भारत, रूस व चीन की एकता बदल सकती वैश्विक सत्ता संतुलन
यह सर्वविदित है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाख कोशिशों के बावजूद भी पड़ोसी देशों से हमारे रिश्ते नहीं सुधरे। मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही पाकिस्तान, चीन, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। मोदी सबसे पहले नवाज़ शरीफ से मिलने पाकिस्तान पहुंचे थे, मगर असफला ही हाथ लगी। अन्य देशों के साथ भी एक आध को छोड़कर कहीं रिश्तों में उल्लेखनीय सुधार देखने को नहीं मिला। इसका एक सबसे बड़ा कारण यही समझ में आ रहा है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां जनता द्वारा चुनी हुई सरकार शासन करती है। अन्य पड़ोसी देशों में छद्म लोकतंत्र है।
चीन में एक पार्टी की तानाशाही है। अपनी विस्तारवादी नीति के लिए यह देश जाना है। ‘हिन्दी चीनी भाई-भाई’ के नारे को भारत भूला नहीं है। भारत के साथ शत्रुता पूर्ण व्यवहार उसकी पहचान है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में दिखावे का लोकतंत्र है। इन देशों में गृह युद्ध सामान्य बात है। अपने शासकों को फांसी देने या जेल में बंद करने का इतिहास रहा है। आतंकवादी ताकतों के ज़रिये पाकिस्तान भारत में हिंसा फैलाया आ रहा है।
इसी बीच ट्रम्प के टैरिफ ने एक बार फिर भारत और चीन के आपसी सम्बन्ध सुधरने का अवसर प्रदान किया है। दोनों देशों के बीच फिर से सकारात्मक बातचीत होती दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन जाकर आपसी रिश्ते सामान्य बनाने का प्रयास करेंगे। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने, सरहद पर शांति बनाए रखने और दोस्ताना ताल्लुकात को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि भारत और चीन को एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि मित्र मानना चाहिए। वांग यी ने यह भी वादा किया कि चीन भारत को रेयर अर्थ खनिज, उर्वरक और टनल बोरिंग मशीनों की सप्लाई समय पर और बिना किसी बाधा के करेगा। सीमा विवाद की वजह से दोनों देशों को नुकसान हुआ है। अब रिश्ते सुधर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी के चीन दौरे से संबंध और बेहतर होंगे। उन्होंने यह भी माना कि भारत और चीन को आपसी सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत है। वांग यी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ हुई बातचीत का ज़िक्र करते हुए कहा कि दोनों देशों को व्यापार और व्यवहार में एक-दूसरे का साथ देना चाहिए। हालांकि, चीन ने भारत से ताइवान के साथ नज़दीकी न बढ़ाने की गुजारिश की थी, लेकिन जयशंकर ने साफ कर दिया कि भारत ताइवान के साथ अपने कारोबारी और सांस्कृतिक रिश्ते खत्म नहीं करेगा।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हमारे सदियों पुराने मित्र देश रूस ने चीन से कहा है की वह भारत से अपने सभी रिश्ते शांति के साथ निपटाएं। रूस का मानना है भारत, चीन और रूस एक होते है तो दुनिया की कोई ताकत इन्हें आंख दिखाने की हिम्मत नहीं कर सकते। इससे पूरी दुनिया की चाल और सत्ता का संतुलन ही बदल जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार तीनों देश लंबे समय अमरीकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं। चीन युआन, रूस रूबल और भारत रुपया ट्रेड को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में तीनों साथ आकर नई करंसी या पेमेंट सिस्टम बना सकते हैं जो डॉलर को चुनौती देगा। चीन को भी अब समझ आ गया है कि भारत के साथ टकराव से दोनों देशों का नुकसान है। इसके अलावा चीन के इस बदले रुख के पीछे भारत की मज़बूत रणनीति और सरहद पर तेज़ी से विकसित हो रहा बुनियादी ढांचा भी है।
भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास सड़कों, पुलों, सुरंगों और हवाई पट्टियों का निर्माण तेज़ कर दिया है। खास तौर पर पूर्वी लद्दाख में न्योमा एयर फील्ड अगले महीने शुरू होने जा रही है। यह दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी है, जो 13,700 फुट की ऊंचाई पर बनी है। यह वास्तविक नियंत्रण रेखा से सिर्फ 35 किलोमीटर दूर है। इस एयर फील्ड से ग्लोबमास्टर जैसे भारी कार्गो विमान, सुखोई, राफेल, मिग-29 जैसे लड़ाकू विमान और अपाचे, एम.आई.-17 जैसे अटैक हेलीकॉप्टर आसानी से उतर सकेंगे। आपात स्थिति में भारत तेज़ी से सैनिकों और सैन्य उपकरणों को तैनात कर सकेगा।
अब देखना है भारत चीन की दोस्ती परवान चढ़ेगी या नहीं। सब कुछ चीन के भरोसे पर टिकी है। चीन यदि सीमा विवाद सुलझाकर भारत को सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनने में रुकावट नहीं डाले तथा पाकिस्तान को अवांछित मदद नहीं करें तो दोनों देश प्रगति और विकास का मार्ग वरण कर सकते है। वैश्विक जगत में यह बहुत बड़ी बात होगी।