स्थानीय सरकारों के चुनाव में राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर
हरियाणा में नगर निगमों, नगर परिषदों व नगर पालिकाओं के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें 8 नगर निगमों, 4 नगर परिषदों व 21 नगर पालिकाओं सहित 33 स्थानीय निकायों के लिए 2 मार्च को मतदान होगा। जिन 8 नगर निगमों में चुनाव होने हैं उनमें यमुनानगर, करनाल, पानीपत, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, मानेसर व गुरुग्राम शामिल हैं। इन निगमों में मेयर के अलावा उप मेयर व पार्षदों का भी चुनाव होगा। इनमें बड़े शहर शामिल होने के कारण राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वैसे मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। इसके अलावा अंबाला व सोनीपत के मेयर के उपचुनाव भी होने जा रहे हैं। अंबाला और सोनीपत के मेयर पिछले विधानसभा चुनाव में विधायक चुने जाने के चलते यह दोनों मेयर पद खाली हो गए थे और इन खाली पदों पर उपचुनाव हो रहा है। इसके अलावा पानीपत नगर निगम की मतदाता सूचियों में देरी के चलते वहां पर 9 मार्च को मतदान होगा और इन चुनावों में 12 मार्च को वोटों की गिनती होने जा रही है। इसी के चलते पूरे प्रदेश के शहरी इलाकों में पूरी तरह से चुनावी माहौल बना हुआ है और स्थानीय स्तर के चुनाव होने के चलते इन चुनावों के प्रति लोगों में काफी उत्सुकता भी बनी हुई है।
भाजपा ने लगा दी पूरी ताकत
भाजपा ने नगर निगम, नगर परिषदों और नगर पालिकाओं के चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्री, विधायक, सांसद, चेयरमैन व पार्टी नेता भाजपा प्रत्याशियों को चुनाव में जितवाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी खुद स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों की जीत के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। भाजपा ने पार्टी के सभी छोटे-बड़े नेताओं की इन चुनावों में ड्यूटी भी लगा दी है और निकाय चुनावों के लिए पार्टी की ओर से बकायदा घोषणा पत्र भी जारी किया गया है। भाजपा हर हाल में स्थानीय निकाय चुनाव जीतना चाहती है ताकि बूथ स्तर पर पार्टी को और मजबूती मिल सके व पार्टी के लिए काम करने वाले स्थानीय स्तर के अच्छे नेता व कार्यकर्त्ता भी इन चुनाव में भाजपा को मिल सके। पार्टी के ज्यादातर मेयर प्रत्याशियों के नामांकन पत्र दाखिल करवाने के लिए खुद मुख्यमंत्री जा रहे हैं और प्रदेश में ट्रिपल इंजन सरकार के नाम पर भाजपा प्रत्याशी वोट मांग रहे हैं।
नहीं बना नेता प्रतिपक्ष
वैसे कहने को तो कांग्रेस पार्टी भी स्थानीय निकाय चुनाव लड़ रही है लेकिन कांग्रेसी खेमे में कहीं कोई जोश, उत्साह या रौनक नज़र नहीं आ रही। कांग्रेस ने वैसे तो सभी सीटों पर उम्मीदवार भी नहीं उतारे और कांग्रेसी नेताओं में आपसी एकता और तालमेल भी नज़र नहीं आ रहा। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 37 सीटें मिली थी। इसके बावजूद कांग्रेस अभी तक नेता प्रतिपक्ष का चयन नहीं कर पाई है। कांग्रेस के नेता व कार्यकर्त्ता आए दिन पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। 7 मार्च से हरियाणा विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने जा रहा है। इस विधानसभा सत्र से पहले कांग्रेस विधायक दल का नेता और नेता प्रतिपक्ष का चयन कर पाएगी या नहीं, यह देखना काफी दिलचस्प होगा। कांग्रेस पिछले एक दशक से ज्यादा समय से हरियाणा में पार्टी का संगठन खड़ा नहीं कर पाई है। प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष तो बना दिया जाता है लेकिन पार्टी के प्रदेश पदाधिकारी और ज़िला व ब्लॉक लेवल के पदाधिकारियों की नियुक्ति नहीं हो पा रही। लगातार 3 विधानसभा चुनाव हारने के कारण कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं का मनोबल भी टूट गया है। कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी इन दिनों कोमा में है। अब तक नेता प्रतिपक्ष का चयन न होने से भी कांग्रेस को नुकसान हो रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी की ज्यादातर टिकटों का बंटवारा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सिफारिश पर हुआ था। इसीलिए चुनाव जीतकर आए 37 विधायकों में से सबसे ज्यादा गिनती हुड्डा समर्थक विधायकों की है। हुड्डा समर्थक चाहते हैं कि नेता प्रतिपक्ष का पद पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा को या उनकी पसंद के किसी विधायक को मिले। लेकिन कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में लगातार 3 बार विधानसभा चुनाव में हुई हार के चलते इस बार कोई नया समीकरण बनाने के मूड में है। पार्टी संगठन में नेताओं को कोई पद या जिम्मेदारी न मिलने से उन सभी कांग्रेसी नेताओं की स्थानीय निकाय चुनाव में कोई खास दिलचस्पी नहीं है और इसी गुटबाजी के चलते ही कांग्रेस लगातार सत्ता से बाहर बनी हुई है।
कांग्रेस नहीं बना पाई संगठन
हुड्डा के समर्थक इसलिए खामोश बैठे हैं कि कांग्रेस आलाकमान अभी तक भूपेंद्र हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष नहीं बना रहा और दूसरी तरफ हुड्डा के विरोधी भी इसीलिए चुप्प बैठे हैं कि उन्हें लगता है कि इस बार फिर अगर भूपेंद्र हुड्डा या उनके किसी समर्थक को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया तो फिर उन्हें मेहनत करने की क्या ज़रूरत है। हरियाणा में जब अशोक तंवर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तो पार्टी की आपसी गुटबाजी के चलते हरियाणा में कांग्रेस संगठन का गठन नहीं हो पाया था। अशोक तंवर के स्थान पर पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद कुमारी शैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया, तो उनके विरोधियों ने उन्हें भी पार्टी संगठन नहीं बनाने दिया। शैलजा के बाद उदयभान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने हुए हैं और वे भी अभी तक पार्टी का संगठन नहीं बना पाए। हरियाणा कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी बन नही पाई है और ज़िला व ब्लॉक अध्यक्षों और अन्य पदाधिकारियों की भी अभी तक नियुक्ति नहीं हो पाई है। इससे लोगों को यह संदेश जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान भी हरियाणा कांग्रेस की गुटबाजी के आगे बेबस है और धीरे-धीरे कांग्रेस के नेता व कार्यकर्त्ता भी पार्टी से दूर छिटकते जा रहे हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि रादौर के पूर्व विधायक व कांग्रेसी नेता बिशनलाल सैनी व पूर्व विधायक नरेंद्र सांगवान सहित अनेक प्रमुख नेता कांग्रेस छोड़कर अन्य दलों में जा चुके हैं। इनमें से ज्यादातर नेता व कार्यकर्त्ता भाजपा में शामिल हुए हैं। जिनमें कांग्रेस के कई नेता तो ऐसे हैं जिन्होंने पार्टी टिकट पर 2024 का विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी की गुटबाजी व लगातार अनदेखी के चलते वे कांग्रेस को अलविदा कह गए हैं।
विधानसभा सत्र पर है नज़रें
हरियाणा विधानसभा का बजट सत्र अगले सप्ताह शुरू होने जा रहा है। इस बजट सत्र पर प्रदेश के लोगों की नज़रें लगी हुई है। भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में लोगों के साथ अनेक वायदे किए थे। लोगों को उम्मीद है कि भाजपा इस बार विधानसभा के बजट सत्र में उनमें से ज्यादातर वायदों को पूरा करने का काम करेगी। भाजपा ने प्रदेश में महिलाओं को 2100 रुपए महीना सम्मान राशि देने का वादा किया था। इस बार बजट में यह वादा पूरा किए जाने की उम्मीद की जा रही है। इसके अलावा प्रदेश सरकार की ओर से दी जा रही कई प्रकार की पैंशनों में भी बढ़ौतरी की लोगों को आस है। प्रदेश के विभिन्न कर्मचारी संगठन भी अपनी नौकरी नियमित किए जाने व अन्य मांगों को लेकर सरकार की ओर उम्मीद लगाए बैठे हैं। ऐसे में बजट सत्र में लोगों की उम्मीदें किस हद तक पूरी हो पाती है, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।
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