कछुए की आकृति वाला अनूठा मंदिर 

भारत देश की बात करें तो असंख्य अद्भुत, अलौकिक मंदिर हैं, जिन्हें देखने वाला मंत्रमुग्ध होकर निहारता रहता है। कलात्मक कला के नायाब नमूने देखने को मिलते हैं। कुछ का निर्माण भव्यता-दिव्यता से भरपूर होता है। कुछेक मंदिर भले छोटे-मोटे होते हैं, लेकिन उनमें लोगों को आकर्षित करने की क्षमता होती है। ऐसा ही एक अनोखा मंदिर पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर ज़िले के पैजारवाडी जैसे छोटे से शहर में स्थित है, जोकि हिल स्टेशन पन्हाला के निकट है। कोल्हापुर-रत्नागिरी रोड पर, कोल्हापुर से महज 25 किमी. की दूरी पर बने इस मंदिर की विशेषता है इसका कछुए की भव्य-दिव्य आकृति वाला होना। कछुआ आकृति वाला दूसरा कोई मंदिर पूरे महाराष्ट्र में और कहीं नहीं। इसके बनाने की पीछे की दिलचस्प कहानी यूं है। यहां पर श्री दत्त चिले महाराज के नाम से सुप्रसिद्ध संत हुआ करते थे। वो अपने अनुयायियों के साथ अलग-अलग जगहों का भ्रमण करने में रुचि रखते थे। कोल्हापुर शहर के आस-पास की जगहों जैसे- टेंबलाई, नृहिंहवाड़ी, कोकण क्षेत्र में जोंधा मारुति आदि के अलावा पंढ़रपुर जैसी धार्मिक जगहों पर जाते रहते थे। वे जहां भी जाते थे, तब कछुए को अवश्य याद करते थे। वे जब अपने अनुयायियों से कहते कि कछुआ यहीं कहीं होना चाहिए, तो उन सब की भागदौड़ शुरू हो जाती थी। उनकी आंखें फटी की फटी रह जातीं, जब वे कछुए का दर्शन करते थे। महाराज का कछुए के प्रति इतना लगाव-जुड़ाव क्यों था? इसकी सही-सही जानकारी नहीं मिली। इतना तय होता था कि उनके मुख से कछुआ ढूंढने की बात निकलती तो सचमुच कछुआ दिख जाता था।
1986 में उनके द्वारा देह त्यागने के बाद उनकी समाधी बनायी गई। मंदिर ट्रस्ट के सारे सदस्यों ने मिलकर योजना बनाई कि चिले महाराज का कछुए के प्रति गज़ब का जो आकर्षण था, उसको ध्यान में रखकर ही कछुए की आकृति वाला मंदिर बनवाया जाएगा। यह मंदिर उनकी समाधी के ऊपर ही बनाया गया है। कुल 5000 स.फू. एरिया में बने इस मंदिर की ऊंचाई 51 फुट, लंबाई  60 फुट और चौड़ाई 80 फुट है। इसकी विशेषता यह है कि मंदिर में किसी भी थंबे का सहारा नहीं लिया गया है। 
इसकी खूबियों, खासियतों को ध्यान में रखकर ही एक अमरीकन संस्था ने इसे ‘आऊटस्टैंडिंग स्ट्रक्चर ऑफ द ईयर’ के पुरस्कार से सम्मानित किया है। इस मंदिर की योजना को मूर्त रूप देने के लिए श्री पुंडलिक राव इंगले ने विशेष प्रयास किए थे, जोकि गुजर चुके हैं। समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर आर्किटेक्चर द्वारा डिज़ाइनें मंगाई गईं। आखिरकार 15 में से एक आर्कटिक श्री प्रमोद बेरी की डिज़ाइन को चुन लिया गया। इस तरह मंदिर का निर्माण पूरा किया गया। ट्रस्ट के वर्तमान अध्यक्ष बाबा साहब चव्हाण ने जानकारी देते हुए बताया कि दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। अभी और कुछ सुविधाओं का निर्माण करवाना बाकी है। शीघ्र ही इसकी सारी सुविधाओं को अंतिम रूप दिया जाएगा। इस मंदिर के अंदर ही चिले महाराज का पुतला बिठाया गया है, जोकि श्रृद्धालुओं का ध्यान खींचता है। चिले महाराज जी की पुण्यतिथि पर एक सप्ताह तक विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यूं तो कोल्हापुर शहर और उसके आस-पास कई दर्शनीय स्थल हैं, उसमें अब इस अनोखे मंदिर को भी शामिल किया गया है।
 

मो. 9421216288 

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