बदलती दुनिया के नये रास्ते

समाज को बदल डालने की कसम खाने वाले लोग पहले गरीबों के मसीहा कहलाते थे। आज भूगोल बदलने की कसम खाने वाले लोग बमों के मसीहा होते हैं। ऐसे मसीहा जो तबाही के अजब मन्ज़र पैदा करने के बाद अगर अस्थायी युद्ध-विराम के लिए मज़बूर भी हो जाएं, तो उससे पहले एक दूसरे को मिसाइलों के हमले से इतना नष्ट कर देने का प्रयास करते हैं, कि बाकी कुछ बचे ही नहीं। तबाह देश या लोग युद्ध-विराम तोड़ने की स्थिति में ही न आ सकें।
जो इस तबाह कर देने वाली राजनीति के लिए सही है, वही आज जीवन में, गलियों और बाज़ारों में घटता हुआ देखते हैं। एक अजब फर्जी दुनिया में हम जीते हैं, इस अहसास के साथ कि योग्यता हो या नहीं, हमसे बेहतर कोई नहीं, सबसे मनवा लें।
बेहतरी का यह अहसास छोटी गाड़ी की जगह बड़ी गाड़ी, और छोटे फ्लैट की जगह बड़ा फ्लैट खरीद कर पैदा होता है, चाहे इसके लिए उधार की किस्तें चुकाते हुए हमारा कचूमर ही क्यों न निकल जाये।
ऐसे माहौल में दिखावा और आडम्बर जीने का ढंग बन गये हैं।
छक्कन हमारी निरन्तर असफलता से तंग आ कर हमें नई ज़िन्दगी के यही फण्डे समझाते रहते हैं। अचानक छक्कन हमारे जैसे पिछलग्गुओं की जमात को तोड़ कर सफल और महान आदमी का भेस धारण कर गये हैं। यह भेस धारण करने के लिए उन्होंने अपने अच्छे भले चेहरे पर दाड़ी रख ली है। अब हर चेहरे पर भरपूर दाड़ी तो आती नहीं। उनके चेहरे पर भी दाड़ी तो नहीं आई, हां दाड़ी का शुबहा अवश्य पैदा हो गया। इतना ही काफी था। आप बदले नहीं, महान नहीं हुए, तो भी महान होने का शुबहा तो पैदा कर सकते हैं न। अपना अंतरंग बदल कर उसे श्रेष्ठ बनाने की क्या ज़रूरत है। बस बहिरंग बदल लीजिये। दाड़ी तो रख ही ली, बस एक अच्छा शाल भी खरीद लीजिये। उसे कन्धे पर रख कर धीरे-धीरे भारी आवाज़ में बोलने का अभ्यास कर लीजिये। खुद तो सफल हो नहीं पाये, बस दूसरों को सफल हो जाने के फण्डे बताना शुरू कर दीजिये। चार ताली बजाने वाले भी साथ जुट गये, तो समझ लीजिये, सफलता की एक चोर गली आपके लिए खुल गई। ज़िन्दगी में सीधी राह चल कर भरपूर मेहनत के बाद आपको कभी किसी ने कोई पहचान नहीं दी, पुरस्कार नहीं दिया। सफल आदमियों की सूचि में आपको नहीं रखा। बस इस कटु वास्तविकता से निकलने का एक ही रास्ता है, कि आप एक ऐसा वसीला पैदा कर दीजिये कि जिसके द्वारा आप दूसरों को पहचान दे सकें। खुद कोई पुरस्कार, कोई बड़ी डिग्री हासिल नहीं कर सके। अब इच्छुक लोगों में जाली डिग्रियां और मनोवांछित पुरस्कार तो बांट सकते हैं। कभी स्वयं किन्हीं सफल लोगों की सूचि में नहीं गिने जा सके। तो क्या? इससे बेहतर क्या यह नहीं कि खुद ही ऐसी सूचियां प्रकाशित करनी शुरू कर दीजिये। अपने चार लोगों को इसमें जगह दे दीजिये। अपने आप इनके मसीहा कहलाने लगेंगे।
कोई आपसे नहीं पूछेगा, कि भई ये पुरस्कार, ये डिग्रियां और उपाधियां बांटने का अधिकार आपको किसने दिया? आप हर बरस दुनिया में सफल लोगों की सूचियां निकालते हो, रैंक बांटते हो, लोग श्रद्ध विनत होकर इन्हें स्वीकार करते हैं। सूचिबद्ध हो जाने की खुशी में मिठाई बांटते हैं। लेकिन कोई इन सूचियां बनाने वालों से नहीं पूछता कि भई यह सूचियां बनाने का हक आपको किसने दिया? आप तो इस क्षेत्र का क ख ग भी नहीं जानते। फिर यहां परीक्षक बन कर गलत और सही के फैसले आप कैसे करने लगे?
नहीं यहां कोई किसी से प्रश्न नहीं करता। हर प्रश्न का जवाब अवश्य आपको कोई न कोई चोर दरवाज़ा खोल कर देने का प्रयास करता रहता है। यहां आपको पथिक हो जाने से पहले ही मंज़िल पर पहुंच जाने का अहसास दिया जाता है। मेहनत के कठिन रास्ते पर चलने का परिणाम उपेक्षा और शोषण होता है। हां, मसीहा का मुखौटा धारण कर सको, तो दुनिया आपका प्रशस्ति गायन करने के लिए जुटने लगेगी। नहीं जुटती, तो चार आदमियों की भीड़ खुद जुटा लीजिये, धीरे-धीरे वही आपका जयघोष करता हुआ कारवां बनने लगेगी।
लेकिन हर व्यक्ति यह सब नहीं कर पाता। छक्कन ने कर लिया, इसीलिए तो वह आज छक्कन से श्री छक्कन और महा छक्कन हो गये। पहले परसू कहलाते थे, फिर परसा हुआ, और आजकल परसराम होकर झोपड़ी से प्रासाद हो जाने का सपना साकार करने में लगे हैं।
जी हां, कठिन नहीं है सपने साकार कर लेना। परिवारवाद को नष्ट कर देने की बात कीजिये, लेकिन अपने परिवार को स्थापित कर देने के बाद। भ्रष्टाचार को शून्य स्तर पर भी सहन करने की बात कीजिये, लेकिन अपनी तिजोरी भर लेने के बाद। अकरम इलाहाबादी की यह बात भूल जाइए कि हाकिम को रियाया की बड़ी चिन्ता है, लेकिन अपना डिनर खाने के बाद! आजकल तो जनाब चिन्ता करने के आयाम ही बदल गये हैं। किसी प्राकृतिक अथवा मानव-निर्मित आपदा के कारण लोगों का घर संसार उजड़ गया है, तो भरे हुए गले के साथ आंसू टपकाते हुए उसकी चिन्ता कीजिये। इसके लिए मुआविज़े की घोषणा करवा लीजिये, लेकिन यह मुआविज़ा बांटने का पुनीत काम अपने ही हाथ में रखिये। बंटवारा अपने घर से शुरू कीजिये, क्योंकि हर दया धर्म का लंगर आपके अपने घर से ही शुरू होना चाहिए। फिर दीन-दुखियों में अपने चहेते तलाश लीजिये। देखिये आपके लोकप्रिय होते देर नहीं लगेगी। जन-सेवक कहलाने का बोनस आपको अतिरिक्त मिल जायेगा।

#बदलती दुनिया के नये रास्ते