भारत का संदेश : अब पाक की परमाणु ब्लैकमेलिंग नहीं चलेगी

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद 12 मई 2025 को राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यत: छह बड़े संदेश दिए। एक, यह हमेशा की तरह सामान्य बात नहीं है। आतंक के विरुद्ध ऑपरेशन सिंदूर भारत की नई नीति है। पूरी दुनिया ने भारत के संकल्प को एक्शन में देखा कि 100 से अधिक खूंखार आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया। अब भविष्य के किसी भी एक्शन व प्रतिक्रिया के लिए नया बेंचमार्क (पैमाना) है। दो, यह पॉज है, राहत नहीं। ऑपरेशन सिंदूर के तहत कार्यवाही को केवल स्थगित किया गया है। पाकिस्तान की हर हरकत पर निगाह रखी जायेगी और भविष्य उसके व्यवहार पर निर्भर करेगा। अगर पाकिस्तान आतंक को पालता रहेगा तो आतंक उसे ही खा जायेगा। तीन, भारत व पाकिस्तान के बीच युद्धविराम किसी तीसरे देश की मध्यस्ता से नहीं हुआ है बल्कि बुरी तरह से मार खाने के बाद पाकिस्तान ने ग्लोबल समुदाय से टकराव न बढ़ाने के लिए आग्रह किया था। केवल आतंकवाद व पाक-अधिकृत कश्मीर पर बातें होंगीं, किसी अन्य मुद्दे पर नहीं। चार, संबंध के किसी भी पहलू के लिए आतंकवाद को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वार्ता या व्यापार आतंक के साथ साथ नहीं चल सकते। पांच, पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते हैं। दूसरे शब्दों में सिंधु जल समझौते को आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही से अलग करके नहीं देखा जा सकता यानी खूनखराबे व सीमा पार से आतंक के चलते पानी को साझा नहीं किया जा सकता। छह, शांति के लिए मार्ग ताकत से होकर जाता है। भारत अहिंसा का देश अवश्य है, लेकिन शांति स्थापित करने के लिए ताकत का इस्तेमाल करने में भी संकोच नहीं करता है। यह युद्ध का युग नहीं है, लेकिन आतंक का भी युग नहीं है। 
अपने 23-मिनट के संबोधन में प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि भारत परमाणु ब्लैकमेल के आगे झुकने वाला नहीं है और विश्व को भी स्पष्ट शब्दों में संदेश दिया कि आतंक व व्यापार, आतंक व वार्ता एक साथ नहीं चल सकते हैं। गौरतलब है कि भारत-पाक की ‘समझ’ को अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने व्यापार से जोड़ने का प्रयास किया था, यह कहते हुए कि ‘अगर आप (टकराव को) रोक दो तो हम व्यापार करने के लिए तैयार हैं’। मोदी ने इस बात से भी इंकार किया कि ट्रम्प प्रशासन ने दोनों पड़ोसियों के बीच टकराव को स्थगित करने में भूमिका अदा की थी। इससे ट्रम्प को अच्छी खासी शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है; क्योंकि वह दावा कर रहे थे कि उन्होंने व उनके प्रशासन ने परमाणु हथियारों से लैस दो राष्ट्रों के बीच खतरनाक टकराव का अंत कराया। ट्रम्प के अनुसार, उन्होंने कहा कि ‘अगर तुम रुकोगे नहीं तो मैं तुम्हारे साथ कोई व्यापार नहीं करूंगा’।
सैन्य टकराव के बाद मोदी के संबोधन में न सिर्फ उनकी राजनीतिक परिपक्वता नज़र आयी बल्कि उन्होंने भारत के स्वाभाविक शांतिवाद को व्यक्त करते हुए शांति पर बल दिया। उन्होंने रूस के राष्ट्रपति वाल्दिमीर पुतिन से कहा था कि यह युग युद्ध का नहीं है और इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह युग आतंक का भी नहीं है। दूसरे शब्दों में यह शांति पर ही बल देना है। आतंकवाद क्या है अगर वह हिंसा का सबसे वीभत्स रूप नहीं है? इसलिए यह दोहराना महत्वपूर्ण है कि जिस तरह से ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने ज़िम्मेदारी भरा व्यवहार किया वह शांतिवाद का पहला सिद्धांत है- हम आक्रामक नहीं होंगे। हां, शक्ति शांति की गारंटी अवश्य है, जैसा कि मोदी ने कहा। गौरतलब है कि इससे पहले 11 मई 2025 की प्रेस कांफ्रैंस में एयर मार्शल एके भारती ने रामचरितमानस के हवाले से इसी बात पर बल दिया था- ‘भय बिनु होइ न प्रीति’ (बिना डर के तो प्रेम भी नहीं होता)।
भारत ने शांति को अपनी सभ्यता का अटूट हिस्सा सैंकड़ों वर्ष पहले ही बना लिया था और अब हाल के इतिहास में यह हमारे संविधान का हिस्सा है, जो अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा पर बल देता है। भारत में युद्ध राज्य नीति का हिस्सा नहीं है, जैसा कि इज़रायल या रूस में है। किसी देश पर उसके लिथियम या पेट्रोलियम रिज़र्व या ज़मीन के लिए आक्रमण करने के बारे में तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते। पाकिस्तान के विपरीत हमारा परमाणु सिद्धांत भी एकदम स्पष्ट है कि हम उसका प्रयोग करने में पहल नहीं करेंगे। हालांकि पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर को अकारण भारतीय आक्रमण के तौर पर पेश करने का प्रयास किया, लेकिन भारत ने शुरू में ही स्पष्ट कर दिया था कि यह पहलगाम का उत्तर है और आतंकी अड्डों तक सीमित है। ‘आक्रमण करने वाला’ कभी भी नागरिक क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का कष्ट नहीं करता है, जैसा कि 7 मई 2025 को भारत ने किया। हालांकि 53 बरस बीत चुके हैं लेकिन अभी तक बहुत से लोगों को याद होगा कि पाकिस्तान को बुरी तरह से पराजित करने और अपने पास उसके 93,000 युद्ध बंदियों को रखते हुए भी भारत ने उदार शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। यह है भारतीय शैली। इतिहास गवाह है कि भारत ने दिलों को जीतने वाले विचार निर्यात किये हैं, सेनाएं नहीं। 
शांति के लिए राष्ट्रीय एकता भी ज़रूरी है। यह अच्छा है कि प्रधानमंत्री ने पहलगाम के बाद हासिल हुई राष्ट्रीय एकता के बारे में बोला और इस बात पर बल दिया कि आगे बढ़ने में एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी। भारत शक्ति के ज़रिये शांति व विकास हासिल करना चाहता है और शक्ति केवल हथियारों व आर्थिक प्रगति से ही नहीं आती है बल्कि राष्ट्रीय एकता से भी आती है। प्रधानमंत्री का यह संदेश सभी तक पहुंचना चाहिए, उन अतिवादी गुटों तक भी जो अपने सांप्रदायिक उन्माद से राष्ट्रीय एकता को कमज़ोर करते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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