जोखिमों से भरी है कैलाश मानसरोवर यात्रा 

कैलाश मानसरोवर हिंदुओं का बेहद पवित्र तीर्थ है और हरेक हिंदु धर्मावलम्बी के मन में कैलाश मानसरोवर के दर्शन की तमन्ना होती है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत और चीन के बीच अनबन समाप्ति के बाद छह साल बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा मई में प्रारम्भ होने जा रही है। तीर्थ यात्रियों को उत्तराखंड से कैलाश यात्रा में अब 6 दिन कम लगेंगे। 80 कि.मी. जोखिम भरा रास्ता इस बार यात्रियों के लिए सुगम होगा। दर्शनार्थी चीन में 80 किमी. वाहन यात्रा के बाद कुगू पहुंचकर मानसरोवर झील तक पहुंच सकेंगे। 
कैलाश पर्वत और मानसरोवर को ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। यह हिमालय के केंद्र में है। मानसरोवर वह पवित्र स्थान है, जिसे शिव का धाम माना जाता है। मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान है। यह हिन्दुओं के लिए प्रमुख तीर्थ स्थल है। संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिल कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर।
कैलाश मानसरोवर का नाम सुनते ही हर किसी का मन वहां जाने को बेताब हो जाता है। मानसरोवर के पास एक सुन्दर सरोवर रकसताल है। इन दो सरोवरों के उत्तर में कैलाश पर्वत है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। मानसरोवर के कारण कुमाऊं की धरती पुराणों में उत्तराखंड के नाम से जानी जाती है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अत: कैलाश चीन में आता है। मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। प्राचीन काल से विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोककथाएं केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती है, वो ये कि ‘ईश्वर ही सत्य है, सत्य ही शिव है।’ हिंदुओं के लिए कैलाश मानसरोवर का मतलब भगवान का साक्षात दर्शन करना है। कैलाश मानसरोवर को ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है।  ऐसी मान्यता है कि पहाड़ों की चोटी वास्तव में सोने के बने कमल के फूल की पंखुड़ियां है जिन्हें ब्रह्मां ने सृष्टि की संरचना में सबसे पहले बनाया था। इन पंखुड़ियों के शिखरों में से एक है कैलाश पर्वत। इस पर्वत पर भगवान शिव ध्यान की अवस्था में लीन है। उनके इस अध्यात्म से ही चारों तरफ वातावरण बेहद शुद्ध है और कहा जाता है कि अपनी किरणों से उन्होंने सृष्टि को संतुलित रखा हुआ है। कहा जाता है कि कैलाश पर्वत पर साक्षात शिव और पार्वती निवास करते हैं। इस अद्भुत और अलौकिक नज़ारे को देखकर ही लोगों का शिव की मौजूदगी का मानो एहसास हो जाता है। सदियों से भक्त यहां अपने परमेश्वर की दर्शन करने के लिए आते हैं। ज़िंदगी में एक बार स्वर्ग में भगवान के दर्शन का एहसास यहीं मिलता है। इसलिए लोग हर साल हजारों की तादाद में अपने प्रिय शिव और पार्वती के दर्शन करने कैलाश आते हैं। 
हिमालय की चोटियों में स्थित इस स्वर्ग जैसे स्थान पर सिर्फ ध्यानी और योगी लोग ही रह सकते हैं। यहां चारों तरफ कल्पना से भी ऊंचे बर्फीले पहाड़ है। वैसे कुछ पहाड़ों की ऊंचाई 3500 मीटर से भी अधिक है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई तो 22028 फुट है। आपको 75 किलोमीटर पैदल मार्ग चलने और पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए तैयार रहना होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि आपका शरीर मजबूत और हर तरह के वातावरण और थकान को सहन करने वाला हो।
इस क्षेत्र को स्वंभू कहां गया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि भारतीय उप-महाद्वीप के चारों ओर पहले समुद्र था। इसके रशिया से टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ। यह घटना अनुमानत: 10 करोड़ वर्ष पूर्व घटी थी। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का अद्भुत समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय संस्कृति की झलक प्रतिबिंबित होती है। कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रुप में प्रवाहित करते हैं। 
कैलाश पर्वत पर कैलाशपति सदाशिव विराजे हैं जिसके ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्युलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है। मानसरोवर पहाड़ों से घीरी झील है जो पुराणों में ‘क्षीर सागर’ के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे हैं। यह क्षीर सागर विष्णु का अस्थाई निवास है, जबकि हिन्द महासागर स्थाई। 
ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी जोकि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम है। मानसरोवर की छटा ही निराली होती है। दूर-दूर गहरा नीला पानी, शांत, निर्मल व स्वच्छता से परिपूर्ण फैला होता है और सामने ही होता है ओम पर्वत। 85 किलोमीटर में फैले मानसरोवर झील की विशालता ये ऐहसास कराती है कि धरती पर अगर स्वर्ग है तो कैलाश में ही है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी शेषनाग की शैय्या पर मानसरोवर पर विश्राम करते हैं। यही नहीं, ओम पर्वत की छटा देखकर आपको यूं लगेगा मानो साक्षात शिव अपनी छटा बिखेर रहे हैं। मानसरोवर के इस किनारे से कैलाश पर्वत का दक्षिणी हिस्सा दिखाई देता है। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते जाएंगे कैलाश पर्वत का मुख आपको नज़र आने लगेगा।
परिक्रमा के दौरान कैलाश पर्वत के पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी मुख के दर्शन होते हैं। सोने की चमक और चांदी की आभा कैलाश पर्वत पर देखकर आपको वापस अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में वापस लौटने का शायद ही मन करे। ये दिन सबसे मुश्किल लेकिन बेहद आध्यात्मिक और मन को शांति देने वाला होने वाला है। हालांकि कैलाश मानसरोवर की तैयारियां शुरु हो गई हैं। जल्द ही चौकियां बन जायेंगी। यात्रियों को दिल्ली में समस्त औपचारिकता, पूरी कर गंगटोक और फिर नाथूला दर्रा पार करके चीन भेजा जाता है। 

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