ट्रम्प की वैश्विक नैतिकता पर प्रश्न-चिन्ह
आप हैरान न हों कि ट्रम्प अब लोगों को मतिभ्रम करने और कुछ देशों के राजनीतिज्ञों को धौंस में रखने का काम कर रहे हैं। क्या वह इसी तरीके से अमरीका को महान बनाना चाहते हैं। जैसा कि उन्होंने दावा किया था। ट्रम्प शायद जान गए हैं कि बीस-पच्चीस बार बोला गया झूठ सच का आभास देने लगता है। वह गांधी नहीं हैं। गांधी के लिए मनुष्य होने का मतलब है, समाज की पायदान के आखिर में खड़े मनुष्य के कल्याण के लिए प्रयास करना। भारत-पाकिस्तान पर जो कुछ वह कहते हैं उनके नतीजे भारत को भुगतने पड़ते हैं। ऑपरेशन सिंदूर को रोकने के लिए उनकी मध्यस्थता के दावों को व्यर्थ साबित करने के लिए सरकार को काफी मेहनत करनी पड़ी है। विपक्ष तो अभी तक सवाल उठा रहा है। अब उन्होंने नया शिगूफा छेड़ा है कि पांच जेट विमान मार गिराए गए। फैलाए गए भ्रम की मिसाल यह है कि एक दिन पहले ही उनके प्रशासन से भारत को यह सुनने को मिला कि पहलगाम हत्याकांड के लिए ज़िम्मेदार द रेजिडैंट फ्रंट को लश्कर-ए-तैयबा का साथी बताते उसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया था।
ऐसे विरोधाभासों का आखिर मतलब क्या है? ट्रम्प एक तरह से अमरीका विरोधी जज़बात को भड़का रहे हैं, जिससे एक वक्त में अमरीका छुटकारा पा चुका था। अब तक वह सहयोगियों के साथ अपमानजनक भाषा में पेश आते रहे प्रतिद्वंद्वियों के साथ छेड़खानी के मूड में। भारत-पाकिस्तान यह तो कहते ही रहे कि उनके हस्तक्षेप से ही युद्ध-विराम हुआ। साथ ही भारतवंशियों को जिस बात पर आपत्ति होनी चाहिए, वह यह कि भारत और पाकिस्तान को एक ही तराज़ू में तौल देना। जबकि भारत में लोकतंत्र है, वहां धर्मोन्मादी सरकार, जिसे सेना के अधिकारी अपने ढंग से संचालित करते हैं। वह नरेन्द्र मोदी और आसिम मुनीर का ज़िक्र एक ही वाक्य में कर रहे हैं। 19 जून के बयान में उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी जनरल ने मेरे साथ व्हाइट हाऊस में लंच किया और भारत के प्रधानमंत्री, जो मेरे बहुत अच्छे दोस्त और कुशल इन्सान हैं... वगैरह-वगैरह। वह मोदी को मुनीर के साथ जोड़ रहे हैं। अगर ऐसा है, शहबाज़ शऱीफ को बौखलाहट से मर जाना चाहिए, जिन्होंने मुनीर की वर्दी पर पांचवां स्टार लगाया और फील्ड मार्शल बना दिया, जिसे पाकर वह फूले नहीं समा रहे। ऑपरेशन सिंदूर में साफ-साफ उभर कर पाकिस्तानी सेनाओं की पराजय के बावजूद एक बात और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान शऱीफ ने अमरीका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो से बातचीत की थी। जबकि उनकी बराबरी भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर हैं।
शऱीफ को इस पर शिकायत करनी चाहिए थी, लेकिन इसके लिए भी हिम्मत चाहिए। वो हिम्मत आकाश मार्ग से नहीं आती, अपने भीतर होनी चाहिए। पहले ट्रम्प पाकिस्तान की हकीकत की पोल खोलते रहे हैं जबकि भारत दशकों से कहता चला आ रहा है कि पाकिस्तान का लोकतंत्र छलावे से भरा हुआ लोकतंत्र है, असली कमान वहां की सेना के पास है। पाकिस्तान के प्रति अतिरिक्त प्रेम दिखाने वाले ट्रम्प भी इसी धारणा के साथ रहे हैं और समर्थन करते रहे हैं। उनके पूर्ववर्ती नेता भी इस सच्चाई को अच्छी तरह जानते थे। ट्रम्प शायद चतुराईपूर्वक यह जान गए हैं कि जिसके पास असली कमान है, उसी से बात क्यों न करें। शहबाज़ शऱीफ को इस बात पर गुस्सा होना चाहिए, परन्तु वह नहीं हुए। क्या इसका कारण यह है कि जिसने उनकी कुर्सी बचाई, उसके खिलाफ कैसे जाएं?
कुछ लोगों को अब दिलचस्प लगने लगा है कि ट्रम्प कब क्या कह दें। क्या अमरीकी राष्ट्रपति को गोपनीय रखना चाहिए, क्या नहीं? नाटो के महासचिव (नीदरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री) मार्क रूटे ने उन्हें एक चापलूसी भरा पत्र भेजा तो उन्होंने उसका स्क्रीनशॉट सार्वजनिक कर दिया। ट्रम्प लोगों को आश्चर्यचकित करना ही तो चाहते हैं। ट्रम्प के लिए नैतिक मूल्यों की उम्मीद अब कम कर देनी चाहिए। उनके लिए नैतिक उतना ही नैतिक, जितना अमरीका।