मिज़ोरम का प्रसिद्ध पर्व है मीम कुत

मीम कुत उत्सव मिज़ोरम की आत्मा में बसा पर्व है। यह पर्व मिज़ोरमवासियों को पूर्वजों की स्मृति के उल्लास से सामूहिक रूप में जोड़ता है। इस उत्सव में वह न केवल प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं बल्कि अपनी सामाजिक चेतना, सांस्कृतिक गरिमा और मानवीय संबंधों की जीवंतता का भी उल्लास मनाते हैं। यह पर्व हमें संदेश देता है कि जब पूरा समाज मिलकर पूर्वजों की याद में हंसता, गाता है, तो ऐसा समाज अतीत को किसी टीस की तरह नहीं बल्कि उत्सव के रूप में लेता है।
वास्तव में भारत के पूर्वी राज्य मिज़ोरम की सांस्कृतिक आत्मा में यहां का मीम कुत उत्सव रचा बसा है। मीम कुत उत्सव कहने को तो एक फसल पर्व है, लेकिन इसमें जीवन के उल्लासपूर्ण दर्शन का पूरा आख्यान छिपा है। वास्तव में मिजो भाषा में मीम का मतलब होता है मकई यानी मक्का और कुत का मतलब होता है त्योहार यानी मीम कुत उत्सव प्रत्यक्ष रूप में मकई की बेहतर फसल का उत्सव है। यह उत्सव मकई की भरपूर फसल होने के खुशी में मनाया जाता है लेकिन मकई तो कृषि जीवन का एक प्रतीकभर है। यह वास्तव में परिवार के पूर्वजों की स्मृति का उत्सव है और स्मृति के शोक को उल्लास में बदलने का ढंग है।  मीम कुत उत्सव उस साल मरे बुजुर्गों और अतीत में मरे परिवार के सभी बुजुर्गों को याद करने का पर्व है लेकिन मरे हुए बुजुर्गों को शोक संतप्त ढंग से मानाने का उत्सव नहीं है बल्कि ढोल की थाप में पूर्वजों की स्मृति को साझा करने का पर्व है। यह पर्व बहुत ही आनंद और उत्सवजनक तरीके से मनाया जाता है। यह हर साल अगस्त माह के अंत या सितंबर के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। इस साल यह स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक 1 से 3 सितंबर 2025 के बीच मनाया जायेगा। गौरतलब है कि मिजोरम में स्थानीय चंद्र पंचांग का चलन है, जो कि फसल की स्थिति और सामूहिक सहमति पर निर्भर होता है। इसलिए अंग्रेजी कैलेंडर की तारीखों से यह आगे पीछे भी हो सकता है। 
यह बेहद पारंपरिक ढंग से लेकिन अतिशय उत्साहपूर्ण ढंग से मनाया जाता है, जिसमें पहले पक चुकी मक्का की बालियों को भूनकर गांवभर के पूर्वजों और देवी देवताओं की आत्माओं को समर्पित किया जाता है। इसके बाद गांवभर के लोग सामूहिक रूप से एकत्र होकर परंपरागत वेशभूषा में पुरुष और महिलाएं मिलकर चेरो नृत्य और बहुआल लाम करते हैं। तेज और चपल धुनों पर ये नृत्य स्थानीय ढोल, गाेंग और बांसुरी के साझा संगीत में सम्पन्न होते हैं। इस नृत्य और संगीत समारोह में पारंपरिक भोज और पेय की विशेष व्यवस्था होती है। खास करके ‘जू’ नाम की चावल से बनी एक विशेष पारंपरिक शराब, इस भोज और उत्सव की खास पहचान होती है। यह शराब पूरे गांव के लोगों के बीच सामूहिक रूप से बांटी जाती है और इसके साथ खाये जाने वाले पकवान भी पूरे गांव के लोग मिलकर बनाते हैं या इनकी व्यवस्था करते हैं। जैसा कि उत्तर पूर्व के ज्यादातर उत्सवों में होता है इनके सामूहिक उत्सव युवावर्ग के लिए अपने पारंपरिक कौशल और प्रेम निवेदनों का उत्सव भी होता है। इसलिए जब पूरे गांव के सभी बड़े, बुजुर्ग और बच्चे खाने पीने और संगीत की मस्ती में झूम रहे होते हैं, तब युवा लोग अपनी तीरअंदाजी और दूसरे खेल कौशलों तथा कुश्ती का प्रदर्शन करते हैं, जो अपना कौशल दिखाने के साथ-साथ मनपसंद लड़की और लड़के को इम्प्रेस करने का भी जरिया होता है। 
सामूहिकता में सामाजिकता की झलक
मिम कुत उत्सव की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सामूहिकता है। इसमें किसी जाति, वर्ग, उम्र और यहां तक कि लिंग के लोगों का कोई भेद नहीं रहता। सब लोग एक साथ मिलकर यह उत्सव मनाते हैं। इससे सामूहिकता मजबूत होती है और सामाजिकता को भरपूर सम्मान मिलता है। यह उत्सव हर तरह के भेदभावों को मिटा देता है। चाहे वह सामाजिक स्तर के भेदभाव हों या आर्थिक स्तर के। क्याेंकि इस उत्सव में समाज का हर व्यक्ति पूरे मनोवेग से शामिल होता है। किसी का इस उत्सव में निजी कुछ भी नहीं होता, जो भी लोग अपने घरों से लाते हैं, वह सामूहिक रूप से एकत्र होने की जगह में एक जगह इकट्ठा कर लिया जाता है, जिसमें किसी की कोई पहचान नहीं रह जाती और फिर इन तमाम चीजों का लोग मिलकर भरपूर आनंद लेते हैं। कोई नहीं जानता कि वह किसकी क्या चीज का आनंद ले रहा है। इसके साथ ही गांव के सभी लोग मिलकर नृत्य करते हैं। मिलकर भोजन तैयार करते हैं और मिलकर इस सबका आनंद लेते हैं। 
मिजोरम का यह मीम कुत उत्सव केवल एक पारंपरिक पर्व भर नहीं है बल्कि यह एक ऐसा सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है, जो पर्यटकों और संस्कृति प्रेमियों को खूब आकर्षित करता है। यही कारण है कि आजकल मीम कुत उत्सव के समय मिजोरम में देश विदेश के पर्यटकों की भारी भीड़ होती है। दरअसल पर्यटकों को इस उत्सव में भाग लेने से प्रमाणिक जनजातीय अनुभव होते हैं। देश के कोने-कोने से आये पर्यटक मिजो संस्कृति, खानपान, वेशभूषा और पारंपरिक जीवनशैली से परिचित होते हैं। देशी विदेशी पर्यटक मिजो लोकनृत्य से अभिभूत हो उठते हैं और इस सबके अलावा इस पर्व के दौरान पर्यटकों के पास स्थानीय लोगों की हस्तशिल्प और दस्तकारी की कई अद्भुत चीजों को नज़दीक से देखने व खरीदने का मौका मिलता है। क्योंकि उत्तर पूर्व के ज्यादातर उत्सव बाहरी लोगों के लिए भी खुले होते हैं, इसलिए देश विदेश के पर्यटक भी स्थानीय मिजो लोगों के साथ इस सांस्कृतिक पर्व का आनंद उठा सकते हैं। इसलिए बड़ी तादाद में बाहरी लोग इन आयोजनों में हिस्सा लेते हैं। ये लोग भी स्थानीय लोगों के साथ मिलकर उनकी ही जैसी पोशाक पहनकर, उनके ही जैसे लोकनृत्य करने की कोशिश करते हैं और इस कोशिश का भरपूर आनंद लेते हैं। मिजोरम टूरिज्म विभाग अब इस उत्सव को अपने अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कैलेंडर में भी प्रमोट कर रहा है और इस तरह स्थानीय लोगों की इस उल्लासपूर्ण जीवनशैली को प्रदेश की कमाई का एक जरिया बनाने की कोशिश कर रहा है। 
आज जब शहरीकरण और वैश्विककरण के चलते दुनियाभर की संस्कृतियां एक-दूसरे से मेलजोल कर रही हैं, एक-दूसरे को जान पहचान रही हैं, ऐसे समय में मिजो संस्कृति अपनी उदारता और खुलेपन के कारण दुनिया को आकर्षित करने का एक बड़ा सांस्कृतिक आकर्षण बन गई है। मीम कुत पर्व बताता है कि अगर आपके अंदर अपनी संस्कृति, अपनी पहचान धड़कती है, तो आप किसी भी वैश्विककरण की धुंध में नहीं होते। आपकी अपनी चमक और धमक दोनो ही बनी रहती हैं। इसलिए मीम कुत जैसे पर्व इस वैश्विक समाज में अपने शानदार सहभागिता का भी बड़ा संवेदनशील उदाहरण है। ऐसी सांस्कृतिक गतिविधियों से स्थानीय लोगों को वैश्विक संस्कृति के साथ तालमेल मिलाने का हौसला भी मिलता है। इसलिए मीम कुत उत्सव स्थानीय मिजो वासियों को दुनिया के साथ मेलजोल बढ़ाने का मौका देता है और यही उत्सव दुनिया के लिए मिजो संस्कृति की खिड़की खोलता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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