विपक्ष विचारधारात्मक स्तर पर पिछड़ रहा
लोकसभा चुनाव में ‘अब की बार चार सौ पार’ का बुलंद नारा उतना सफल नहीं रहा। मोदी एंड पार्टी केवल 240 सीटों पर विजय पा सकी, लेकिन समय गुज़रने के साथ-साथ नरेन्द्र मोदी का तनाव और संशय मिटता चला गया। अब अपने तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ पर वह आश्वस्त और आत्मविश्वास से भरपूर नज़र आ रहे हैं। पहलगाम हमले के बाद सऊदी अरब का दौरा बीच में ही छोड़ दिया। गृहमंत्री अमित शाह को अविलम्ब घटनास्थल पर जाने को कहा। उच्च स्तरीय बैठक की। भारत के लिए भावुक क्षण थे। चारों तरफ से पाकिस्तान को सबक सिखाने की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। देश का भावुक होना स्वाभाविक था। पर्यटकों पर वीभत्स हमला हुआ था, लेकिन कई बार कुछ संयम से फैसला करना पड़ता है। कूटनीतिक कार्रवाई पर भी विचार हो सकता है। पाक स्थित लश्कर-ए-तैयबा का हाथ हो या किसी अन्य संगठन का भारत अब साफ्ट स्टेट नहीं रहा। सरकार को कुछ अलग तरह से सोचना पड़ता है। बड़े फैसले किए गए। 1960 की सिंधु जल संधि स्थगित कर दी गई। अटारी एकीकृत चैक पोस्ट को बंद किया गया। दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के सलाहकारों को भारत छोड़ने का आदेश दिया गया। इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग से अपने सलाहकारों को वापस बुलाया। पाकिस्तानी नागरिकों का सार्क वीजा रद्द किया गया। उधर हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की विजय के बाद से इंडिया गठबंधन में बिखराव देखा गया है। मोदी के सामने उनको चुनौती देने वालों के पास नये विचारों का अभाव नज़र आता है। विपक्ष सत्ता पक्ष के प्रत्येक कदम की आलोचना कर रहा है। सच्चे लोकतंत्र में विपक्ष का मज़बूत होना जन-हित के लिए लाभप्रद रहता है, परन्तु केवल निंदा या आलोचना मतदाता को आकर्षित नहीं करती। मतदाता पूछता है-हां मान लिया कि वह गलत है, लेकिन आपके पास कार्यक्रम क्या है। आप बदलाव में क्या देने वाले हैं? विपक्ष के पास इसका जवाब नहीं है।
मोदी के प्रतिद्वंद्वी पुराने विचारों को छोड़ नहीं पा रहे। आप गरीबों की बात उठाएंगे तो सरकार कहेगी-आज 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त राशन मिल रहा है। गरीब के लिए आवास बन रहे हैं, शौचालय के लिए अनुदान दिया जा रहा है। किसान को ‘मुद्रा लोन’ से मदद मिल रही है। गरीब को जितना आज मिल रहा है, उतना पिछली किसी सरकार ने दिया हो तो सामने लाएं। बाकी बचा धर्म। विपक्ष धर्म के मुद्दे पर नहीं लड़ सकता। राम मंदिर पर या कुम्भ को लेकर विपक्ष ठीक से अपने सवाल नहीं रख पाया। सामाजिक न्याय दिलाने की बात कहती है तो झूठ बोलती हुई लगती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात उठाने पर उन्हें आपात्काल की याद दिला कर चुप करवा दिया जाता है। भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उनसे छिन गया है। कांग्रेस शासन में भ्रष्टाचार की कौन-सी हद पार नहीं की गई? विपक्ष की एकता का भी मजाक बन रहा है। कांग्रेस और ‘आप’ की एकता टूट गई? विपक्ष का नेतृत्व भी प्रश्न-चिन्ह बना है। ममता बनर्जी के लोग उन्हें विपक्ष की नायिका बनाना चाहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि विपक्ष अपना प्रोग्राम ठीक से रख नहीं पा रहा जो परिवर्तन की लहर खड़ी कर दे।