भारत का सबसे छोटा हिल स्टेशन माथेरान

मुम्बई की उमस भरी गर्मी मुझे परेशान करने लगी थी। मैं इससे बचना चाहता था। मेरे पास बिना काम के दो दिन थे। इसलिए मैं मुंबई से ट्रेन में सवार हो गया, नेरोल स्टेशन के लिए जोकि लगभग 100 किमी के फासले पर है। नेरोल उतरने के बाद मैं हेरिटेज टॉय ट्रेन में बैठा, 300 रूपये का टिकट लेकर (बच्चों के लिए टिकट 180 रूपये का है)। इस टॉय ट्रेन का निर्माण 1907 में हुआ था। इसमें बैठने की एक खास वजह यह थी कि यह 21 किमी तक जंगलों की ढलानों पर घूमती हुई जाती है, जिससे वादियों व झरनों का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है, विशेषकर इसलिए कि टॉय ट्रेन बहुत धीमी रफ्तार से चलती है। यहां मैं यह बताता चलूं कि आप अगर पुणे में हैं तो माथेरान सड़क के ज़रिये जाएं, लगभग 120 किमी का फासला जल्दी तय कर लेंगे। बहरहाल, जब मैं नेरोल से दस्तूरी नाका पहुंचा तो वहां से माथेरान मैंने पैदल ही जाने का फैसला किया, हालांकि घोड़े की सवारी भी उपलब्ध थी। आप सोच रहे होंगे कि पैदल या घोड़े से ही क्यों? चूंकि माथेरान एशिया का एकमात्र हिल स्टेशन है जो ऑटोमोबाइल-फ्री है। इसमें न कार चलती हैं, न बाइक, केवल पैदल चलने, घोड़ों व हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा के लिए मार्ग हैं। माथेरान की धीमी गति ही इसके जादू का हिस्सा है।
माथेरान भारत का सबसे छोटा हिल स्टेशन है। महाराष्ट्र में समुद्र के स्तर से लगभग 800 मी की ऊंचाई पर स्थित माथेरान मात्र 7 वर्ग किमी में फैला हुआ है। लेकिन मैंने महसूस किया कि अपने छोटे आकार की भरपाई यह अपनी सुंदरता व शांति से कर लेता है। इसकी खूबसूरती को शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, हां महसूस अवश्य किया जा सकता है, जिसका एहसास, कम से कम मुझे तो जीवनभर रहेगा। जॉन कीट्स ने कहा था कि सुंदर चीज़ हमेशा के लिए खुशी प्रदान करती है। माथेरान ऐसी ही जगह है। कोहरे से भरे पहाड़ों में चहलकदमी करना, गीली मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू, ट्रैफिक की पों पों की जगह पक्षियों के गीत, अगर इस माहौल में सप्ताहांत न गुज़ारा तो समझो कि ज़िंदगी में कुछ न किया। मैंने एकदम सही फैसला किया था कि मुंबई की उमस भरी गर्मी से बचकर सहयाद्रि पहाड़ियों की ठंडी हरियाली ढलानों पर चला आया था। 
माथेरान में ठहरना भी महंगा नहीं है। मैं तो अपने बजट के हिसाब से एक लॉज (1000-1500 रूपये) में रुका था, लेकिन यहां हेरिटेज रिसॉर्ट्स (3,500 से 6,000 रूपये) के विकल्प भी हैं, जिनमें कोलोनियल शैली के बरामदे हैं, जहां से दूर तक फैले जंगलों का शानदार नज़ारा मिलता है। इनके अतिरिक्त बाज़ार के निकट आरामदायक होम-स्टे भी हैं। माथेरान में प्राकृतिक नज़ारे देखने के लिए 30 से अधिक व्यूपॉइंट्स हैं। मुझे विशेषरूप से पांच पसंद आये। पनोरमा पॉइंट से 360 डिग्री का नज़ारा देखने को मिला और यहां से उगते हुए सूरज को देखना तो कमाल रहा। इको पॉइंट से मेरी आवाज़ पहाड़ों से टकराकर वापस आयी, अपनी ही आवाज़ को सुनना अच्छा लगा। लुइसा पॉइंट से गहरी वादियों व प्राबल किले को देखा। शांत पिशार्नाथ महादेव मंदिर के निकट शार्लट झील के किनारे सुकून भरी चहलकदमी में आनंद आ गया। वन ट्री हिल, पोर्कुपाइन पॉइंट, मंकी पॉइंट व किंग जॉर्ज पॉइंट कुदरती नज़ारों की अलग-अलग तस्वीरें दिखाते हैं। 
मानसून में लाल मिट्टी के मार्गों पर चमक आ गई थी, जंगली फूल खिल रहे थे और मोड़ों पर झरनों ने मेरी हर वाक को एक खोज बना दिया था। जहां तक माथेरान में खाने की बात है तो इसके बाज़ार की दुकानों पर वडा पाव, मिस्सल पाव, पोहा, गर्म चाय, हॉट कॉर्न कोब आदि यानी महाराष्ट्र के परम्परागत फूड्स ही अधिक मिले। हां, माथेरान का विख्यात चॉकलेट फज तो हर जगह था। ताज़ी बनी चिक्की मिठाई भी पॉपुलर है, जिसका एक डिब्बा मैं अपने घर लेकर भी लौटा। हालांकि माथेरान में अक्तूबर से मई तक मौसम सुहावना रहता है, लेकिन मानसून अपने साथ ठंडी हवा, हरियाली लेकर आता है, जिससे व्यूपॉइंट्स का महत्व बढ़ जाता है। कहने का अर्थ यह है कि मानसून में माथेरान अधिक सुंदर हो जाता है। अगर मेरे अनुभव को सुनकर आपका मन भी माथेरान जाने का हो रहा है तो कुछ बातों का ख्याल अवश्य रखें- असमतल रास्तों पर वाक करने के लिए आरामदायक वाकिंग शूज लेकर जाएं। माथेरान में अचानक बारिश आ जाती है, इसलिए छाता या रेनकोट साथ रखें। शामें बहुत ठंडी हो जाती हैं, हल्के गर्म कपड़े अवश्य लेकर जाएं। रात में चहलकदमी के लिए साथ टोर्च रखें। एटीएम गिनती के हैं, कैश साथ रखें। भारी लगेज लेकर न जाएं। बारिश में निर्धारित मार्गों पर ही चलें ताकि फिसलने से बच सकें। माथेरान में वक्त धीमा हो जाता है, हवा ताज़ी महसूस होती है और एकमात्र डेडलाइन सनसेट है। माथेरान एक ऐसी जगह है जिसे आप केवल विजिट ही नहीं करेंगे बल्कि हमेशा याद रखेंगे, मेरी तरह। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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