भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ ज़्यादा दिनों तक नहीं चल सकेगा
डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफलगाने की घोषणा, उनकी उन आर्थिक घोषणाओं की श्रृंखला में नवीनतम है जिनका असर अप्रत्याशित रूप से सीमाओं के पार भी पड़ता है। व्हाइट हाउस इसे ‘अमेरिकी हितों की रक्षा’ के कदम के रूप में पेश कर सकता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह निर्णय अमरीकी उपभोक्ताओं को तत्काल कष्ट पहुंचाता है, महत्वपूर्ण उद्योगों को अस्थिर करता है और आर्थिक प्रतिक्रियाओं की एक ऐसी श्रृंखला को गति प्रदान करता है जो भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार से कहीं आगे तक फैली हुई है।
अमरीकी परिवार पहले से ही इस दबाव को महसूस कर रहे हैं। देश के कई जाने-माने ब्रांडों ने आयात लागत बढ़ने की आशंका में कीमतें बढ़ानी शुरू कर दी हैं, जो एक अपरिहार्य प्रतिक्रिया है जब किसी प्रमुख व्यापारिक साझेदार का सामान अचानक नाटकीय रूप से महंगा हो जाता है। इस प्रकरण को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनाने वाली बात यह है कि लक्ष्यए भारतए केवल उपभोक्ता वस्तुओं का एक और स्रोत नहीं है , यह कई क्षेत्रों, विशेष रूप से दवा उद्योग में एक महत्वपूर्ण आधार है। भारत में निर्मित दवाइयां लम्बे समय से अमरीकी जेनेरिक दवा बाज़ार पर हावी रही हैं, जिससे लाखों अमरीकियों के लिए स्वास्थ्य सेवा लागत नियंत्रण में रही है। दशकों से जीवन रक्षक हृदय की दवाओं से लेकर बुनियादी एंटीबायोटिक दवाओं तक, हर चीज़ की सामर्थ्य भारतीय जेनेरिक दवाओं के निरंतर प्रवाह पर निर्भर रही है। इन आयातों को महंगा बनाकर ट्रम्प का टैरिफ मरीज़ों, बीमा प्रदाताओं और अस्पतालों के लिए उच्च कीमतों की गारंटी कर देता है।
विडम्बना यह है कि इसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है। टैरिफ को लेकर होने वाली बयानबाजी आमतौर पर उन्हें घरेलू उद्योग के देशभक्तिपूर्ण बचाव के रूप में पेश करती है, लेकिन अमरीका के पास जेनेरिक दवा उत्पादन में भारत की भूमिका को उसी पैमाने या लागत पर बदलने के लिए पर्याप्त विनिर्माण आधार नहीं है। यह अमरीकी दवा कारखानों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त देने के बारे में नहीं है। ये कारखाने, कुल मिलाकर मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक संख्या और क्षमता में मौजूद नहीं हैं। इसके बजाय इस नीति से एक ऐसे उद्योग में आपूर्ति में कमी आने का जोखिम है जहां सामर्थ्य और दुर्गमता के बीच का अंतर सचमुच मरीज़ों के लिए जीवन और मृत्यु का अंतर बन सकता है।
हालांकि ट्रम्प इन व्यावहारिक परिणामों से बेपरवाह दिखते हैं। उनकी राजनीतिक शैली तात्कालिक शक्ति के आभास पर फलती-फूलती है, भले ही शुरुआती तालियों के थमने के बाद झटके महसूस किए जाएं। यह पैटर्न जाना-पहचाना है— एक साहसिक टकरावपूर्ण कदम उठाना समाचार चक्र पर हावी होना और जब जनमत या बाज़ार की वास्तविकता का रुख़ बदलता है, तो जल्दबाजी में पलटवार करना। यही कारण है कि भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ हालांकि अल्पावधि में संभावित रूप से नुकसानदेह है, उनके अगले कदम तक ही चल सकता है। ऐसा कुछ जो उनके पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए कुछ दिनों या हफ्तों में हो सकता है। ट्रम्प की कार्यपुस्तिका में प्रभाव की तुलना में स्थायित्व कम महत्वपूर्ण है।
फिर भी जब तक यह लागू रहेगा, नुकसान वास्तविक होगा। छोटे और मध्यम आकार के अमरीकी व्यवसाय जो भारतीय आयातों पर निर्भर हैं (कपड़ों से लेकर मशीनरी के पुर्जों तक) को ज़्यादा लागत का सामना करना पड़ेगा, जिससे उन्हें या तो नुकसान सहना होगा या उसे ग्राहकों पर डालना होगा। खुदरा विक्रेता उत्पादों की कीमतें बढ़ाएंगे।
दवाओं का पहलू शायद राजनीतिक रूप से सबसे ज़्यादा ज्वलनशील है। दवाओं की कीमतें अमरीकी राजनीति में लगातार एक मुद्दा रही हैं और उन्हें नियंत्रण में रखने की आवश्यकता पर दोनों दलों की सहमति है। ट्रम्प खुद अतीत में दवाओं की ‘बेहद ऊंची’ कीमतों के खिलाफ मुखर रहे हैं और खुद को आम अमरीकियों के लिए किफायती स्वास्थ्य सेवा के हिमायती के रूप में पेश करते रहे हैं। फिर भी यह टैरिफ, देश की सस्ती दवाओं के सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक को और महंगा बनाकर उस लक्ष्य के बिल्कुल विपरीत कार्य करता है। यह एक विरोधाभास है जो अक्सर बयानबाजी और हकीकत के बीच के अंतर से परिभाषित राष्ट्रपति पद का प्रतीक है।
भारत न केवल अमरीका का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, बल्कि यूरोप, अफ्रीका और एशिया को आपूर्ति करने वाली आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण नोड भी है। अमरीका-भारत व्यापार में व्यवधान अन्य बाज़ारों में भी लहर जैसा प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि आपूर्तिकर्ता सामान को पुनर्निर्देशित करते हैं, मूल्य निर्धारण समायोजित करते हैं या वैकल्पिक भागीदारों की तलाश करते हैं। उदाहरण के लिए दवाइयों के क्षेत्र में भारतीय निर्माता अक्सर एक ही उत्पादन लाइन से कई देशों को सेवाएं प्रदान करते हैं। यदि उच्च टैरिफ के कारण अमरीकी मांग कम हो जाती है, तो ये कंपनियां आपूर्ति को अन्य बाज़ारों में पुनर्वितरित कर सकती हैं, जिससे अन्यत्र दवाओं की उपलब्धता और मूल्य निर्धारण में बदलाव आ सकता है। यह एक प्रकार का प्रणालीगत बदलाव है जो टैरिफ को द्विपक्षीय झड़प से कहीं अधिक बनाता है। यह उन्हें एक वैश्विक अशांति बनाता है।
यदि इतिहास को आधार मानें तो ट्रम्प के राजनीतिक गणित में अगले बदलाव के बाद 50 प्रतिशत टैरिफ शायद टिक न पाए। भारत से कुछ प्रतीकात्मक रियायत के बदले इसे वापस लिया जा सकता है या किसी अन्य लक्ष्य पर केंद्रित एक नए सुर्खियां बटोरने वाले कदम से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, लेकिन जब तक यह लागू रहेगा, उपभोक्ताओं, उद्योगों और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके वास्तविक ठोस प्रभाव पड़ेंगे, जिनमें से कई हानिकारक होंगे। फिर यह नीति टिके या न टिके, अमरीका की अप्रत्याशितता का यह संकेत बहुत लंबे समय तक बना रहेगा।
ट्रम्प के हाथों में व्यापार नीति के तंत्र नाटक के औज़ार बन जाते हैं, लेकिन यह सब हथयारों से किया जाता है। गोलियां भले ही विदेशी ठिकानों पर दागी जाएं, लेकिन लगभग हमेशा उनकी मारक क्षमता अपने घर तक ही पहुंचती है। (संवाद)