सरकार किसानों के साथ बात करने हेतु पहल करे
देश में कृषि उत्पादों के समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है। इस मुद्दे को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) तथा किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चे की ओर से विगत लगभग 10 मास से हरियाणा के साथ लगते शम्भू एवं खनौरी की सीमाओं पर आन्दोलन किया जा रहा है। इस आन्दोलन के दौरान पहले भी एवं अभी भी पंजाब के किसानों और हरियाणा की सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों के बीच कई बार टकराव हो चुका है। इन झड़पों में अनेक किसान गम्भीर रूप से घायल भी होते रहे हैं। अब एक बार फिर यह आन्दोलन काफी तीव्र होता दिखाई दे रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा (़गैर-राजनीतिक) के प्रमुख नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल इस समय आमरण अनशन पर बैठे हैं। इन किसान संगठनों की ओर से दिल्ली चलो के पुन: दिए गए निमंत्रण को शम्भू की सीमा पर हरियाणा के सुरक्षा बलों की ओर से एक बार फिर विफल कर दिया गया है। उन सुरक्षा बलों द्वारा किसानों पर अश्रु गैस के गोले भी छोड़े गए हैं। एक बार फिर कुछ किसान घायल हुए हैं।
इस दौरान राज्यसभा में किसानों के समर्थन मूल्य की गारंटी का मुद्दा उठाने पर देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि मोदी सरकार किसानों के उत्पादों को समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए तैयार है तथा इसे सरकार की ओर से गारंटी समझा जाना चाहिए। हमारा यह विचार है कि केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के केवल ऐसे बयानों से ही किसानों की संतुष्टि होना सम्भव नहीं है। सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह सैद्धांतिक रूप से स्वामीनाथन समिति की सिफारिश के अनुसार सी 2+50 प्रतिशत के फार्मूले के अनुसार समर्थन मूल्य देने की कानूनी गारंटी देने के लिए तैयार है या नहीं। यदि सरकार ऐसा करने के स्थान पर कोई अन्य मध्य रास्ता निकालने के लिए भी अपनी प्रतिबद्धता प्रकट करने के लिए सहमत है, तो भी सरकार को आन्दोलनकारी किसान संगठनों सहित देश के अन्य प्रमुख किसान संगठनों के साथ भी बातचीत करनी चाहिए। किसानों को विश्वास में लेने के बिना संसद में कृषि मंत्री द्वारा दिए जाने वाले बयानों से न तो कभी पहले किसानों की संतुष्टि हुई है, तथा न ही अब हो सकती है। बेहतर यही होगा कि और समय गंवाने के स्थान पर एक बार फिर केन्द्र सरकार किसान संगठनों के साथ बातचीत का सिलसिला आरम्भ करे।
ऐसी बातचीत किसान संगठनों को बुला कर दिल्ली में भी हो सकती है तथा चंडीगढ़ में भी हो सकती है। लोकसभा के चुनावों से पहले आन्दोलनकारी किसान संगठनों के साथ चंडीगढ़ में बातचीत के कई दौर हुए थे और इनमें केन्द्रीय मंत्रियों ने पंजाब के किसानों से पांच ़फसलों के समर्थन मूल्य पर खरीद का विश्वास दिलाया था परन्तु किसान नेता सभी 23 फसलों के समर्थन मूल्य पर खरीद की कानूनी गारंटी चाहते थे, जिस कारण बातचीत सफल नहीं हो सकी। हमारी यह स्पष्ट राय है कि यह बड़ा मामला बातचीत द्वारा ही सुलझाया जा सकता है। केन्द्र सरकार को किसानों के प्रति अपना कड़ा व्यवहार छोड़ना चाहिए तथा दूसरी तरफ आन्दोलनकारी किसान संगठनों एवं देश के अन्य किसान संगठनों को भी तर्कपूर्ण ढंग से केन्द्र सरकार के साथ बातचीत शुरू करने हेतु सहमति बनानी चाहिए। हम यह भी महसूस करते हैं कि हरियाणा एवं पंजाब के बीच यातायात के मार्ग पिछली लम्बी अवधि से बंद होने के कारण पंजाब के उद्योगपतियों एवं कारोबारियों सहित जन-साधारण को भी भारी नुक्सान हो रहा है। लोगों की इस समस्या को भी समझा जाना चाहिए। आशा करते हैं कि केन्द्र सरकार, हरियाणा सरकार एवं पंजाब के आन्दोलनकारी किसान संगठन और अन्य किसान संगठन देश के लोगों के हितों के दृष्टिगत एक बार फिर बातचीत की मेज़ पर आने हेतु उचित रवैया धारण करेंगे।