भारत तथा पाकिस्तान दोनों का बड़ा नुकसान कर सकता है युद्ध
भरा सक्के शरीकां वांग जद विवहार करदे ने,
तां दुश्मन तों वी गहरी मार करदे ने।
भारत तथा पाकिस्तान 1947 से ही शरीके वाली लड़ाई में फंसे हुए हैं। नि:संदेह इसमें अधिक दोष पाकिस्तान की ही रहा है, परन्तु यह लड़ाई शरीके की लड़ाई ही रही है, नहीं तो हमारी संस्कृति, हमारी भाषा की साझ तथा हमारा एक ही डी.एन.ए. है। चाहिए तो यह था कि हम भी या तो पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी की भांति अब तक पुन: एक हो चुके होते या फिर यूरोपीयन यूनियन की तरह दोनों देशों के विकास के लिए कोई सिस्टम विकसित कर लेते। हमारे सामने है कि फ्रांस और जर्मनी की आपस में सख्त दुश्मनी रही है। 1870-71 की फ्रैंको परशियन युद्ध के बाद दोनों देश पहले तथा दूसरे युद्ध में भी एक-दूसरे के खिलाफ लड़े परन्तु आज अमन-शांति से मिल कर विकास कर रहे हैं।
़खैर, भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध का खतरा एक कदम और आगे बढ़ गया है। पहल पाकिस्तान द्वारा आए आतंकवादियों ने की, जिन्होंने पहलगाम में निर्दोष भारतीयों की हत्या की। अब भारत ने इसके जवाब में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों पर मिसाइलों, ड्रोनों तथा स्मार्ट बमों से हमला कर जवाब दिया है। बेशक भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कहा है कि आप्रेशन सिंदूर अभी जारी है। आज भी पाकिस्तान में धमाके हुए हैं और भारत में भी पाकिस्तानी मिसाइलों को भारतीय एयर डिफैंस सिस्टम ने गिराया है। इन मिसाइलों के टुकड़े पंजाब के कई क्षेत्रों में गिरे हैं। पाकिस्तान द्वारा सीमा पर भी लगातार गोलीबारी की जा रही है जिसमें अब तक 15 से 20 लोग मारे जाने के समाचार हैं, परन्तु जिस प्रकार भारत ने अपनी ही धरती पर रह कर बिना सीमा पार किए सिर्फ आतंकवादी ठिकानों को ही निशाना बनाया और आपनी कार्रवाई को न सिर्फ आतंवादियों के खिलाफ सटीक एवं सीमित रखा, अपितु बाद में की गई प्रैस कान्फ्रैंस में भारतीय सेना ने यह भी स्पष्ट किया कि हमला पाकिस्तानी सेना के खिलाफ नहीं था और पूरी तरह आतंकवादियों के ठिकानों तक सीमित हमला था। इसलिए हम अभी भी आशा रखते हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच की लड़ाई ‘पूरे युद्ध’ में बदलने के आसार कम हैं, परन्तु यदि पाकिस्तान ने जवाब में कोई बड़ा हमला किया तो बाकायदा युद्ध हो सकता है, जिसके नुकसान का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता।
परन्तु विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार भारत को 1.8 बिलियन डॉलर तथा पाकिस्तान को 1.2 बिलियन डॉलर का नुकसान सीमित टकराव जारी रहने से भी हो सकता है। ‘पूरा युद्ध’ तो पाकिस्तान के टुकड़े भी कर सकता है और यह भारत के लिए भी एक विनाशकारी पथ ही होगा।
भाई से भाई के कुछ तकाज़े भी हैं
सेहन के बीच की दीवार अपनी जगह।
—नवाज़ देवबंदी
भारत के लिए चिन्ता की बात
इस युद्ध में भारत के लिए एक बात बहुत चिन्ताजनक है कि जहां पाकिस्तान के साथ तुर्की तथा चीन सरेआम खड़ा दिखाई दे रहे हैं, वहीं भारत के पक्ष में अकेला इज़रायल ही खुल कर बोला है। नि:संदेह शेष देश भारत के खिलाफ नहीं बोले, परन्तु 1971 तथा 1965 की तरह न तो रूस खुल कर हमारे पक्ष में आया है और न ही कोई अन्य देश। जहां तक चीन का संबंध है, उस पर भारत के साथ व्यापारिक संबंधों का दबाव अमरीका के साथ चलते टैरिफ युद्ध के कारण है, नहीं तो चाहे भारत चीन से एक बिलियन डॉलर का सामान खरीदता है, परन्तु यह उसके कुल निर्यात का सिर्फ 3 प्रतिशत हिस्सा ही है जबकि पाकिस्तान में उसका निवेश भी बहुत अधिक है और उसके सैन्य एवं व्यापारिक हित भी पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर तथा गिलगित जैसे क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। उस पर चीन का अमरीका के साथ टैरिफ युद्ध खत्म होने के आसार हैं, इसका संकेत स्वयं अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दिया है और अमरीकी वित्त सचिव स्काट बेसैंट चीन के उप-राष्ट्रपति ही ली फिंग को तीसरे देश स्विट्ज़रलैंड में जाकर मिलने के लिए भी सहमत हो गए हैं, जो यह प्रभाव देता है कि अमरीका चान के दबाव में है। यह नोट करने वाली बात है कि यदि अमरीका व चीन के बीच टैरिफ युद्ध समाप्त हो गया तो चीन के लिए भारत का महत्व बहुत कम हो जाएगा। फिर भारत जो कुछ चीन से मंगवाता है, उस में 80 प्रतिशत इलैक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, टर्बाइन्स तथा कैमिकल्स हमारी अपनी ज़रूरत है, जिसके बिना हमारा अपना ही नुकसान अधिक होगा। चीन किसी कीमत पर अधिकृत कश्मीर में अपने हित नहीं छोड़ेगा। ऐसी स्थिति में भारत को अधिकृत कश्मीर पर कब्ज़े हेतु आगे बढ़ने से पहले चीन के साथ टकराव के लिए भी तैयार होना पड़ेगा। यह रणनीति बहुत सोच-समझ कर ही बनानी पड़ेगी।
कश्मीरी सिखों की स्थिति
पुंछ पाकिस्तानी सीमा से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर है। यहां लगभग 30 हज़ार सिख आबादी है और जम्मू-कश्मीर में कुल सिख आबादी लगभग दो लाख, 34 हज़ार है। जबकि अधिकतर कश्मीरी पंडित जान बचा कर कश्मीर छोड़ गए, परन्तु सिख भारत का झण्डा बुलंद रख रहे हैं और लगातार कुर्बानियां दे रहे हैं। अब पाकिस्तान की जवाबी गोलीबारी में 15 से अधिक हुई मौतों में सात सिख मारे गए हैं। हालांकि पहले यह संख्या 3, फिर 5 बताई गई थी। सात की संख्या एक पूर्व सिख सांसद के अनुसार है। हालांकि सिख यह शहीदियां कश्मीर में भारत का गौरव रखने के लिए दे रहे हैं, परन्तु हैरानी की बात है कि पहलगाम में मारे गए भारतीयों के लिए तो अब तक करोड़ों रुपये की सहायता राशि की घोषणा हो चुकी है, जिसमें कश्मीर स्टाक एक्चेंज की ओर से प्रति पीड़ित परिवार एक करोड़ रुपया शामिल है, परन्तु पाकिस्तानी गोलीबारी में मरने वाले इन लोगों, जिनमें सिख भी शामिल हैं, के लिए सहायता राशि की कोई भी घोषणा नहीं हुई। हम सिख संस्थाओं और विशेषकर विदेशों में रहते प्रभावशाली सिख नेताओं को विनय करते हैं कि वे पाकिस्तान की सीमा पर रहने वाले सिखों के कश्मीर से बाहर निवास के लिए भी उसे प्रकार के यत्न करें, जिस प्रकार उन्होंने अ़फगानी सिखों के लिए किए थे।
पंजाब के पानी के लिए न्याय
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला,
मंज़िल भी नहीं पाई, रस्ता भी नहीं बदला।
(गुलाम मुहम्मद कासिर)
यह पंजाब का दुर्भाग्य है कि पंजाब का नेतृत्व पंजाब के मामलों पर सदैव मार्केबाज़ी की रणनीति ही अपनाता रहा है जबकि केन्द्र बड़ी कुशलता से पंजाब के साथ अन्याय-दर-अन्याय करता आ रहा है। हमने इस अन्याय से निपटने के लिए न तो अपने तौर-तरीके बदले हैं और न ही अपने रास्ते बदले हैं। हमारा नेतृत्व अब भी तथा पहले भी, या तो काम चलाऊ राजनीति करता रहा है, या वोटों की राजनीति में पड़ा रहा है।
पहली गलती तो पंजाबी सूबा बनते समय ही की गई कि पंजाब पुनर्गठन एक्ट की धाराएं 78, 79, 80 से पंजाबी सूबा स्वीकार ही क्यों किया गया और चंडीगढ़ जब पंजाब का कह दिया गया तो फिर अस्थायी रूप में राजधानी के रूप में इस्तेमाल करने वाले हरियाणा से 60 : 40 का अनुपात क्यों स्वीकार किया गया? इसे अस्थायी रूप में भी केन्द्र शासित प्रदेश क्यों माना गया? बाद में 1978 में पंजाब पुनर्गठन एक्ट की धाराओं 78, 79, 80 को खत्म करने का केस पंजाब ने किया। जब पंजाब के जीतने के साफ-साफ संकेत थे तो पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने गद्दी बचाने के लिए प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के दबाव में यह केस वापस लेकर एक और बड़ी गलती कर दी थी। फिर 2007 में पंजाब ने दोबारा इन धाराओं को चुनौती दी। 11 वर्ष बाद 11 सितम्बर, 2018 को इसकी गवाहियां पूरी हो गईं, परन्तु बाद में केस लटका दिया गया और 17 अप्रैल, 2020 को अंतिम सुनवाई के बाद कोविड-19 के बहाने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया तथा 2020 के बाद पंजाब की सरकारों ने इसे दोबारा खुलवाने के लिए कोई यत्न नहीं किया।
जो कुछ अब हो रहा है, वह केन्द्र तथा हरियाणा की सरासर अन्याय करने की कोशिश है, परन्तु यदि हम होश से काम लेते और यह 21 मई तक का 20 दिनों के लिए पानी हरियाणा को उसके अगले वर्ष के कोटे में से एडवांस के रूप में उधार देने की पेशकश मान लेते तो शायद यह पंजाब के हितों के लिए ज़्यादा अच्छा होता, क्योंकि अब हमने जो प्रस्ताव पंजाब विधानसभा में पारित किया है, कहीं वह हमारे रिपेरियन कानून के अधिकार कि पंजाब का पानी सिर्फ पंजाब का है, को कमज़ोर तो नहीं करेगा। फिर ऐसी ही गलती कैप्टन अमरेन्द्र सिंह द्वारा समझौते को रद्द करने के कानून की धारा 5 के तहत भी की गई थी, कि जितना पानी जा रहा है, वह जाता रहेगा जबकि ज़रूरत तो पंजाब पुनर्गठन एक्ट की धाराओं 78,79,80 को रद्द करवा कर पानी का पूर्ण नियंत्रण लेने की है। बेशक आज जो घटित हुआ है, वह एक साहस लगेगा कि पंजाबियों तथा सरकार ने बी.बी.एम.बी. के चेयरमैन को बंधक बना कर उसकी ओर से जबरन हरियाणा को 13 दिन के लिए 4500 क्यूसिक रोज़ाना पानी देने से रोक लिया है, क्योंकि 4000 क्यूसिक तो हम स्वयं ही दे रहे हैं, परन्तु यह साहस कहीं अदालत में पंजाब को महंगा न पड़ जाए, हालांकि हम पंजाब सरकार की इस दलील से सहमत हैं कि अदालत ने सिर्फ 2 मई की केन्द्रीय गृह सचिव के साथ हुई बैठक के अनुसार कार्रवाई करने के लिए कहा है। इस बैठक में पानी देने का कोई आदेश या फैसला नहीं हुआ। बाद में सिर्फ प्रैस नोट में सलाह ही दी गई थी। चेयरमैन मनोज त्रिपाठी को जिस प्रकार बंधक बनाने की कार्रवाई चाहे बहुत बहादुरी पूर्ण दिखाई देती है, परन्तु उल्लेखनीय है कि हम पंजाब के हैड वर्क्सों के नियंत्रण का केस राजस्थान हाईकोर्ट में हार चुके हैं, और हम पंजाब के हैड वर्क्सों का नियंत्रण अपने पास रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गए हुए हैं। हमें डर है कि जो कुछ आज घटित हुआ है, वह अदालत में पंजाब के खिलाफ जा सकता है। फिर पानी की कम उपलब्धता के कारण हमने 2015 में सुप्रीम कोर्ट में नया ट्रिब्यूनल बनाने का केस भी किया हुआ है। अत: पंजाब सरकार से विनय है कि जोश के साथ-साथ होश से भी काम ले। किसी छोटे तथा सामयिक लाभ के लिए पंजाब का कोई बड़ा तथा स्थायी नुकसान न करवा लें।
-मो. 92168-60000