प्रेरक प्रसंग-मां
बात उन दिनों की है, जब महात्मा गांधी का सत्याग्रह आंदोलन जोर-शोर से चल रहा था। लोगों को जबरन जेलों में बंद किया जा रहा था। गुरु रविन्द्रनाथ ठाकुर से मिलने वेदांतियों का मित्र मंडल आया। एक व्यक्ति बोले- ‘गुरूदेव, इस अंधश्रद्धा से तो अब आप ही उबारें देश को। देश भक्ति कितना तुच्छ विचार है। यहां कौन अपना, कौन पराया, सब माया है, नश्वर है। यह भूमि जड़ है, जड़ से इतना मोह क्यो?’
गुरूदेव की स्वाभाविक मुस्कान गायब हो गयी, लेकिन रोष पर किसी प्रकार नियंत्रण कर अत्यंत गंभीर स्वर में बोले - ‘आपकी मां जीवित है न?’
तत्काल उश्रर मिला - ‘हां।’
गुरूदेव बोले- ‘क्या आप अपनी मां का सिर काटकर ला सकते हैं?’
इतना सुनते ही वह व्यक्ति क्रोध से आग-बबूला हो गया और बोला- ‘क्या आप मुझे इतना गिरा हुआ इंसान समझते हैं कि मैं अपनी जन्मदात्री का ही सिर काटकर ले आऊंगा?’
गुरूदेव मुस्कुराकर बोले- ‘आप स्वयं सिर काटकर नहीं ला सकते, तो किसी अन्य व्यक्ति को तो इसकी इजाजत दे सकते हैं?’
‘इजाजत?’ वह व्यक्ति क्रोध से तड़प उठा और बोला- ‘मैं उस दुष्ट व्यक्ति का सिर काट लूंगा !’
गुरूदेव ने कहा - ‘बस तो गांधी जी और उनके मित्र भी अपनी मां पर ऐसी ही श्रद्धा और भक्ति रखते हैं- अंतर केवल यही है कि आपकी मां केवल एक बेटे की मां है और उनकी मां भारत के कोटि-कोटि बेटों की मां है ।’
- मो. 09135014901