लाल किले से विकसित भारत का दावा क्या चुनावी दस्तावेज़ तो नहीं !

इस बार भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन कई मायनों में अब तक के उनके संबोधनों से बिल्कुल अलग था। सबसे पहले तो उन्होंने इस बार रिकॉर्ड 103 मिनट का लम्बा भाषण दिया, लेकिन इस लंबी अवधि के भाषण में भी लगातार उनके उद्बोधन में जोश और प्रखरता बनी रही। प्रधानमंत्री मोदी का लाल किले की प्राचीर से यह 11वां संबोधन अपने स्वर, दिशा और घोषणाओं की बहुलता व स्पष्टता के लिए भी याद रखा जायेगा, क्योंकि उनकी घोषणाओं में महज सूचनाएं भर नहीं थीं बल्कि एक स्पष्ट विजन, ठोस चेतावनी और व्यवहारिक रोड मैप भी झलक रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने यूं तो 10 से ज्यादा महत्वपूर्ण विषय अपने संबोधन में उठाये, लेकिन उनके भाषण का केंद्र 2047 का विकसित भारत ही रहा। उनके भाषण की धुरी देश की आत्मनिर्भरता, सुरक्षा और एकता के इर्दगिर्द घूमती रही। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में रक्षा, टेक्नोलॉजी, ऊर्जा, कृषि और सेमी-कंडक्टर जैसे क्षेत्रों में भारत के स्वालंबन की छलांग की घोषणा की। उन्होंने विकसित भारत 2047 का ब्लू प्रिंट साझा करते हुए देशवासियों के सामने अगले 22 सालों में 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा। हालांकि उनके भाषण की धुरी में आत्मनिर्भरता का यह संदेश केवल आर्थिक भर नहीं था, इसमें राजनीतिक एकता और पाकिस्तान द्वारा नाभिकीय ब्लैकमेल या आतंकवाद के किसी भी रूप को स्वीकार न किये जाने की स्पष्ट चेतावनी भी थी। 
हाल के सालों में लाल किले की प्राचीर से उनके संबोधनों में इस बार का संबोधन इसलिए अलग था, क्योंकि इसके पहले प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त के अपने आकर्षक भाषणों में देश के सामने जो लक्ष्य, जिन योजनाओं का खाका खींचते थे, उनमें अकसर पांच से दस साल तक की समयावधि शामिल होती थी, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने जिन योजनाओं की घोषणा की, जो लक्ष्य देश के सामने रखे, उनमें लम्बी अवधि का फासला नहीं था। मसलन उन्होंने कहा, ‘देशवासियों को आगामी दीपावली पर डबल खुशियां मिलने वाली हैं’। ..तो जाहिर है यह महज दो महीने के भीतर हासिल किया जाने वाला लक्ष्य है। इसी तरह उन्होंने युवाओं के लिए विकसित भारत की नयी रोज़गार सृजन की जिस योजना घोषणा की, वह भी तुरंत से लागू हो जाने वाली है। 
इस बार के 103 मिनट के भाषण में उन्होंने ‘देश’ शब्द का इस्तेमाल 205 बार किया और आश्चर्य की बात यह है कि हर बार नये और ध्यान खींचने वाले संदर्भ में किया। इसी तरह उन्होंने अपने भाषण में ‘आत्मनिर्भर’ शब्द का 22 बार और ‘किसान’ शब्द का इस्तेमाल 27 बार किया। सबसे बड़ी बात यह है कि 1 घंटे 43 मिनट के अपने इस भाषण में वह बिल्कुल तरोताज़ा दिख रहे थे। उनका भाषण भी बिल्कुल कसा हुआ और चयनित शब्दावलि अपने मकसद की धुरी में पूरी तरह से केंद्रित थी। राष्ट्रवाद और स्वालंबन उनके भाषण के दो स्थायी मूल्य थे। 
प्रधानमंत्री मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपने सार्वजनिक भाषणों में जिस तरह रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा को निर्णायक स्वर दिया है, वह स्वर लाल किले की प्राचीर से इस बार दिये गये उनके भाषण में भी मौजूद था बल्कि कहना चाहिए कि उनके भाषण का सबसे भावनात्मक और शक्तिशाली हिस्सा यही था। उन्होंने भारत की अगली पीढ़ी की सुरक्षा के लिए स्वदेशी सुरक्षा प्रणाली ‘सुदर्शन चक्र मिशन’ की घोषण की। जिसे जानकार इजरायल के ‘आयरन डोम’ का भारतीय संस्करण कह रहे हैं। वास्तव में सुदर्शन चक्र मिशन की शक्तिशाली घोषणा काफी चौंकाने वाली और देश विदेश के अनुमान लगाने वालों के लिए नई रही, जो भविष्यवाणी कर रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी इस बार क्या घोषणा करेंगे? देशवासियों को निश्चित रूप से इस घोषणा से सुरक्षा की अतिरिक्त राहत महसूस हुई होगी। इसके अलावा उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख करते हुए सैनिकों के शौर्य को एक बार फिर से सलाम किया तथा पाकिस्तान को सख्त से सख्त संदेश दिया और बताया कि आतंकवाद और हिंसा को अब और बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। प्रधानमंत्री ने फिर से सिंधु जल समझौते को लेकर कहा, ‘रक्त और पानी साथ साथ नहीं बहेंगे।’ 
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ओजपूर्ण संबोधन में डेमोग्राफिक मिशन और आंतरिक सुरक्षा पर भी ज़ोर दिया। सच बात तो यह है कि भाषण का यह पहलू भी ध्यान खींचने वाला था। उन्होंने इस संबोधन में, ‘हाई पावर डेमोग्राफी मिशन’ की घोषणा की, जिसका उद्देश्य अवैध प्रवासियों पर नियंत्रण और संसाधनों को भारतीयों के लिए संरक्षित किये जाने की बात थी। उनके इस बयान के मायने खास तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों और पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर घुसपैठ के आरोपों को देखते हुए खास था। प्रधानमंत्री ने यूं तो अपने भाषण में देश के हर हिस्से का ध्यान खींचा, लेकिन पूर्वोत्तर राज्य और सीमावर्ती इलाकों पर सबसे अहम फोकस रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने देश के सीमावती क्षेत्रों में जनसंख्या असंतुलन की चिंता भी उठायी और अप्रत्यक्ष रूप से बिहार की मतदाता सूची संशोधन की तरफ भी इशारा किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कई भावनात्मक पहलुओं को स्पष्ट किया। उपलब्धियों और योजनाओं के साथ साथ उन्होंने भारत की भाषायी विविधता और सांस्कृतिक धरोहर पर भी गर्व किया। बिजली, ऊर्जा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में स्वदेशी प्रयासों का गर्वित उल्लेख के साथ साथ उन्होंने आने वाले वर्षों में भारत को विश्व के तकनीकी और वैज्ञानिक मानचित्र पर अग्रणी देश बनाने का भी विशेषकर युवाओं से आह्वान किया, लेकिन विस्तार से राष्ट्र के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं का छूते हुए भी उन्हें वर्तमान के अंतर्राष्ट्रीय संदर्भों और वैश्विक मंच पर भारत की उपस्थिति की चिंता याद रही और उन्होंने साफ  तौर पर कहा कि भारत की वैश्विक भूमिका निजी स्वतंत्र और स्वनिर्णय से तय होगी।
रक्षा स्वालंबन के लिए उन्होंने जहां बड़े निवेश की बात की, वहीं जीएसटी सुधारों में राज्यों की सहमति और रोजगार योजनाओं के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाने की भी ठोस और व्यवहारिक पहल की। कुल मिलाकर देखें तो साल 2025 के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का लाल किले की प्राचीर से देश को किया गया संबोधन विकसित भारत के लिए एक स्पष्ट रोड मैप था या फिर इसे आगामी कई राज्यों में होने वाले चुनावों के लिए एक आकर्षक चुनावी दस्तावेज़ भी कुछ लोग कह सकते हैं और तर्कों व तथ्यों से इसे साबित भी किया जा सकता है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपने इस भाषण में मिडिल क्लास और युवाओं को केंद्र में रखा, राष्ट्रीय सुरक्षा और डेमोग्राफिक मिशन पर कठोर रूख की बात की, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि उनका यह भाषण भावनात्मक राष्ट्रवाद और भविष्य की दृष्टि का शानदार मिश्रण था।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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