लिख के ले लो यार!
‘मैंने पहले ही कहा था...’
‘देखो, मैंने कहा था ना...’
जी हां! लिख के ले लो यार! ये लोग कह रहे हैं न, ऐसा हो ही नहीं सकता कि इस दुनिया में कुछ अच्छा हो जाए। जो होना है, वो बुरा ही होना है। ये लोग हैं न, लिख के दे रहे हैं.. कैसे अच्छा हो जाएगा?’
ये लोग हैं ही ऐसे। अगर इन्हें कोई अच्छी खबर मिल जाए, तो जैसे इनकी रातों की नींद हराम हो जाएगी। कहते हैं- ‘लिख के दे दिया है ना! तनिक इंतजार तो करो।’ ऐसा कहकर वो फिर ऊपर आसमान की ओर देखने लगता है। ‘हे भगवान, मेरी लाज रखना... कहीं मैं झूठा साबित न हो जाऊँ!’ इनका वश चले तो पूरी कायनात को अपनी बात सही साबित करने के लिए दांव पर लगा दें।
इनकी नजरों में-
* सेंसेक्स गिरने के लिए
* लॉटरी लुटने के लिए
* शादियां तलाक के लिए
* मकान गिरने के लिए
* धंधे कंगाल होने के लिए
* और कारें एक्सीडेंट के लिए ही बनी हैं!
कोई भी काम शुरू नहीं होता, उससे पहले ही ये लोग उसके खत्म होने की तारीख, योग और फेलियर थ्योरी प्रमाणित करने के लिए दो-चार सबूत ढूंढ निकालते हैं। और फिर छोड़ते हैं अपना ब्रह्मास्त्र-
‘अरे साहब, लिख के ले लो!’
मिल जाएंगे ऐसे लोग... ढूंढने की ज़रूरत नहीं है, आपके आसपास ही मंडराते मिलेंगे। किसी भी बात को साबित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इनकी निगाहों में हर घटना, हर खुशी, हर अवसर, हर प्रयोजन का बस दूसरा ही पहलू होता है-नकारात्मकता!
‘फलां साहब ने शेयर मार्किट में पैसा लगाया? अरे भाई साहब, लिख लो, ये टूटेगा! मैं लिखकर दे सकता हूँ!’
‘फलां के बेटे की शादी हो ही नहीं सकती! अरे भाई, आजकल कौन लड़की देगी एक इंजीनियर को? लिख लो! शादी हो ही नहीं सकती। बहन जी, लड़के वाले लेके आएंगे कोई बिहारी कुजाती, देख लेना!’
चुनाव में भी ये किसी की जीत की भविष्यवाणी नहीं करेंगे, पर किसी की हार की गारंटी ज़रूर लेंगे-
‘अरे भाई, लिख लो, ये बंदा हारेगा! पटकनी खाएगा एकदम!’
कोई नौकरी के लिए तैयारी कर रहा है....
‘अरे भाई साहब, कहां है आजकल नौकरी...? हमारे बच्चे को ही देख लीजिए, चार साल से रगड़ रहा है लेकिन नौकरी मिलती है तो बस उन्हीं को, जिनकी नेताओं और अधिकारियों तक सीधी पहचान होती है। सेटिंग चाहिए साहब, ऊपर तक! मेहनत-वेहनत से कुछ नहीं होता..’
और जिस बच्चे की बात कर रहे हैं, वो चिलम फूंकते पकड़ा गया है... लेकिन इस पहलू को सबूत बतौर तो नहीं रखा जा सकता, न?
ये वही लोग हैं, जिन्हें धूप में बर्फ पिघलने के बजाय बारिश आने की संभावना ज्यादा दिखती है। शादी में बिजली गुल होने की, आंधी आने की, शेड में भी ऐन वक्त पर घोड़ी या पंडित न मिलने की अपार संभावनाएं तलाशते रहते हैं।
किसी ने नई दुकान खोली-इनका राग मार्सिया शुरू-
‘अरे भाई, दो महीने में दुकान बंद मिलेगी! देख लेना!’
इनके हिसाब से किसी भी धंधे में लागत ज्यादा, ग्राहकी कम, आमदनी नाममात्र की, लेकिन आप हैं कि ढीठ बनकर दुकान खोल ही लेंगे! अब इनके लिए एक नया काम बढ़ गया-रोज आपकी दुकान के चक्कर लगाकर यह देखने का कि कब इनकी भविष्यवाणी सच साबित होगी।
अब अगर इनके किसी परिचित ने कोई काम बिना पूछे कर लिया, फिर तो शत -प्रतिशत उस कार्य में विघ्न पड़ना तय है!
‘अरे साहब, देख लेना, ज्यादा चलने वाला नहीं है... अभी हवा में उड़ रहे हैं ना? नीचे आ जाएंगे दो दिन में... लिख लो!’
हमारे मोहल्ले में एक नई-नई शादी हुई।
इन्होंने भविष्यवाणी कर दी- ‘देख लेना, दस दिन में तलाक! अरे भई, विजातीय लड़की है, इसे अपने जात के संस्कार नहीं मालूम, कहां निभेगी? लिख लो, दस दिन से ग्यारह नहीं होंगे!’
महीने गुजर गए...
रोज ये उस घर में चाय पीकर आते, संभावनाओं की कोई चिंगारी मिले तो उसे भड़काने को तैयार रहते।
आखिर एक दिन भागे-भागे आए- ‘देखा साहब! मैंने कहा था ना, लड़की भाग गई!’
मैंने हंसते हुए कहा- ‘अरे यार, भागी नहीं है! उसे कंपनी की तरफ से वर्किंग वीजा मिला है दो महीने के लिए... तुम भी न!’
वो मायूस हो गए...
अगर इस प्रकार भविष्यवाणियां गलत होने लगीं, तो भगवान से विश्वास ही उठ जाएगा इनका!
किसी भी वन डे मैच में ये खेल एक्सपर्ट के बाप बन जाते हैं। गेंदबाज से ज्यादा अनुभवी और बल्लेबाज से ज्यादा रणनीतिकार!
‘अरे भाई, ये बैटिंग नहीं कर सकता! ये आउट होगा! लिख के ले लो?’
और अगर चौका लग गया?
‘कोई बात नहीं, अभी कौन सा खेल पूरा हुआ है? बजा लो सालों तालियां! आखिरी ताली तो मैं ही बजाऊंगा तुम्हारे मुंह पर! बस एक बार आउट हो जाने दो!’
आखिर टीम इंडिया जीत गई! लोग खुशियां मना रहे हैं... और ये? (सुमन सागर)