बांग्लादेश भारत की नाराज़गी से बेपरवाह क्यों ?
बांग्लादेश सरकार पर भारत सरकार की नाराज़गी का कोई असर नहीं होता दिख रहा है। वहां हिन्दू अल्पसंख्यकों पर कट्टरपंथी मुस्लिमों के हमले हो रहे हैं, उनके घरों को लूटा जा रहा है, उनमें आग लगाई जा रही है। हिन्दू संतों की गिरफ्तारी को लेकर भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से नाराज़गी ज़रूर जताई है लेकिन तब भी बांग्लादेश सरकार ने इस्कॉन के संत चिन्मय प्रभु को रिहा नहीं किया है और उलटे उनके दो अन्य सहयोगियों को भी गिरफ्तार कर लिया है। दरअसल बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्ता-पलट होने के बाद से हिन्दू अल्पसंख्यकों का जो लगातार उत्पीड़न हो रहा है, उसे रुकवाना भारत की शक्तिशाली कही जाने वाली सरकार के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। लेकिन भारत सरकार के प्रयास सफल नहीं हो रहे हैं तो उसकी वजह यह है कि उसके प्रयासों में नैतिक बल नहीं है यानी जो काम वह बांग्लादेश में रुकवाना चाहती है, वही काम अपने देश में ज़ोर-शोर से करवा रही है। यहां आए दिन किसी न किसी मस्जिद का सर्व हो रहा है और उसके नीचे मंदिर तलाशे जा रहे हैं। सरकार समर्थक संगठनों की ओर से मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की अपीलें सोशल मीडिया में की जा रही हैं। हिन्दू इलाके में किसी मुसलमान के मकान खरीदने या किराए पर लेने का विरोध किया जा रहा है। सब्ज़ी, फल या चूड़ियां बेचने वाले मुसलमान को अपने मोहल्ले या कॉलोनी में घुसने से रोका जा रहा है और स्थानीय प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। ऐसे में भारत सरकार की अपील को बांग्लादेश की सरकार क्यों गंभीरता से लेगी?
अब रुपये का गिरना फायदेमंद है!
प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब एक डॉलर की कीमत 63 रुपये के आसपास पहुंची थी। रुपये की गिरती कीमत को लेकर मीडिया ने हाहाकार मचा रखा था। खुद नरेन्द्र्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देश भर में घूमते हुए कह रहे थे कि जैसे-जैसे रुपये की कीमत गिर रही है, वैसे-वैसे देश की प्रतिष्ठा भी गिर रही है। उसी दौर में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कटाक्ष करते हुए यह भी कहा था कि रुपये की कीमत प्रधानमंत्री की उम्र को छूने की ओर बढ़ रही है। उनके इन बयानों के कई वीडियो अब भी सोशल मीडिया में तैरते रहते हैं। बहरहाल अब मोदी के दस साल के शासन में रुपये की कीमत गिरते-गिरते 85 तक पहुंच गई है। मोदी तो अब रुपये की गिरावट पर कभी कुछ नहीं बोलते हैं, लेकिन उनकी सरकार का कहना है कि रुपये की कीमत का गिरना देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक है। वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि रुपये की गिरती कीमत से भारत को निर्यात में फायदा होगा यानी भारत का जो सामान दूसरे देशों में जाता है, उसकी कीमत ज्यादा मिलेगी क्योंकि डॉलर महंगा है। उन्होंने कहा कि कुल मिला कर इससे देश की अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी। दो साल पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा था कि दरअसल रुपया कमज़ोर नहीं हो रहा है बल्कि डॉलर मज़बूत हो रहा है। इन बेहूदा बयानों पर अब मीडिया खामोश रहता है।
भाजपा का दबदबा
भाजपा ने केन्द्र में सरकार बनाने के बाद बड़ी सावधानी से पूर्वोत्तर को साधने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद राम माधव काफी समय तक वहां की ज़िम्मेदारी संभाले रहे। हिमंता बिस्वा सरमा को कांग्रेस से लाकर उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। राजग से अलग वहां एनईडीए यानी नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस बनाया गया, जिसका ज़िम्मा हिमंता बिस्व सरमा को दिया गया। बाद में उन्हें असम का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। लेकिन ऐसा लग रहा है कि अब इस गठबंधन में दरार आ रही है। सब कुछ पहले की तरह सामान्य नहीं है। मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद हालात ज्यादा बदले हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को काबू करने में नाकाम रहा है और बीरेन सिंह अपने निजी राजनीतिक हितों की वजह से राज्य में हिंसा नहीं रोक पाए। इसका असर मिज़ोरम और मेघालय में दिख रहा है। मिज़ोरम की मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार ने खुल कर बीरेन सिंह का विरोध किया है, जिसके जवाब में बीरेन सिंह ने मिज़ोरम की सरकार को देश विरोधी सरकार कहा है। इसके बाद से मिज़ो नेशनल फ्रंट के गठबंधन से अलग होने की चर्चा है। इसी तरह मेघालय में सत्तारूढ़ एनपीसी ने मणिपुर सरकार से समर्थन वापिस ले लिया है। उसके सात विधायक हैं। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा और मिज़ोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा तेवर दिखाते रहते हैं। पूर्वोत्तर की दूसरी प्रादेशिक पार्टियां भी हिमंता बिस्व सरमा के एकछत्र नेता वाले तेवर से परेशान रहती हैं।
अकाली दल का प्रभाव
पंजाब में लम्बे समय तक राजनीति का केन्द्र रहे शिरोमणि अकाली दल का असर लगातार कम होता जा रहा है। अब श्री अकाल तख्त साहिब ने पार्टी के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल को तन्खाहिया घोषित करने के बाद धार्मिक सज़ा सुना दी है। उन्हें श्री दरबार साहिब अमृतसर सहित कई गुरुद्वारों में दो-दो दिन की सेवा करनी है। चूंकि उनके पैर में फ्रैक्चर है इसलिए मुश्किल सेवा नहीं दी गई है, लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि श्री अकाल तख्त साहिब ने उनके दिवंगत पिता प्रकाश सिंह बादल को दिया गया ‘फख्र-ए-कौम’ का खिताब भी वापिस ले लिया है। इसका प्रदेश की राजनीति पर बड़ा असर होगा। श्री अकाल तख्त साहिब ने दिखाया है कि वह दिवंगत व्यक्ति को भी उसकी किसी पुरानी गलती के लिए धार्मिक सज़ा सुना सकता है। गौरतलब है कि तन्खाहिया घोषित होने के बाद सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था और चार सीटों पर हुए उप-चुनाव में भी हिस्सा नहीं लिया था। अकाली राजनीति के जानकारों का कहना है कि धार्मिक सज़ा सुनाए जाने और ‘फख्र-ए-कौम’ का खिताब वापिस लिए जाने से बादल परिवार का असर घटेगा। पार्टी पर भी उसका दबदबा अब कम होगा और वोट की राजनीति पर भी असर होगा। हालांकि उनका कोई विकल्प अभी अकाली दल में नहीं है, इसलिए कुछ जानकारों का मानना है कि सज़ा पूरी करने के बाद सुखबीर मज़बूत होकर निकलेंगे और उनकी पार्टी फिर से पहले की तरह स्थापित होगी। दोनों में से जो भी स्थिति बनेगी उससे पंजाब की राजनीति बहुत प्रभावित होगी।
अब लाभार्थी प्रमुख
भाजपा ने राज्यों में कई किस्म के प्रमुख बना रखे हैं। उनमें से पन्ना प्रमुख सबसे चर्चित है। उनके बारे में हर आदमी जानता है। भाजपा ने मतदाता सूची के हर पन्ने का एक प्रमुख नियुक्त किया है। एक पन्ने पर जितने भी मतदाताओं के नाम होते हैं, उनसे सम्पर्क करने, उनमें से भाजपा समर्थकों की पहचान करने और उन्हें मतदान केंद्र पर लाकर वोट डलवाने की ज़िम्मेदारी पन्ना प्रमुख की होती है। अब खबर है कि भाजपा लाभार्थी प्रमुख बनाने जा रही है। दो साल बाद होने वाले उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर इसका फैसला किया गया है। लाभार्थी प्रमुख का काम होगा केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने वाले लोगों से सम्पर्क रखना और उनका वोट डलवाना। गौरतलब है कि जातियों और समुदायों से अलग लाभार्थियों का एक अलग वोट बैंक बना है, जो आमतौर पर भाजपा या उसके गठबंधन को वोट देता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगातार जीत में इस लाभार्थी वर्ग का बड़ा हाथ है। इसीलिए उस पर खास ध्यान देने का फैसला किया गया। इतना ही नहीं, खबर है कि भाजपा ‘मन की बात प्रमुख’ भी नियुक्त करेगी। ये लोग प्रधानमंत्री मोदी के रेडियो पर प्रसारित होने वाले मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ से लोगों को जोड़ेंगे। उनके लिए यह कार्यक्रम सुनने का प्रबंध करेंगे और इसकी बातों का प्रचार करेंगे। भाजपा व्हाट्सएप प्रमुख भी नियुक्त करने वाली है, जो व्हाट्सएप समूहों का संचालन करेंगे। इन तीन श्रेणियों में भाजपा के करीब पांच लाख कार्यकर्ताओं को यह ज़िम्मेदारी दी जाएगी।