महिलाओं के अधिकारों और सम्मान का वर्ष हो 2025

नव वर्ष 2025 के आगमन पर केवल शुभकामनाओं और बधाइयों के संदेश का आदान-प्रदान और उत्सव ना होकर नया वर्ष महिलाओं के संपूर्ण सम्मान तथा वास्तविक अधिकार देने का वर्ष होना चाहिए। नव वर्ष में महिला, बच्चों तथा बुजुर्गों के लिए एक महती कार्य योजना तैयार कर उनका संरक्षण तथा उन्नयन निश्चित होना चाहिए। भारतीय संस्कृति और इतिहास में महिलाओं को सदैव उच्च स्थान प्रदान किया गया हैस यह भी मान्यता मानी गई है कि जिस घर में महिला का सम्मान होता हैए वह घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो कर समाज में विशिष्ट स्थान बनाता है। यही कारण है कि भारत देश को भारत माता कहा जाता है। नारी तथा समस्त स्त्री जाति ने भारत देश का मान सदैव शीर्षस्थ बना कर रखा है ऐसे अनगिनत उदाहरण इतिहास में और वर्तमान में हमारे समक्ष हैं जिससे हमारा सिर सदैव वैश्विक स्तर पर ऊंचा हुआ है।
महान शासक नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी की महत्ता को बताते हुए कहा था कि ‘मुझे एक योग्य माता दे दो, मैं तुम्हें एक योग्य राष्ट्र दूंगा’। मानव कल्याण की भावना, कर्त्तव्य, सृजनशीलता और ममता को सर्वोपरि मानते हुए महिलाओं ने इस जगत में मां के रूप में अपनी सर्वोपरि भूमिका को निभाते हुए राष्ट्र निर्माण और विकास में अपने विशेष दायित्वों का निर्वहन किया है। किसी भी राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं का महत्व इसलिए भी सर्वोपरि है कि महिलाएं बच्चों को जन्म देकर उनका पालन पोषण करते हुए उनमें संस्कार एवं सद्गुणों का उच्चतम विकास करती हैं और राष्ट्र के प्रति उनकी जिम्मेदारी को सुनिश्चित करती है। जिससे राष्ट्र निर्माण और विकास निर्बाध गति से होता रहे। वीर भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, विवेकानंद जैसी विभूतियों का देश हित में अवतार मां के लालन-पालन की ही देन है।  मूलत: महिलाएं की राष्ट्र निर्माण की सशक्त सूत्रधार होती है। राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में नारी विधाता की सर्वोत्तम और उत्कृष्ट कृति है, जो जीवन की बगिया को महकाती है और न केवल व्यक्तिगत बल्कि राष्ट्र निर्माण एवं विकास में अपनी महती भूमिका निभाती है। नारी के लिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उनमें विविधता में एकता होती है। महिलाओं के बाह्य रूप और सौंदर्य तथा पहनावे में विस्तृत विविधता तो होती ही है, लेकिन उनके मानस में एक आकार और केंद्रीय शक्ति ईश्वर की तरह एक ही होती है। नारी का स्वरूप न केवल बाहर अपितु अंतर्मन के ममत्व भाव का वृहद स्वरूप का भी रहस्योद्घाटन करती हैं, नारी प्रकृति एवं ईश्वरीय जगत का अद्भुत पवित्र साध्य है, जिसे अनुभव करने के लिए पवित्र साधन एवं दृष्टि का होना आवश्यक है। समाज के सांस्कृतिक धार्मिक भौगोलिक ऐतिहासिक और साहित्यिक जगत में नारी यानी स्त्री का दिव्य स्वरूप प्रस्फुटित हुआ है और जिसके फलस्वरूप राष्ट्र ने नई ऊंचाइयों को भी शिरोधार्य किया है। सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और परम्ंपराएं महिलाओं के कारण ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती हैं। अत: महिलाओं की सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक कार्य शक्ति ही परिवार तथा समाज और राष्ट्र को सशक्त बनाते हैं। नारियों के संदर्भ में यह भी कहा गया है कि सशक्त महिला सशक्त समाज की आधारशिला होती है। 
इतिहास गवाह है कि जब भी कभी देश में संकट आया है तो पत्नियों ने अपने पतियों के माथे पर तिलक लगाकर जोश, जुनून और विश्वास के साथ रणभूमि भेजा है और विजयश्री प्राप्त की है। सही मायनों में महिलाएं ही संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं की संरक्षिका होती है। पूरे विश्व में भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिलाने में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण एवं महती रही है। स्वतंत्रता के आंदोलन की चर्चा न करना इस आलेख को अपूर्ण बनाता है, अत: स्वाधीनता के आंदोलन में महिलाओं ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर भारत के नवनिर्माण में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया है। कैप्टन लक्ष्मी सहगल, अरूणा आसफ  अली, मैडम भीकाजी कामा, सरोजिनी नायडू के अतिरिक्त और न जाने कितनी महिलाओं ने राष्ट्र निर्माण और विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है। राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। 
यह कहने में कतई गुरेज़ नहीं है कि महिलाएं राजनीति, सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक, चिकित्सकीय और विज्ञान में देश के हित के लिए अग्रणी रही हैं। सशक्त राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं की सशक्त भूमिका को नमन करते हुए कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें साधुवाद प्रदान कर उनकी इस भूमिका को प्रणाम करता है।  
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