आस्था के कई रूपों की पंचमी है बसंत पंचमी
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को देशभर में मनाया जाता है हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्यौहार ‘बसंत पंचमी’। इस दिन ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर आरंभ होगी और 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी, इसलिए बसंत पंचमी का पर्व इस साल 2 फरवरी को मनाया जा रहा है। 2 फरवरी को बसंत पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 1 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। सरस्वती पूजा का मुहूर्त प्रात: 7 बजकर 8 मिनट से प्रारंभ होगा और दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। बसंत पंचमी मध्याह्न का क्षण दोपहर 12:34 बजे होगा। इस वर्ष बसंत पंचमी पर भद्रा का साया रहने वाला है। भद्रा सुबह 7 बजकर 8 मिनट पर आरंभ होगी और सुबह 9 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। ज्योतिष शास्त्र में भद्रा को शुभ व मांगलिक कार्यों के लिए शुभ नहीं माना गया है।
बसंत ऋतु तथा पंचमी का अर्थ है शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी या फरवरी माह में तथा हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह में मनाया जाता है। माघ माह का धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व माना गया है। चूंकि इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा-आराधना की जाती है, इसलिए यह विशेष रूप से विद्यार्थियों का दिन भी माना जाता है। बसंत पंचमी को देवी सरस्वती का ‘आविर्भाव दिवस’ भी माना जाता है और इस पर्व को ‘वागीश्वरी जयंती’ व ‘श्रीपंचमी’ के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय समाज में मान्यता है कि जिस व्यक्ति पर मां सरस्वती की कृपा होती है, वह ज्ञानी और विद्या का धनी होता है। कहा भी जाता है कि जिसकी जिव्हा पर देवी सरस्वती का वास होता है, वह विद्वान और कुशाग्र बुद्धि का स्वामी होता है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से स्मरण शक्ति तीव्र होती है, वाणी मधुर होती है, विद्या में कुशलता प्राप्त होती है तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है। विभिन्न ग्रंथों में वाग्देवी सरस्वती को ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु, अमित तेजस्विनी, अनंत गुणशालिनी तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि बताया गया है। देवी के रूप में दूध के समान श्वेत रंग वाली सरस्वती के रूप को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। स्कंद पुराण में देवी सरस्वती को जटा-जुटयुक्त, मस्तक पर अर्धचंद्र धारण किए, कमल आसन पर सुशोभित, नील ग्रीवा और तीन नेत्रों वाली बताया गया है। इसी प्रकार विष्णु धर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी सरस्वती को आभूषणों से सुसज्जित चार भुजा युक्त दर्शाया गया है।
‘बसंत पंचमी’ का दिन बसंत ऋतु के आगमन का सूचक माना जाता है और बसंत ऋतु को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, इसीलिए बसंत को ‘ऋतुओं का राजा’ भी कहा जाता है। समस्त शुभ कार्यों के लिए इस दिन का मुहूर्त अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन शरद ऋतु की विदाई होती है और बसंत ऋतु के आगमन के साथ समस्त प्राणीजगत में नवजीवन एवं नवचेतना का संचार होता है। कड़ाके की ठंड का स्थान शांत, शीतल, मंद वायु ले लती है। इस समय पंचतत्व अर्थात् जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि अपना प्रकोप छोड़कर अत्यंत मोहक रूप दिखाते हुए सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। सही मायने में इस समय प्रकृति पूरी तरह से उन्मादी सी हो उठती है। वातावरण में चहुं ओर मादकता का संचार होने लगता है तथा प्रकृति के सौन्दर्य में निखार आने लगता है।
शरद ऋतु में वृक्षों के पुराने पत्ते सूखकर झड़ जाते हैं लेकिन बसंत की शुरूआत के साथ ही पेड़-पौधों पर नई कोंपले फूटने लगती हैं। आमों में बौर आ जाते हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं और फूलों की सुगंध से चहुं ओर धरती का वातावरण महकने लगता है। खेतों में गेहूं की सुनहरी बालें, स्वर्ण जैसे दमकते सरसों के पीले फूलों से भरे खेत, पेड़ों की डालियों पर फुदकती कोयल की कुहू-कुहू, फूलों पर भौंरों का गुंजन और रंग-बिरंगी तितलियों की भाग-दौड़, वृक्षों की हरियाली वातावरण में मादकता का ऐसा संचार करते हैं कि उदास से उदास मन भी प्रफुल्लित हो उठता है। किसान अपने खेतों में लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर खुशी से झूमने लगते हैं। निर्धन और बीमार व्यक्ति कड़ाके की ठंड के प्रभाव से निजात पाकर सुख की अनुभूति करने लगते हैं। बसंत पंचमी के ही दिन होली का उत्सव भी आरंभ हो जाता है और इस दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। बसंत पंचमी के दिन वाग्देवी सरस्वती को पीला भोग लगाया जाता है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण कर बसंत पंचमी के सौंदर्य को और भी बढ़ा देती हैं।
बसंत पंचमी का महत्व कुछ अन्य कारणों से भी है। साहित्य और संगीत प्रेमियों के लिए तो इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि यह ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का पावन पर्व माना गया है। बच्चों को इसी दिन से बोलना या लिखना सिखाना शुभ माना गया है। संगीतकार इस दिन अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुई थी। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इस दिन लोग विद्या, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करके अपने जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की कामना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने बसंत पंचमी के दिन ही प्रथम बार देवी सरस्वती की आराधना की थी और कहा था कि अब से प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा होगी और इस दिन को मां सरस्वती के आराधना पर्व के रूप में मनाया जाएगा। वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में वर्णन मिलता है कि किस प्रकार अपने चातुर्य से देवी सरस्वती ने देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से बचाया था। कहा जाता है कि प्रजापिता ब्रह्मा से वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक कठोर तप किया था और जब उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उसे वर देने को तैयार हुए तो समस्त देवों ने उनसे प्रार्थना करते हुए कहा कि हे ब्रह्मदेव! कुंभकर्ण राक्षस तो पहले से ही है, वर पाने के बाद यह और भी उन्मादी हो जाएगा। देवताओं के निवेदन पर ब्रह्मा जी ने सरस्वती का स्मरण किया। तब देवी सरस्वती कुंभकर्ण की जीभ पर सवार हुई और उनके प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा जी से कहा, ‘स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम।’ अर्थात् मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है। मान्यता है कि मां सरस्वती के प्रभाव के कारण ही कुंभकर्ण बहुत लंबे समय तक निद्रामग्न रहता था।
प्राचीन काल में बसंत पंचमी को प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में ‘बसंतोत्सव’, ‘मदनोत्सव’, ‘कामोत्सव’ अथवा ‘कामदेव पर्व’ के रूप में मनाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। उस जमाने में स्त्रियां इस दिन अपने पति की कामदेव के रूप में पूजा करती थी। इस संबंधी मान्यता है कि इसी दिन कामदेव और रति ने पहली बार मानव हृदय में प्रेम की भावना का संचार कर उन्हें चेतना प्रदान की थी ताकि वे सौन्दर्य और प्रेम की भावनाओं को गहराई से समझ सकें। इस दिन रति पूजा का भी विशेष महत्व है।
मान्यता है कि कामदेव ने बसंत ऋतु में ही पुष्प बाण चलाकर समाधिस्थ भगवान शिव का तप भंग करने का अपराध किया था, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना और विलाप से द्रवित होकर भगवान शिव ने रति को आशीर्वाद दिया कि उसे श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अपना पति पुन: प्राप्त होगा। ‘बसंत पंचमी’ को गंगा का अवतरण दिवस भी माना जाता है। माना जाता है कि इसी दिन गंगा मैया प्रजापति ब्रह्मा के कमंडल से निकलकर भागीरथ के पुरखों को मोक्ष प्रदान करने हेतु और समूची धरती को शस्य श्यामला बनाने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। इसलिए धार्मिक दृष्टि से बसंत पंचमी के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व माना गया है। बसंत पंचमी को ‘श्री पंचमी’ भी कहा गया है। कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन का स्वास्थ्य वर्षभर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अत: इस पर्व को स्वास्थ्यवर्द्धक एवं पापनाशक भी माना गया है।