्रों ने यह सुनिश्चित करने के लिए सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की कि सुपर रिच पर कर लगाया जाये। जी-7 ने भी कम से कम इस बात पर सहमति व्यक्त की कि सुपर रिच पर कम कर लगाना एक समस्या है जिसे ठीक किया जाना चाहिए। भारत अब राजनीतिक रूप से स्थिर है और दुनिया के अन्य देशों की तुलना में विकास दर आरामदायक है, लेकिन असली समस्या असमानता का बढ़ना और भारी बेरोज़गारी है। मोदी सरकार का बेरोज़गारी पैदा करने वाला विकास मॉडल अपने तीसरे कार्यकाल में भी जारी है। मोदी सरकार के पास इस बार 2025-26 के बजट प्रस्तावों में सुपर अमीरों पर कर लगाकर भारी संसाधन जुटाने और उन अतिरिक्त निधियों को रोजगार सृजन और वंचितों की आय में सुधार के लिए सुनियोजित करने का एक बड़ा अवसर है। 2025-26 के बजट में इस कर को लागू करने की मांग में ‘इंडिया’ ब्लॉक पार्टियों को भी समान रूप से मुखर होना चाहिए। एक बार में भारी मात्रा में अतिरिक्त संसाधन जुटाने का यही एकमात्र तरीका है। (संवाद)