सुखी और संतुष्ट आदमी
एक था राजकुमार। राजा बेटे को अपनी आंखाें का तारा मानता था, किन्तु राजकुमार सदा दुखी रहता था। वह कभी महल से बाहर न निकलता। बस अपने कमरे में छज्जे पर खड़ा होकर दूर-दूर तक देखता रहता।
‘तुझे किस बात की कमी है?’ राजा ने पूछा। राजकुमार चुप खड़ा रहा।
राजा ने कई उपाय किए जिससे उसका दिल बहल जाए किन्तु सब बेकार। दिन-प्रतिदिन राजकुमार का मुख पीला पड़ता जा रहा था। तंग आकर राजा ने ऐलान कर दिया कि उसे किसी ऐसे समझदार व्यक्ति की ज़रूरत है जो उसके बेटे को खुश कर सके।
राज्य के चतुर लोग राजा के पास गए। उन्होंने आपस में सलाह-मशविरा किया। फिर राजा से कहा, ‘महाराज, हमने आपस में खूब सोच-विचार किया है। आप उस आदमी की खोज करें जो हर प्रकार से संतुष्ट हो और उसे किसी चीज की कमी न हो। उस आदमी की कमीज लाकर राजकुमार को पहना दीजिए। राजकुमार की उदासी मिट जाएगी।’
राजा ने सब ओर दूत भेज दिए। कुछ दूत एक पादरी को साथ लेकर आए। राजा ने पूछा, ‘क्या तुम संतुष्ट हो? राजा ने पूछा।
‘जी, हां, महाराज।’ पादरी बोला।
‘ठीक, तो क्या तुम मेरे राज्य के मुख्य पादरी बनना पसंद करोगे?’ महाराज ने पूछा।
‘हां, महाराज। आपकी बहुत कृपा होगी।’ पादरी ने कहा।
‘चले जाओ यहां से। मैं एक ऐसे प्रसन्न तथा संतुष्ट आदमी की खोज में हूं जिसे कुछ भी नहीं चाहिए। मुझे ऐसा आदमी नहीं चाहिए जिसे किसी ऊंचे पद की लालसा हो।’ राजा ने क्रोध से कहा।
संतुष्ट और सुखी आदमी की खोज जारी रही। दिन बीतते रहे। तभी किसी ने कहा, ‘आपके पड़ोसी राजा ने सब विरोधियों को जीता है। उसकी पत्नी सुंदर है। राज्य में अमन-चैन है। वह संतुष्ट है। उसकी मदद लेनी चाहिए।’ दूत पड़ोसी राज्य में गए।
वहां के राजा ने दूतों का स्वागत किया। कहा, ‘हां, मैं संतुष्ट हूं पर मौत की चिंता अक्सर सताती है। मुझे इतना बड़ा राज्य छोड़ कर इस दुनिया से चले जाना होगा, यह विचार रात में सोने नहीं देता।’ दूत निराश हो कर लौट आए।
अपनी निराशा तथा दुख को भुलाने के लिए एक दिन राजा शिकार के लिए निकल पड़ा। दूर जंगल में उसे एक खरगोश दिखाई दिया। राजा ने उसे पकड़ने की कोशिश की किन्तु वह उछल कर भाग निकला। राजा ने उसका पीछा किया। अपने सैनिकों से बिछुड़ गया। राजा और आगे गया तो उसे गाने की मधुर आवाज़ सुनाई दी। राजा ने सोचा, ‘जो इतने मजे से गा रहा है, वह ज़रूर संतुष्ट व्यक्ति होगा।’ आगे जाकर राजा ने एक युवक को देखा जो काम करते हुए गा रहा था।
‘नमस्कार महाराज।’ उस युवक ने राजा को देखते ही कहा।
‘तू बहुत भाग्यशाली है। आ, हम तुझे अपने साथ राजधानी ले चलें। तू मेरा मित्र बन कर रहेगा।’ राजा ने कहा।
‘नहीं, महाराज। मैं तो ऐसी बातें सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं यहीं खुश हूं।’ युवक ने साफ इंकार कर दिया।
‘आखिर एक संतुष्ट व्यक्ति तो मिला।’ राजा ने सोचा, ‘अच्छा युवक, क्या तू एक काम करेगा?’
‘आज्ञा कीजिए महाराज।’ युवक राजा की ओर उत्सुकता से देखने लगा।
राजा ने कहा, ‘मैं तुझे वह सबकुछ दूंगा, जो तू चाहेगा। बस, मुझे एक चीज चाहिए।’
‘क्या चीज, महाराज?’ युवक ने पूछा।
राजा उस युवक की तरफ बढ़ा, जो एक फटी-पुरानी चादर लपेटे हुए था। राजा ने एक ही झटके से उसकी चादर खींच ली और आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगा। वह युवक नंगे बदन था। उस सुखी और संतुष्ट आदमी के पास कोई कमीज नहीं थी। (उर्वशी)