भारत-पाकिस्तान संबंध : एक खिड़की खुली है
भारत-पाकिस्तान संबंध पाकिस्तान बनने के समय से आज तक तनावपूर्ण अधिक रहे हैं। कम समय ऐसा रहा है जब भारत-पाकिस्तान के आपसी रिश्ते सामान्य या कुछ बेहतर रहे हों। यदि दूरंदेशी से देखा जाए तो अगर यह संबंध शान्तिपूर्ण रहें तो दोनों देश लाभप्रद स्थितियों में रह सकते हैं। परन्तु दुर्भाग्य से यह केवल एक सपना सा ही रहा। हालांकि दोनों देशों के जन सामान्य की दिलचस्पी बेहतर रिश्तों की ही रही है लेकिन सरकारें इस तरह नहीं सोचतीं। और फिर जब एक मुल्क की धरती अलगाववादियों व आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही हो तो दूसरा मुल्क चैन से कैसे बैठ सकता है।
पाकिस्तान ने पिछले कुछ दशकों से अपनी ज़मीन पर चल रही, पनप रही आतंकवादी कार्यवाही पर लगाम नहीं लगाई जिस कारण भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर बर्फ जमती रही है और हालात बिगड़ते ही रहे हैं। अक्तूबर 2024 में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गये। यह भारत-पाकिस्तान के बीच की जड़ता के टूटने का एक अवसर ही माना जाना चाहिए। इस समय पूर्व प्रधानमंत्री तथा वर्तमान प्रधानमंत्री के भाई नवाज़ शऱीफ ने कहा था- ‘‘पाकिस्तान भारत के साथ बेहतर संबंध चाहता है। शंघाई सम्मेलन में अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आते तो अधिक अच्छा होता, उन्हें भी जल्दी निमंत्रण भेजेंगे।’’ यह उद्गार रिश्तों की बेहतरी की कामना ज़ाहिर करते हैं। जबकि पाकिस्तान में एक तबका ज़रूर भारत विरोधी बातें करता है, जैसे कि भारत में है। नवाज़ शऱीफ ने एक और बात कही कि व्यापार एक ऐसा मुद्दा है जो दोनों देशों में शुरू हो सकता है। जैसे एक राज्य का दूसरे राज्य से कारोबार होता है।
उसी तरह भारत-पाकिस्तान में व्यापार शुरू हो सकता है। अब अमृतसर का सामान दुबई होकर पाकिस्तान पहुंचता है। जबकि यह दूरी महज़ 2 घंटे में पूरी हो सकती है। ऐसी शुरूआत होनी चाहिए। इससे पहले नवाज़ शऱीफ एक साक्षात्कार में साफ तौर पर कारगिल युद्ध के लिए पाकिस्तान की गलती मान चुके हैं। याद करें कि नवाज़ शऱीफ की सरकार के समय 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक पाकिस्तान जाकर संबंधों को गरिमा देनी चाही थी। उनसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी और आई.के. गुजराल भारत पाकिस्तान के बेहतर रिश्तों के लिए गम्भीर प्रयत्न करते रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान की अंदरुनी राजनीति और सेना के दखल के कारण इन आपसी संबंधों को उचित आधार न मिल सका। जोकि सचमुच एक दु:खद प्रसंग समझा जा सकता है। नवाज़ शऱीफ ने तो अपने साक्षात्कार में साफ-साफ कहा था कि युद्ध पाकिस्तान की वज़ह से हुआ था (कारगिल युद्ध)। इसमें पूरी तरह पाकिस्तान की गलती थी। यह भी माना कि पाकिस्तान ने लाहौर समझौते का उल्लंघन करते हुए भारत के साथ वादा तोड़ा था?
भारत में भी पाकिस्तान की तरह ऐसे लोगों की कमी नहीं जो नफरत का झंडा बुलंद करना चाहते हैं। वे बार-बार पाकिस्तान को मज़ा चखाने की बात करते हैं। हमें भुलना नहीं चाहिए कि युद्ध किसी भी समस्या का स्थाई हल नहीं है। इसमें बड़े अर्थिक नुकसान की संभावना हमेशा रहती है। हमें अपनी सैन्य शक्ति पर पूरा भरोसा है। परन्तु हम युद्ध कालीन बड़े नुकसान की कल्पना भी कर सकते हैं। भारत में यह आम धारणा है कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है। इसी धारणा के तहत हमने मैत्री की, बेहतर रिश्तों की संभावना को बहुत पीछे रखा है। अत: इस तरफ सूझवान तरीके से दोनों सरकारों को सार्थक कदम उठाने होंगे।