खरीफ में फसलों की योजनाबंदी के लिए कुछ सुझाव
गेहूं की कटाई करके किसान अब खरीफ की बिजाई के लिए योजनाबंदी कर रहे हैं। उनका धान की काश्त की ओर पूरा रूझान है। वे 31-32 लाख हैक्टेयर रकबा जिसमें लगभग 7 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती की काश्त किए जाने की सम्भावना है, पर धान लगाएंगे। कुछ किसान तो ऐसी योजनाबंदी कर रहे हैं कि वे धान, गेहूं के अतिरिक्त तीसरी फसल आलू, सब्ज़ियों या मूंगी की ले सकें। धान संबंधी विशेषज्ञों एवं सरकारी सूत्रों के अनुसार ज़मीन की उपजाऊ शक्ति तथा भू-जल का स्तर कम होने की दरपेश समस्याओं के बावजूद किसानों का बहुमत धान की काश्त करने के लिए उत्साहित है, क्योंकि यही एकमात्र फसल है जो किसानों को खरीफ में सबसे अधिक मुनाफा देती है। यह एक भरोसेमंद फसल है जो उन्हें सुनिश्चित आय उपलब्ध कराती है। इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य होने के कारण किसानों को इसके मंडीकरण में भी कोई समस्या नहीं आती। विगत में कपास-नरमा पर चिट्टी मक्खी के हमले तथा मौसम की कठोरता के कारण हुए नुकसान से इस फसल के बहुत-से उत्पादक जिनकी ज़मीन धान या बासमती उगाने के लिए अनुकूल है, भी यह फसल लगाने की योजना बनाए बैठे हैं। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग तथा किसान नेताओं एवं संस्थाओं के सूत्रों के अनुसार भी धान, बासमती की काश्त के अधीन गत वर्ष के मुकाबले रकबा कम नहीं होगा।
कीमियाई खाद तथा कृषि मशीनरी का अधिक इस्तेमाल तो पहले ही ज़रूरत से अधिक हो रहा है। उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों का ध्यान अनुकूल किस्म के चयन पर केन्द्रित है। योग्य किस्म को अपना कर ही उन्हें प्रति एकड़ उत्पादन अधिक लेने से आय बढ़ने की गुंजाइश है। गत वर्ष जब मंदी होने के कारण बासमती की फसल ने किसानों को नुकसान पहुंचाया था, उसके बाद वे दुविधा में हैं कि वे बासमती लगाएं या धान की कोई लाभदायक किस्म। इस संबंधी भी वे सोच रहे हैं कि बासमती या धान की कौन-सी किस्म लगाएं? पंजाब सरकार द्वारा धान की किस्म लगाने की तिथि पंजाब प्रीज़र्वेशन ऑफ सब-स्वाइल वाटर एक्ट-2009 के तहत 1 जून निर्धारित किए जाने के बाद किसान पूसा-44 किस्म लगाने के प्रयास कर रहे हैं। पंजाब सरकार द्वारा धान की पूसा-44 किस्म के बीज की बिक्री पर पाबंदी लगाने के कारण वे इस किस्म का बीज हरियाणा तथा राजस्थान से लाकर भी बीज रहे हैं। बहुत-से किसानों ने बीज की बिक्री पर पाबंदी लगने से पहले ही बीज उत्पादकों से पूसा-44 के बीज की प्राप्ति पंजाब में से कर ली थी, जिसकी पौध अब वे लगा चुके हैं। धान की पूसा-44 किस्म उन्हें सभी दूसरी किस्मों से अधिक उत्पादन देती है। अभी भी इधर-उधर से बीज प्राप्त करके इस किस्म की पौध उन्होंने लगाई है। धान की दूसरी इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा विकसित पूसा-2090 तथा पूसा 1824 भी कुछ किसान जिन्हें इन किस्मों का बीज उपलब्ध हो गया, ये किस्में लगाएंगे। हैरानी की बात है कि पंजाब के किसानों को इन किस्मों का बीज उपलब्ध नहीं किया गया जबकि अन्य राज्यों के किसानों को यह बीज पर्याप्त मात्रा में दिया गया। आई.ए.आर.आई. पूसा कैम्पस तथा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित किए गए तीन दिवसीय कृषि विज्ञान मेले में पूसा द्वारा यह बीज किसानों को बेचे गए। अब जिन किसानों को पूसा द्वारा विकसित किस्मों का बीज प्राप्त नहीं हुआ, उनमें से कुछ का रूझान पी.ए.यू. की पी.आर.-126, पी.आर.-331 तथा पी.ए.यू. द्वारा विकसित धान की अन्य किस्मों की ओर भी है। चाहे इन किस्मों को लगाने के लिए किसानों में रूझान बहुत कम है।
कम समय में पकने वाली बासमती की पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1692 तथा पूसा बासमती-1985 (सीधी बिजाई के लिए) आई.ए.आर.आई. से सिफारिश की गई किस्मों में से किसान चयन कर रहे हैं। ये किस्में पकने को कम समय लेती हैं। इन किस्मों की पानी की ज़रूरत भी कम है। इन किस्मों से लाभ भी अधिक मिल सकता है। कुछ किसान अभी से इन किस्मों की पौध लगाने लग पड़े हैं। बासमती के विशेषज्ञ वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि इन किस्मों की पौध किसान मई के अंत से पहले न लगाएं ताकि बासमती की विशेषताएं जैसे खुशबू आदि इन किस्मों में आ जाएं।
कुछ किसान पूसा बासमती-1121 तथा पूसा बासमती-1979 जो बासमती की अच्छी किस्में हैं, की पौध भी लगा रहे हैं। पूसा बासमती-1121 बासमती की अच्छी किस्म है और इसका चावल सब किस्मों से लम्बा है और अंतर्राष्ट्रीय मंडी में यह अधिक दाम पर बिकता है। इस किस्म का चावल विदेशी मुद्रा लाता है। पूसा बासमती-1979 गत वर्ष ही आई.ए.आर.आई. ने विकसित की है जो सीधी बिजाई के लिए है। इस किस्म की गुणवत्ता जहां तक इस किस्म में बासमती की विशेषताएं हैं, कृषि स्तर पर इसी वर्ष जांच की जाएंगी। ज़रूरत है बासमती की काश्त के अधीन रकबा बढ़ाने की जिससे पानी की बचत होगी और विभिन्नता आएगी।