भाषा मनुष्य के संचार, प्रसार और विकास का एक शक्तिशाली माध्यम

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के संदर्भ में 

भाषा एक महत्वपूर्ण और चिन्नात्मक मानवीय वार्तालाप है, जिसके द्वारा विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। भाषा मनुष्य के संचार, प्रसार और विकास का एक शक्तिशाली माध्यम है। जो भी भाषा कोई भी बच्चा जन्म के बाद अपनी मां से ग्रहण करता है, उसको मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा को एक बच्चा अपनी मां, परिवार और चौगिर्दे से आसानी से धीरे-धीरे सीखता है। यह एक ऐसा माध्यम है, जो मनुष्य में मानवता लाता है। एक प्रसिद्ध कवि आचार्य दंडी ने कहा है कि यदि भाषा का प्रकाश नहीं होगा, तो हम एक अंधेरे भरी दुनिया में भटक रहे होंगे। भारत में भाषाओं का सरमाया है, जिसमें 19500 से अधिक उप भाषाएं हैं।
यह विश्व का सबसे अधिक बहु-भाषाई देश है, पर भारत की 96 प्रतिशत जनसंख्या संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल 22 अधिकारिक भाषाओं में से कम से कम एक भाषा बोली जाती है और देश में सिर्फ 121 प्रमुख भाषाएं ऐसी हैं, जिसको 10 हज़ार या उससे अधिक लोग बोलते हैं। इसलिए, भारत यूनैस्को के उन देशों की सूची में सबसे ऊपर है, जहां कई भाषाएं लुप्त होने के किनारे पर पहुंच गई हैं, जिनमें से चकलिया भाईचारे द्वारा बोली जाने वाली भाषा मधिका, महान अंडेमानी भाषाएं, टोडा और बाल्टी जैसी भाषाएं गम्भीर संकट का सामना कर रही हैं, जैसे कि हम 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने जा रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 से 2024 तक भारतीय भाषाई विरासत की सुरक्षा और प्रसार के लिए प्रशंसनीय प्रयत्न किए हैं, भारतीय भाषाओं के प्रसार के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दृढ़ वचनबद्धता का प्रमाण उत्साह भरा है। 
भारतीय भाषाएं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति
दुनिया भर के अध्ययन से पता चलता है कि अपनी मातृभाषा को समझने और बोलने के लिए बौद्धिक विकास होता है और आत्म विश्वास बढ़ता है। स्विट्ज़रलैंड और सिंगापुर जैसे देश स्थानीय भाषाओं का प्रसार करके प्रफूल्लित हो रहे हैं और क्षेत्रीय भाषाओं और दोभाषी नीति से विद्यार्थियों के प्रदर्शन और विकास में भी वृद्धि हो रही है। इसी प्रकार नीदरलैंड में चाइल्डकेयर में डच्च प्राथमिक भाषा है, जहां दोभाषी स्कूल अंग्रेजी पढ़ाते हैं, जो बच्चों की अकादमिक सफलता और खुशी दोनों में योगदान देते हैं। क्योंकि भारतीय शिक्षा प्रणाली भी देश की हर भाषा का बनता मान-सम्मान और अधिकार देने की ज़रूरत थी, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में शुरू की गई ऐतिहासिक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने मातृभाषा में शिक्षा के साथ विद्यार्थियों के लिए न्याय के नये रूप की शुरुआत की। यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक प्रशंसनीय कदम है। इससे किसी भी विद्यार्थी पर भाषा थोपी नहीं जाएगी।
स्कूल छोड़ने की दर में आई कमी
पहले बच्चे आम तौर पर भाषा संबंधी परेशानी आने के कारण स्कूल छोड़ देते थे यां पढ़ना ही बंद कर देते थे। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा की ऐसी रूकावटों को दूर कर रही है। आर्थिक सर्वेक्षण-2024-25 के अनुसार, हाल ही के सालों में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की दर में कमी आई है, जो प्राइमरी में 1.9 प्रतिशत, मिडिल स्कूलों में 5.2 प्रतिशत और सैकेंडरी स्तर पर 14.1 प्रतिशत की कमी आई है प्राइमरी में कुल दाखिला अनुपात 93 प्रतिशत दर के साथ सबसे अधिक है और सैकेंडरी स्तर पर 77.4 प्रतिशत दर और उच्च सैकेंडरी स्तर पर 56.2 प्रतिशत दर है। इसकेबीच के अंतर को दूर करने के लिए यत्न किए जा रहे हैं।
104 प्राइमरी पुस्तकें
स्कूल शिक्षा में भाषा के विकास में समर्थन के लिए 22 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 104 प्राइमरी पुस्तकें जारी की गई हैं, ताकि बच्चे अपनी मातृभाषा और स्थानीय भाषा में पढ़ाई कर सकें। भारतीय सांकेतिक भाषा (आई.एस.एल.) विकसित की गई है, जिसमें पहली कक्षा से 12वीं कक्षा तक शिक्षा सामग्री और पुस्कतों को आई.एस.एल. में अनुवाद किया गया है। पहुंच योग्यता में सुधार के लिए, आई.एस.एल. शब्दकोश अब 10 क्षेत्रीय भाषाओं में मौजूद है। मोदी सरकार अलग-अलग क्षेत्रों में बदलती मांगों अनुसार विद्यार्थियों के कुशल विकास के लिए भाषाई और सभ्याचारक विभिन्नता को उत्साहित कर रही है। 200 से अधिक टीवी चैनल 29 भाषाओं में शिक्षा सामग्री प्रदान कर रहे हैं, जबकि दीक्षा मंच 133 भाषाओं में 3,66,370 से अधिक की ई-सामग्री प्रदान करता है, जिसमें 126 भारतीय और 7 विदेशी भाषाएं शामिल हैं।
पहलकदमियों का उद्देश्य
मोदी सरकार ने भाषाई और सांस्कृतिक एकता का जश्न मनाने के लिए सौराष्ट्र तमिल संगम और तमिल संगम जैसे सांस्कृतिक प्रयत्न किए हैं। यह समारोह इन क्षेत्रों में ऐतिहासिक संबंधों को उजागर करते हैं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को उत्साहित करते हैं। भाषा आधारित पर्यटन, साहित्य समारोह और भाषाई खोज जैसी पहलकदमियों का उद्देश्य विश्व स्तर पर भारत की विभिन्नता को प्रदर्शित करता है। प्रधानमंत्री मोदी सभी भारतीय भाषाओं को विकसित करने के लिए अपनी वचनबद्धता के लिए दृढ़ हैं। वह देश को ‘विकसित भारत’ की ओर लेकर जा रहे हैं, जो अपनी संस्कृति और भाषाई विरासत को अपना रहे हैं। भारत की बहु-भाषाई विरासत को प्रोत्साहन देने के लिए सुनिश्चित तौर पर एक जीवंत और एकीकृत भविष्य का रास्ता आसान होगा।
सांसद (राज्यसभा)

#भाषा मनुष्य के संचार
# प्रसार और विकास का एक शक्तिशाली माध्यम