वाटर बम’ सिद्ध हो सकता है चीन का निर्माणाधीन मैडोग बांध
चीन द्वारा तिब्बत की यारलुंग ज़ांगबो नदी ( जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है) के ग्रेट यू बैंड स्थान पर एक विशाल पनबिजली बांध (हाईड्रोपावर डैम) बनाने की योजना ने भारत तथा बांग्लादेश जैसे निचले देशों में चिन्ता पैदा कर दी है। यह क्षेत्र तिब्बत में स्थित है, जहां यह नदी भारत की सीमा के निकट पूर्व से दक्षिण की तरफ अपनी दिशा बदलती है। चीन की इस परियोजना को सिर्फ ऊर्जा उत्पादन के रूप में नहीं देखा जा रहा, अपितु इसे एक रणनीतिक तथा भू-राजनीतिक कदम माना जा रहा है।
इस परियोजना की शुरुआत 19 जुलाई, 2025 को चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग द्वारा की जा चुकी है। यह विश्व का सबसे बड़ा पनबिजली बांध बनेगा। इस बांध का ढांचा बहुत विशाल तथा जटिल है। इसमें कुल पांच कैसकेड (झरना) बांध बनाए जाएंगे, जिन्हें क्रमश: तरीके से जोड़ा जाएगा ताकि नदी के अलग-अलग हिस्सों से पानी का अधिक से अधिक इस्तेमाल करके बिजली उत्पादन किया जा सके। इन बांधों को चलाने तथा पानी को एक हिस्से से दूसरे हिस्से की ओर भेजने के लिए चार बड़ी सुरंगें बनाई जाएंगी। ये सुरंगें नमचा बरवा नामक पहाड़ी के नीचे से गुज़रेंगी, जो भौगोलिक रूप से बहुत संवेदनशील क्षेत्र है। ऊपर से नीचे ज़मीन तक इनकी लम्बाई 2000 मीटर से भी अधिक होगी और यह परियोजना 200 किलोमीटर तक फैली होगी। यह बांध लगभग 60,000 मैगावाट (60 गीगावाट) बिजली उत्पादन के योग्य होगा।
ग्रेट यू बैंड वह स्थान है जहां नदी का तल लगभग 2000 से 3000 मीटर नीचे तक जाता है। यह बांध सिर्फ ऊर्जा उत्पादन के लिए ही बनाया जा रहा है, यह मान लेना भी भोलापन होगा। इसकी स्थिति भारत-चीन सीमा के बहुत निकट है, जो चीन को रणनीतिक लाभ मिलने का अवसर देता है। ब्रह्मपुत्र एक अंतर्राष्ट्रीय नदी है, जो चीन, भारत व बांग्लादेश से होकर गुज़रती है। यदि चीन इस पर बांध बनाता है तो वह निचले देशों पर पानी के प्रवाह को लेकर दबाव डाल सकता है। उदाहरणतया, चीन यदि पानी रोक लेता है या अचानक छोड़ देता है तो भारत में असम तथा अरूणाचल प्रदेश में सूखे की स्थिति बन सकती है या बाढ़ आ सकती है, इसी कारण इस प्रकार की तबाही जो किसी नदी के बहाव को नियंत्रित करके लाई जा सके, को ‘वाटर बम’ या पानी वाला बम कहा जा सकता है। इस प्रकार यह बांध प्रत्यक्ष रूप से निचले क्षेत्र के लोगों के जीवन एवं सम्पत्ति के लिए खतरा बन सकता है। इसके अतिरिक्त बांध बनने से नदी के माध्यम से आने वाली उपजाऊ मिट्टी भी वहीं रुक जाएगी और निचले क्षेत्रों तक नहीं पहुंचेगी। नदी की जैविक विभिन्नता को भी इससे नुकसान हो सकता है। एक और बड़ी चिन्ता भूकम्प और भूस्खलन की है। हिमालय का यह क्षेत्र भूकम्प को लेकर संवेदनशील है। यदि किसी ज़बरदस्त भूकम्प या भूस्खलन के कारण बांध को नुकसान पहुंचता है या बांध टूट जाता है तो निचले क्षेत्रों में भारी तबाही हो सकती है। चीन ने इस परियोजना को भारत या बांग्लादेश से सलाह किए बगैर या बिना सहमति से शुरू कर लिया है। इस कारण यह एक अंतर्राष्ट्रीय मामला बन गया है। यहां एक समस्या यह भी है कि भारत तथा चीन के बीच नदियों या पानी का ऐसा कोई भी समझौता नहीं है, जो चीन को मनमज़र्ी करने से रोकता हो। यहां तक कि चीन पानी का डाटा साझा करने का भी पाबंद नहीं है।
भारत के लिए यह मामला सिर्फ पर्यावरण संवेदनशीलता का या आर्थिक नहीं, अपितु राजनीतिक तथा सुरक्षा के पक्ष से भी महत्व रखता है। चीन अरूणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता आया है, और इस क्षेत्र में बांध बनाना भारत के लिए एक तनाव पैदा करने वाला कदम हो सकता है। फिर भी कई विद्वान यह मानते हैं कि चीन का यह बांध पानी को लम्बे समय तक इकट्ठा नहीं करेगा। इन बांधों की अधिक क्षमता नहीं होती कि वे निचले देशों को तत्काल झटका दे सकें। वहीं भारत में ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाला ज़्यादातर पानी तिब्बत से नहीं, अपितु भारत के मौसमी बरसात वाले क्षेत्रों से आता है। इन तथ्यों के बावजूद चीन की पारदर्शिता की कमी, नैतिक सहमति की अनुपस्थिति तथा चीन के साथ पहले वाले रणनीतिक अनुभवों के आधार पर भविष्य में इस बांध को एक जल हथियार या वाटर बम के रूप में इस्तेमाल किए जाने की सम्भावना को दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता। मैडोग बांध न सिर्फ तकनीकी महत्व वाली परियोजना है, अपितु यह आगामी दशकों में एशिया में पानी पर नियंत्रण, राजनीति तथा पर्यावरण में बड़े बदलाव ला सकता है। यह चीन की पनबिजली योजना का केन्द्र बन चुका है। इस कारण इससे संबंधित खतरे तथा चुनौतियां भी उतनी ही बड़ी हैं। -मो. 94635-10941