चुनौतियों से भरे समय में इसरो के नये मुखिया बने वी. नारायणन
नये साल के सातवें दिन यानी 7 जनवरी 2025 को यह बड़ी खबर आयी कि इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (इसरो) के नये प्रमुख वी नारायणन होंगे जोकि राकेट व स्पेसक्राफ्ट प्रोपल्शन (प्रणोदन) के विशेषज्ञ हैं और चेयरमैन चुने जाने के पहले थिरुवनंतपुरम में इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (एलपीएससी) का नेतृत्व कर रहे थे। लगभग 40 वर्ष पहले इसरो का हिस्सा बनने वाले नारायणन ने 14 जनवरी 2025 को एस. सोमनाथ की जगह स्पेस एजेंसी का चेयरमैन पद संभाला।
सोमनाथ जनवरी 2022 से इसरो का चेहरा थे। प्रभावी शख्सियत के मालिक सोमनाथ बहुत डायनामिक थे और उनका बहुत अधिक सम्मान किया जाता था, विशेषकर इसरो के युवा वैज्ञानिकों द्वारा। इसलिए इसरो के भीतर अधिकतर लोगों का मानना था कि उनके कार्यकाल को बढ़ाया जायेगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। अब एक लीडर के रूप में उनकी तुलना उनके उत्तराधिकारी नारायणन से की जायेगी। इसरो में नेतृत्व परिवर्तन ऐसे नाज़ुक समय में किया गया है, जब उसका मार्गदर्शन स्पेस विज़न 2047 से हो रहा है। एक तरफ हाई-प्रोफाइल मिशन की सीरीज़ पर काम हो रहा है, जैसे गगनयान मानव स्पेसफ्लाइट कार्यक्रम, चंद्रयान-4 चांद मिशन, भारत के अपने स्पेस स्टेशन भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का विकास, 2040 तक चांद पर किसी भारतीय को उतारना आदि। दूसरी तरफ भारतीय स्पेस सेक्टर प्रवाह की स्थिति में है कि स्पेस पालिसी 2023 उसे प्राइवेट खिलाड़ियों के लिए खोल रही है।
गौरतलब है कि नवम्बर 1963 में जब थुम्बा, थिरुवनंतपुरम से पहला अमरीकी निर्मित नाइक-अपाचे साउंडिंग राकेट लिफ्ट हुआ था, तब से भारत का स्पेस कार्यक्रम सरकार की ही ज़िम्मेदारी में रहा है और इसे ऐसा रखने में बहुत अधिक सावधानी बरती गई है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि नारायणन वह व्यक्ति हैं, जो इसरो को बहुत अच्छी तरह से अंदर व बाहर से जानते हैं। उन्होंने स्पेस एजेंसी के थिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) को 1984 में ज्वाइन किया था, जहां वह सॉलिड प्रोपल्शन पर काम करते थे। फिर 1989 में वह एलपीएससी में आ गये ताकि क्रायोजेनिक प्रोपल्शन पर काम कर सकें और तभी से वह वहीं पर थे। शुरू में वह सिर्फ वैज्ञानिक के रूप में कार्य कर रहे थे, फिर बाद के वर्षों में वह लीड रोल में आ गये, इसरो मिशन के प्रोपल्शन पहलुओं के संदर्भ में। एलपीएससी निदेशक के रूप में नारायणन गगनयान कार्यक्रम के लिए प्रोपल्शन सिस्टम्स के विकास का नेतृत्व कर रहे थे कि तभी उनकी नियुक्ति सचिव, स्पेस विभाग और चेयरमैन स्पेस कमिशन के रूप में हो गई, दो वर्ष की अवधि के लिए।
कई तरह से नारायणन की सफलता की कहानी एक कड़ी मेहनत करने वाले व्यक्ति की दास्तान है। यह एक ऐसी कहानी है, जिससे स्वतंत्र भारत में पैरेंट्स अपने बच्चों को प्रेरित करना पसंद करते हैं। तमिलनाडु के ज़िला कन्याकुमारी के छोटे से गांव मेलाकट्टुविलाई में एक मामूली परिवार में जन्मे नारायणन ने पास के ही एक तमिल मीडियम स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। उनकी बचपन की एक याद यह है कि उनके स्कूल के अध्यापकों ने 1969 में घोषणा की थी कि नील आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरने में कामयाब हो गये हैं। तभी उनका भी सपना स्पेस वैज्ञानिक बनने का हुआ। उन्होंने एम टेक किया क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में, आईआईटी खड़गपुर से। उनकी पहली रैंक आयी थी। इसके बाद 2001 में उन्होंने एरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री हासिल की। इसरो में रहते हुए नारायणन ने अनेक प्रमुख मिशन व प्रोजेक्ट्स में अपना योगदान दिया है, जिनमें चंद्रयान सीरीज़ और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट् लांच व्हीकल (जीएसएलवी) के लिए सफलतापूर्वक क्रायोजेनिक अपर स्टेज का विकास शामिल हैं।
एलपीएससी वेबसाइट के अनुसार नारायणन उन चंद क्रायोजेनिक सदस्यों में शामिल हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र में शुरू से काम किया है, बुनियादी शोध किया है, थ्योरी व प्रयोग अध्ययन किये हैं और क्रायोजेनिक सब सिस्टम्स के सफल विकास व टेस्टिंग में योगदान दिया है। नारायणन स्पेस एजेंसी के मंझे हुए अनुभवी सदस्य हैं। वह मिलनसार व सुसंस्कृत व्यक्ति हैं। इसरो समुदाय में उन्हें कड़ी मेहनत करने वाले ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है, जो इरादों के पक्के और काम को अंजाम तक पहंचाने की कला जानते हैं। बहरहाल, आधुनिक स्पेस-टेक बहुआयामी है और उसमें बहुत तेज़ी से नये विकास हो रहे हैं, इसलिए नारायणन की नये पद पर नियुक्ति नुकसान के रूप में भी देखी जा रही है; क्योंकि वह अपने लम्बे करियर में अधिकतर एलपीएससी तक ही सीमित रहे हैं। इसरो के अनेक पूर्व प्रमुख बेंग्लुरु मुख्यालय में आने से पहले एलपीएससी, वीएसएससी आदि में रहे हैं यानी उनके पास इसरो की सभी शाखाओं का अनुभव था।
लेकिन नारायणन से सबसे बड़ा फायदा यह है कि उनके पास विशाल अनुभव है। ग्लोबल स्पेस इकोसिस्टम न सिर्फ तेज़ी से बदल रहा है बल्कि प्रतिस्पर्धात्मक भी है। इसरो के पास यह अतिरिक्त ज़िम्मेदारी भी है कि वह भारतीय स्पेस-टेक स्टार्टअप्स को साथ लेकर चले और उद्योग को इसमें शामिल भी करे। इसरो के चेयरमैन के रूप में नारायणन के समक्ष यह चुनौती है कि वह इस स्पेस एजेंसी को तेज़ी से बदलते ग्लोबल परिदृश्य में आगे लेकर जायें।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर