पाक को पुन: एफएटीएफ ग्रे लिस्ट में डाला जाना चाहिए
भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ अपने कूटनीतिक हमले भी तेज़ किए हुए हैं और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में उसे फिर से सूचीबद्ध करवाने के लिए प्रयास कर रहा है। ट्रम्प के नेतृत्व वाले अमरीकी प्रशासन से समर्थन की असामान्य रूप से मजबूत अभिव्यक्ति द्वारा समर्थित यह नया प्रयास, सीमा पार आतंकवाद में अपनी निरंतर मिलीभगत के लिए पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने के लिए नयी दिल्ली द्वारा एक रणनीतिक कदम में तेज़ी को दर्शाता है।
एफएटीएफ ग्रे लिस्ट जिसे औपचारिक रूप से बढ़ी हुई निगरानी के तहत क्षेत्राधिकार के रूप में जाना जाता है, में पहले 2018 से 2022 तक पाकिस्तान शामिल था, जिससे देश को मनीलॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण चैनलों पर गहन जांच के अधीन किया गया था। उस चार साल की अवधि में इस्लामाबाद ने अंतर्राष्ट्रीय दबाव के तहत वित्तीय सुधारों को लागू करने के लिए संघर्ष किया और इसने विदेशी निवेश, ऋण और विकास सहायता तक पाकिस्तान की पहुंच को काफी हद तक बाधित किया। 2022 में डीलिस्टिंगइस दक्षिण एशियाई राष्ट्र के लिए एक कूटनीतिक और आर्थिक सफलता थी जिसने पाकिस्तान की पहले से ही लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को जीवन रेखा प्रदान की और वैक्षिक वित्तीय संस्थानों के साथ नये सिरे से जुड़ाव को सक्षम किया। भारत अब उस लाभ को उलटने के लिए दृढ़ संकल्पित है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को एफएटीएफ के निशाने पर वापस लाने का प्रयास जारी है। हालांकि इस्लामाबाद ने किसी भी तरह की संलिप्तता से इन्कार किया है, लेकिन भारतीय अधिकारियों ने एफएटीएफ के प्रमुख सदस्य देशों को नयी खुफिया जानकारी दी है, जिसमें वित्तीय बहाव का विवरण शामिल है जो कथित तौर पर हमले के अपराधियों को पाकिस्तान स्थित फंड प्रदाता संस्थानों से जोड़ता है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार डोजियर में सैटेलाइट इमेजरी इंटरसेप्ट किये गये संचार और लेन-देन रिकॉर्ड शामिल हैं जो जम्मू और कश्मीर में चरमपंथी गतिविधियों से जुड़े धन के सीमा पार प्रवाह का संकेत देते हैं। उद्देश्य स्पष्ट है, यह प्रदर्शित करना कि पाकिस्तान आतंकवाद वित्तपोषण के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहा है और इस प्रकार एफएटीएफ की बढ़ी हुई निगरानी व्यवस्था में पाकिस्तान की वापसी को उचित ठहराया जा सकता है।
पेरिस में एफएटीएफ मुख्यालय में भारत की वर्तमान पैरवी कथित तौर पर फ्रांस, जर्मनी और अमरीका के समन्वय में की जा रही है, वे देश जिन्होंने पहले पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद वित्तपोषण सुधारों के आधे-अधूरे कार्यान्वयन पर निराशा व्यक्त की थी। कहा जाता है कि भारतीय राजनयिक यह मामला बना रहे हैं कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद वित्तपोषण गतिविधियों को सक्षम करने या अनदेखा करने की स्पष्ट पुनरावृत्ति न केवल एक क्षेत्रीय खतरा है, बल्कि एक वैश्विक खतरा भी है। एफएटीएफ की अगली पूर्ण बैठक जून में होने वाली है और सूत्रों का कहना है कि भारत इस समय-सीमा में ही काम कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पाकिस्तान की अनुपालन स्थिति के मुद्दे को एजेंडे में सबसे ऊपर रखा जाये।
यह रणनीति पाकिस्तान के लिए विशेष रूप से कमज़ोर समय पर आयी है, जिसकी अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति, मुद्रा अवमूल्यन और घटते विदेशी भंडार के बोझ तले दबी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ देश की मौजूदा व्यवस्था 2025 के मध्य में समाप्त हो रही है और नये बचाव कोष के लिए बातचीत कठिन होने की उम्मीद है। एफएटीएफ की ग्रे सूची में पाकिस्तान को फिर से शामिल करने का कोई भी कदम इन वार्ताओं को गंभीर रूप से जटिल बना देगा, जिसके परिणामस्वरूप ऋण की शर्तें सख्त हो सकती हैं या वितरण में देरी हो सकती है। इसके अलावा अपर्याप्त धन शोधन नियंत्रण वाले क्षेत्राधिकार के रूप में टैग किये जाने से प्रतिष्ठा को होने वाला नुकसान निजी निवेशकों को हतोत्साहित करेगा और ऐसे समय में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को और ठंडा कर देगा जब इस्लामाबाद पूंजी आकर्षित करने के लिए बेताब है।
इस्लामाबाद ने ज़ोर देकर कहता है कि उसने अपनी पिछली ग्रे लिस्टिंग के दौरान एफएटीएफ द्वारा अनिवार्य सभी 34 कार्रवाई मदों का पूरी तरह से पालन किया है और मनीलॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण से निपटने के लिए एक मज़बूत ढांचा बनाये रखना जारी रखा है। पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारत पर ‘संकीर्ण भू-राजनीतिक एजंडे’ को आगे बढ़ाने के लिए बहुपक्षीय प्लेटफार्मों का फायदा उठाने का भी आरोप लगाया। फिर भी कूटनीतिक वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान की विश्वसनीयता पिछली कई तिमाहियों से अस्थिर बनी हुई है, खासकर पिछले उदाहरणों के बाद जब यह पाया गया कि यह प्रमुख सुधारों को लागू करने में अपने पैर खींच रहा है या अपनी धरती पर सक्रिय संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादियों पर मुकद्दमा चलाने में विफल रहा है। (संवाद)