आत्मनिर्भर भारत : अभी कई चुनौतियों से निपटना होगा
निश्चत तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर ज़ोर दिया। उनके भाषण से यह तो स्पष्ट है उनका उद्देश्य महत्वपूर्ण खनिजों (क्रिटिकल मिनरल्स) से लेकर हथियारों तक में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। उन्होंने गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता बताई, ताकि वैश्विक बाज़ार में भारत की छवि को बेहतर बनाया जा सके। लेकिन भाषण का सार लगभग यही है कि जो कुछ हासिल हुआ है, उसके सापेक्ष देश के समक्ष चुनौतियां अभी काफी है। बड़ी हद तक अन्तरिक चुनौतियों से निजात तो मिली, लेकिन पूरी तरह नहीं। भारतीय समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी भयावह दौर से गुज़र रहा है।
79वें आज़ादी दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लाल किले से दिया गया भाषण अगर याद रखे जाने लायक कहा जाएगा तो सिर्फ इसलिए नहीं कि यह उनका अब तक का सबसे लम्बा भाषण रहा या लाल किले के प्राचीर से उन्होंने लगातार बारहवीं बार राष्ट्र को संबोधित किया, जिसका मौका पंडित जवाहरलाल नेहरू के अलावा किसी और प्रधानमंत्री को अब तक नहीं मिला। जिन हालात में और जिन चुनौतियों के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया वह इस बात संकेत था कि उन्हें देश में व्याप्त समस्याओं का पूरा आभास है।
पिछले कुछ सयम से अमरीका के भारत विरोधी फैसले ले रहा है। अमरीका टैरिफ युद्ध के ज़रिये अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, जबकि चीन ने दुर्लभ मृदा खनिज को हथियार बनाया हुआ है। ऐसी स्थिति में भारत को अपना विकास जारी रखने के लिए अन्य विकल्प तलाशने होंगे। स्वाभाविक दुर्लभ मृदा खनिज, तेल और गैस, सेमीकंडक्टर से लेकर हथियारों तक में आत्मनिर्भरता अब भारत की अस्मिता का प्रश्न है। दुनिया जिस तरह से बदल रही है, उस स्थिति में किसी पर भरोसा करना अपने आप को धोखा देना है। फिलहाल देश की डीजीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान केवल 12 प्रतिशत और वैश्विक आपूर्ति में केवल 2.8 प्रतिशत है जबकि चीन दुनिया के लिए 28.8 प्रतिशत सामान बना रहा है।
भारत सरकार इसे 23 प्रतिशत के बराबर करना चाहती है। सरकार ने जो लक्ष्य तय किया है, वह नामुमकिन बिल्कुल नहीं है। ऑटो इक्विपमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, खासतौर पर आईफोन की बात करे तो भारत में वैश्विक जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है। एपल करीब 20 प्रतिशत आईफोन अब भारत में बना रही है, जबकि कभी चीन इसका केंद्र हुआ करता था। पीएम मोदी ने ठीक ही ध्यान दिलाया कि दुनिया गुणवत्ता की कद्र करती है और अगर ग्लोबल मार्केट में भारत की छवि को चमकाना है तो हाई क्वॉलिटी प्रॉडक्ट्स बनाने होंगे।पीएम मोदी चुनौतियों की ओर संकेत करना भी नहीं भूले। उन्होंने न केवल किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों की बात की बल्कि सिंधु जल समझौते को मौजूदा स्वरूप में स्वीकार न करने की दो टूक घोषणा भी कर दी। स्पष्ट है कि भारत किसी भी सूरत में अवांछित दबाव को स्वीकार नहीं कर सकता। भारत 1990 का दशक बदलाव का सबसे बड़ा वाहक था, जब भारत ने आर्थिक उदारीकरण को अपनाया और तय किया कि इस दुनिया में उसे किस रास्ते पर चलना है। भारत के बाजार को खोलने का वह फैसला लिया गया, क्योंकि ऐसी मजबूरी खड़ी हो गई थी। तब देश के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची थी, और आज फॉरेन करंसी रिजर्व के मामले में भारत टॉप 4 में है। आजादी के समय 2.7 लाख करोड़ रुपये वाली जीडीपी अब चार ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुका है। इनके बावजूद अभी भी देष के सामने कई चुनौतियॉ मुह खोले खड़ी है। भारत में हर साल खराब स्वच्छता और सफाई के कारण एक लाख से अधिक बच्चों की मौत हो जाती है और 3.6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है। भारत की जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है। विश्व में सबसे बड़ा युवा जनसंख्या होने के बावजूद, यह एक अवसर भी हो सकता है यदि सही तरीके से इसका प्रबंधन किया जाए।
शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता होगी ताकि भारत की बढ़ती युवा आबादी को समुचित अवसर मिल सकें। इसके साथ ही जनसंख्या का दबाव संसाधनों, सेवाओं और बुनियादी ढांचे पर पड़ेगा, जिसके कारण गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।भारत में आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है, और अगर यह जारी रहती है, तो यह सामाजिक तनाव का कारण बन सकती है।भारत को गरीबी की समस्या से निपटना होगा, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों और कृषि आधारित क्षेत्रों में स्थिति भयावह है। इसके साथ ही, नौकरियों की गुणवत्ता और स्मार्ट कौशल में सुधार की आवश्यकता होगी, ताकि देश की बढ़ती आबादी को रोजगार मिल सके। ऐसे में सरकार को इन चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य और केन्द्र में समन्वय बनाकर वृहद रूप से कार्य करना होगा।