130वां संशोधन विधेयक लाने के पीछे भाजपा का उद्देश्य क्या है ?

 

इक उम्र से कायम है ये रातों की हुकूमत,
इक उम्र से मैं ़ख्वाब-ए-सहर देख रहा हूं।
 

बाल मोहन पांडे का यह शे’अर सच है कि सरकार चाहे वह मौजूदा भाजपा की है, या पहली कांग्रेसी सरकारें या फिर बीच के समय आई संयुक्त सरकारें, ये सभी अपनी सरकार को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए संविधान को ‘मोम की नाक’ की भांति मोड़ने की कोशिश करती रही हैं। बेशक इसके बावजूद शासन करने वाले बदलते रहे हैं, परन्तु अंधेरे की सत्ता कभी नहीं बदली, सहर अर्थात रौशनी या सुबह की सरकार बस एक सपना, एक ख्वाब ही रही है। ़खैर, इस समय यह मामला सबसे अधिक चर्चा में है कि संविधान में 130वें संशोधन का विधेयक अचानक ही पहले किसी कनसोअ के बिना ही संसद में क्यों लाया गया? जबकि भाजपा तथा सरकार को साफ-साफ पता है कि यह संशोधन विधेयक पारित नहीं होने वाला, क्योंकि इसे पारित करने के लिए संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग या इकट्ठे तौर पर वांछित दो-तिहाई बहुमत उसके पास नहीं है। 
इस संबंध में भाजपा की मंशा के बारे में बात करने से पहले संक्षिप्त में यह समझ लें कि यह संशोधन है क्या? यह संशोधन विधेयक संविधान का धाराओं 75, 164 तथा 239 ए-ए में संशोधन का यत्न है, जिसके तहत यदि किसी मंत्री, मुख्यमंत्री तथा यहां तक कि प्रधानमंत्री को 30 दिन या इससे अधिक दिन लगातार हिरासत या जेल में रहना पड़ता है तो उसे स्वयं ही इस्तीफा देना पड़ेगा, नहीं तो 31वें दिन उसका पद अपने आप ही रिक्त मान लिया जाएगा। यदि उसके बाद ज़मानत मिल जाती है तो वह पुन: पद प्राप्त कर सकता है। यह उन मामलों में लागू होगा, जिनमें आयद दोषों की सज़ा पांच वर्ष या उससे अधिक हो सकती हो। पहली नज़र में यह कानून बहुत ही अच्छा, आकर्षक एवं आदर्श लगता है। जैसे यह देश की राजनीति में से भ्रष्टाचार तथा अपराधीकरण के खात्मे के लिए कोई ब्रह्मास्त्र बनाया जा रहा हो, परन्तु यदि वास्तव में ही यह राजनीति में से भ्रष्टाचार तथा अपराधीकरण के खात्मे के लिए है तो फिर यह विधायकों तथा सांसदों पर लागू क्यों नहीं किया जा रहा। पाठकों को शायद हैरानी भी हो कि देश में कुल लगभग 5000 विधायक एवं सांसद हैं और उनके बारे सुप्रीम कोर्ट को सूचित करने वाले ‘न्याय मित्र’ विजय हंसारिया ने इस वर्ष के आरम्भ में रिपोर्ट की है कि देश के विधायकों तथा सांसदों पर कुल 4984 आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि प्रत्येक विधायक तथा सांसद पर ही मामला दर्ज है। वास्तव में कइयों पर 10-10 या 20-20 मामले दर्ज हैं। ए.डी.आर. की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में पहले तीन स्थान भाजपा विधायकों के पास हैं। भाजपा के के. सुरेन्द्रन पर 243, डा. के. एस. राधाकृष्णन पर 211 मामले दर्ज हैं और भाजपा के ही तीसरे विधायक पर 93 मामले हैं जबकि चौथे से छठे नम्बर वाले तीनों विधायक कांग्रेस के हैं। उन पर क्रमश: 88, 49 तथा 47 मामले दर्ज हैं। लोकसभा के 543 सांसदों में से 251 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं और इनमें से 170 पर तो ऐसे मामले हैं जिनमें सज़ा 5 वर्ष से अधिक हो सकती है। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि सरकार या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) या भाजपा सचमुच ही राजनीति में से भ्रष्टाचार या अपराधीकरण खत्म करना चाहते हैं तो यह सम्भावित कानून विधायकों तथा सांसदों के बारे में चुप क्यों है? वास्तव में आसिम तन्हा के शब्दों में :
कहीं सूरज नज़र आता नहीं है,
हुकूमत शहर में अब धुंध की है।
मंशा क्या है भाजपा की?
जब यह स्पष्ट है कि यह विधेयक पारित ही नहीं हो सकता और यह भी स्पष्ट है कि यदि किसी प्रकार यह विधेयक पारित हो भी जाए तो भी यह राजनीति में से अपराधीकरण तथा भ्रष्टाचार खत्म करने के समर्थ नहीं होगा, तो भाजपा जल्दबाज़ी में बिना किसी पहली जानकारी के अचानक ही इसे संसद में क्यों लेकर आई है? इसके कारणों में कई राजनीतिक उद्देश्य दिखाई देते हैं। सबसे पहले तो इसके कारणों में यह दिखाई देता है कि भाजपा इस विधेयक के माध्यम से यह प्रभाव सृजित करना चाहती है कि देश को यह संदेश जाए कि भाजपा ही एक ऐसी पार्टी है जो राजनीति में से भ्रष्टाचार तथा अपराधीकरण खत्म करने की समर्थक है, कि वह तो अपना प्रधानमंत्री होने पर भी उसे इस कानून के दायरे में ला रही है, परन्तु समझा जाता है कि भाजपा को अच्छी तरह पता है कि विपक्ष ऐसे एकतरफा विधेयक को समर्थन नहीं दे सकता, परन्तु जिससे भाजपा को विपक्ष को निशाना बनाने का अवसर अवश्य मिलेगा कि सभी विपक्षी पार्टियां भ्रष्टाचार तथा अपराधीकरण की समर्थक हैं। भाजपा की प्रचार मशीनरी जो बहुत तेज़-तर्रार तथा मज़बूत है, को मनमज़र्ी का प्रचार करने का मसाला भी ंिमल जाएगा कि विपक्ष ऐसा कथित ईमानदारी वाला कानून भी नहीं बनने दे रहा। इससे भी बड़ा कारण यह प्रतीत होता है कि राहुल गांधी यह वृत्तांत सृजन में सफल होते दिखाई दे रहे हैं कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है। ‘वोट चोरी’ हो रही है, इस स्थितियों यह विधेयक जनता के ध्यान में तथा टी.वी. पर बहस का वैकल्पिक मुद्दा बन सकता है कि विपक्ष वास्तव में राजनीति में से भ्रष्टाचार तथा अपराधीकरण खत्म करना नहीं चाहता, अपितु खाली बयानबाज़ी ही कर रहा है। संक्षेप में यह विधेयक भाजपा के लिए एक राजनीतिक हथियार है जिसका उद्देश्य विपक्ष को ऐसी स्थिति में फंसाना है कि वह कुछ भी करे, परन्तु फिर भी भाजपा के राजनीतिक उद्देश्य पूरे होते रहने तथा विपक्ष उस में बाधा न डाल सके।
यदि विधेयक पारित हो जाए तो?
उसी का शहर, वही मुद्दयी, वही मुन्स़िफ,
हमें यकीं है हमारा कसूर निकलेगा।
—अमीर कजलबाश
विचार करने योग्य बात है कि यदि यह विधेयक इसी तरह ही पारित हो जाए तो क्या-क्या हो सकता है। पहली नज़र में यह आशावादी कानून बहुत नैतिकता वाला कानून दिखाई देता है, परन्तु सब को पता है कि वर्तमान राजनीति में नैतिकता सिर्फ दिखावा भर होती है। वास्तव में रणनीति ही हावी होती है। भ्रष्टाचार तथा अपराधीकरण के खिलाफ इस दवाई के विपरीत प्रभाव तो बीमारी से भी ़खतरनाक प्रतीत होते हैं। यदि यह विधेयक इसी प्रकार ही कानून बन जाए तो पुलिस, जजों, वकीलों तथा शासकों का एक नापाक गठजोड़ बन जाने की बड़ी सम्भावनाएं हैं, जो केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी के हितों के लिए चुनाव आने के समय किसी भी विरोधी मंत्री या मुख्यमंत्री को 20-30 दिन पहले किसी तथाकथित मामले में गिरफ्तार करा देगा, तथा फिर 30 दिन तक ज़मानत न होने देने के हथकंडे अपनाएगा। ऐसी स्थिति में चुनाव हो जाने से उसकी पार्टी बिखर जाएगी। ऐसी सोच इसलिए बनती है क्योंकि यह इतिहास का हिस्सा है कि ऐसे कानून एजेंसियों द्वारा आमतौर पर विपक्षी पार्टियों या सत्तारूढ़ पार्टी के आंतरिक विरोधियों के खिलाफ ही इस्तेमाल किए जाते हैं। यह अपनी ही पार्टी के आंतरिक विरोधियों पर एक दबाव बनाने के काम भी आ सकता है।
पाकिस्तान जैसी राजनीति?
यह स्थिति भारत को पाकिस्तान जैसी राजनीतिक स्थिति की ओर धकेल सकती है। बेशक भारत में पाकिस्तान की तरह सेना का हस्तक्षेप होने के आसार नहीं हैं, परन्तु हमारे सामने है कि पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को कैसे हटाया गया। फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कैसे जेल में हैं। हालांकि इमरान खान का लोगों में भारी समर्थन है, फिर भी, यह दर्शाता है कि कैसे नैतिकता के लबादे में  लिपटे कानून किसी राजनेता को अयोग्य ठहराने के समर्थ हो सकते हैं, परन्तु इसमें तो बड़ी अदालतों का भी हस्तक्षेप था जबकि भारत में पेश नया विधेयक तो अदालती फैसले तक जाने की बात ही नहीं करता। सिर्फ किसी प्रकार व्यक्ति को 30 दिन ज़मानत न मिले, बस। जबकि भारतीय कानून के अनुसार मामला अदालत में मामला पूरा बना कर पेश करने के लिए 90 दिन का समय है। बहुत बार पुलिस यह दलील देती है कि मुल्ज़िम को केस पेश करने तक ज़मानत न दी जाए, क्योंकि वह बाहर जाकर स्थितियों को प्रभावित करेगा। ऐसी स्थिति किसी भी पार्टी जो किसी मंत्री या मुख्यमंत्री के सहारे चलती हो, को खत्म करने के लिए आसानी पैदा कर देगी।
करना क्या चाहिए? 
अपनाओ कोई राह-गुज़र सोच समझ कर,
लाज़िम है किया जाए स़फर सोच समझ कर।
हमारी भाजपा हाईकमान तथा भारत सरकार को विनती है कि राजनीति ही नहीं, अपितु देश के प्रत्येक क्षेत्र में से भ्रष्टाचार तथा अपराधीकरण के खात्मे का इच्छुक तो भारत का प्रत्येक ईमानदार व्यक्ति है, यदि आप सचमुच यह करना चाहते हैं तो स्वागत है, परन्तु छोटी उपलब्धियां या देश में तानाशाही वाली स्थिति पैदा करना भारतीय जनमानस स्वीकार नहीं करेगा। यदि ईमानदारी से यह अच्छा कार्य करना है तो सबसे पहले अपराधियों को पंच-सरपंच, कौंसलर, विधायक तथा सांसद बनने से रोकने के सार्थक प्रयास किए जाएं, अदालतों को आवश्यक जज दिए जाएं तथा प्रत्येक मामले के निपटान के लिए अदालतों में दिन निश्चित किए जाएं। भारतीय जांच एजेंसियों को स्वायत्तता दी जाए और फिर ऐसे कानून या विधेयक संसद में पेश करने से पहले इन पर लम्बी तथा खुली सार्वजनिक बहस लोकमंच पर करवाई जाए। यदि ऐसा करोगे तो आप सचमुच इतिहास के नायक बन जाओगे। 

-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना-141401
-मो. 92168-60000

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