सिविल अस्पतालों की दुर्दशा 

पंजाब के ज़िला जालन्धर के सिविल अस्पताल में विगत दिवस आक्सीजन प्लांट की विफलता के कारण तीन मरीजों की जान चली जाने की भयावह घटना की चंडीगढ़ से आए स्वास्थ्य निदेशक डा. अनिल गोयल द्वारा प्राथमिक स्तर पर की गई सरकारी जांच ने अस्पताल के प्रबन्धन की अव्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। घटना का गम्भीर नोटिस लेते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डा. बलबीर सिंह ने एक ओर जहां तीन डाक्टरों को निलम्बित किया है, वहीं एक उच्च-स्तरीय बैठक में व्यवस्थागत सुधारों को तत्काल रूप से लागू किये जाने का भी आह्वान किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार अस्पताल में व्यवस्था के धरातल पर प्रशासनिक उदासीनता अपनी सभी हदें पार कर चुकी है। अस्पताल के प्रबन्धन ने बेशक यह दावा किया है कि  इस घटना के तत्काल बाद आक्सीजन की सप्लाई में त्रुटि जल्द ही ठीक कर ली गई थी, और कि अस्पताल में आक्सीजन की कोई कमी नहीं है, किन्तु उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार इस जीवन-दायी वस्तु की निर्बाध सप्लाई में निरन्तर आधा घंटा तक व्यवधान भी पड़ा, और कि यह व्यवधान अस्पताल के अपने कुप्रबन्धन के कारण दृष्टिगोचर हुआ। यह त्रुटि इसलिए भी चिन्ताजनक हो जाती है, कि तीनों मृतक पहले से ही वैंटीलेटर पर थे, किन्तु आपात् स्थिति से निपटने हेतु वहां उस समय कोई भी माकूल व्यवस्था नहीं थी।  अस्पताल में 300 से अधिक आक्सीजन बिस्तर हैं। इसके लिए पहले चार आप्रेटर की व्यवस्था होती थी, किन्तु अब केवल दो ही बचे हैं। उनमें से भी एक छुट्टी पर था, जबकि दूसरा ड्यूटी भुगता कर चला गया। सितमज़रीफी की हद यह भी रही, कि इतने बड़े अस्पताल में आक्सीजन की सप्लाई का दायित्व कपड़े धोने वाले दर्जा चार मुलाजिम के कंधों पर जा पड़ा, किन्तु प्लांट में त्रुटि आई, तो उसे इसका इल्म ही नहीं था। 
अब बेशक चंडीगढ़ से इंजीनियरों को बुला कर आप्रेटरों को प्रशिक्षण दिलाने की बात कही गई है, किन्तु यह फैसला भी अन्तत: सिविल अस्पताल में व्याप्त कुप्रबन्धन और कोताही की ओर ही संकेत करता है।  नि:संदेह यह घटना इस एहसास को भी ताज़ा करती है कि अस्पतालों में इस प्रकार की जीवन-दायी प्रणालियों के मामले में किसी भी प्रकार की थोड़ी-सी भी लापरवाही अथवा उदासीनता बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। इस घटना के परिप्रेक्ष्य में सर्वाधिक चिन्ताजनक बात यह है कि प्रदेश के प्राय: अधिकतर सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों-नर्सों के छिट-पुट दायित्व की पूर्ति अब दर्जा चार कर्मचारियों से की जाने लगी है। यहां तक कि वे स्टिचिस और इंजैक्शन लगाने तक का कार्य भी करते हैं। मौजूदा घटना के समय भी यही हुआ है। लिहाज़ा स्थिति बद से बदतर हो गई है।
देश के किसी भी अन्य राज्य की भांति पंजाब में भी सिविल अस्पतालों की दशा बहुत अच्छी नहीं है। निजी अस्पताल बहुत महंगे हैं, और सिविल अस्पतालों की अव्यवस्था हमेशा गरीबों के उपचार में आड़े आती है। दवाओं का भी अभाव है, और महंगी दवाएं तो मरीज़ों के अभिभावकों को बाहर से ही खरीदनी पड़ती हैं। कुछ दवाओं की कीमत अस्पतालों से दिये जाने की व्यवस्था का सरकारी आदेश है, किन्तु आम लोगों के लिए इसे जानने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। सरकारी अस्पतालों के अधिकारियों के अनुसार वर्षों से नई भर्ती की मांगें अधर में लटकी हुई हैं। अस्पतालों में सफाई और कानून व्यवस्था की स्थिति भी चरमरा जाने के कगार पर है।  स्टाफ का यह भी आरोप है कि बरसों से खाली पदों को भरने की निरन्तर मांग की जा रही है, किन्तु सरकार के किसी भी अंग कानों पर कभी जूं तक नहीं रेंगी।
हम समझते हैं कि मौजूदा समस्या बड़ी गम्भीर है। बेशक प्रदेश भर में इस घटना की सर्वत्र चर्चा हुई है, और राजनीतिक दलों ने भी इस घटना को अपने-अपने लाभ-हानि के तौर पर खूब उछाला है, किन्तु हम समझते हैं कि इस समस्या का ताना-बाना प्रदेश की सामाजिकता से जुड़ा है। सरकार को चाहिए कि वह अपने स्वास्थ्य क्रांति अभियान के तहत कम से कम सिविल अस्पतालों में  जितनी भी उपलब्धता है, उसे जन-साधारण तक अवश्य पहुंचाये। यह समस्या चूंकि प्रदेश के आम आदमी और जन-साधारण से जुड़ी है, अत: डाक्टरों, नर्सों एवं अन्य स्टाफ की भर्ती एवं नियुक्ति सिविल अस्पतालों में तत्काल रूप से की जानी चाहिए।  जालन्धर के अस्पताल स्टाफ की कमी का आलम यह है कि 550 बिस्तर के इस अस्पताल में कुल 48 नर्सें और 30 वार्ड अटेंडेंट हैं। नर्सिंग स्टाफ के 120 और डाक्टरों के 47 पदों का रिक्त होना क्या चिन्ताजनक बात नहीं है। मैडीकल आई.सी.यू. की एक इमारत और पुराने भवन के आर्थो वार्ड पर लगे ताले भी शुभ संकेत तो कदापि नहीं। अस्पतालों में धन की व्यवस्था का भी बड़ा अभाव है। यह भी एक बड़ा गम्भीर मुद्दा है कि सिविल अस्पतालों में करोड़ों रुपए का सामान और उपकरण त्रुटिग्रस्त और ध्वस्त हुए पड़े हैं। इनका समुचित उपयोग किया जाना चाहिए। प्रदेश के आम आदमी की पहुंच में सरकारी अस्पताल ही हैं। निजी अस्पताल तो अदालतों की नज़र में भी मरीज़ों की जेब को ए.टी.एम. समझते हैं। सरकारी अस्पतालों से यदि मरीज़ स्वस्थ और संतुष्ट होकर निकलता है, तो यह सरकार की स्वास्थ्य क्रांति योजना की भी बड़ी सफलता और समाज-सेवा जैसा कार्य होगा। सरकार जितना शीघ्र सरकारी अस्पतालों और उनके प्रशासन की दशा सुधारने का यत्न करेगी, उतना ही पंजाब प्रदेश की सेहत में भी सुधार आएगा। 

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