भारतीय सेनाध्यक्ष के बयान का मतलब क्या है ?

सेनाध्यक्ष उपेंद्र द्विवेदी का हालिया बयान, ‘जल्द हो सकता है एक और खतरनाक युद्ध और दुश्मन ज़रूर किसी के साथ आयेगा..’। एक ऐसे समय पर आया है जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर अमरीका के दौर पर हैं और पहली बार अमरीका की धरती से किसी सैन्य अधिकारी ने किसी देश को परमाणु हमले की धमकी दी है। हालांकि भारतीय सेनाध्यक्ष का बयान 4 अगस्त, 2025 को ही आ गया था, जबकि आसिम मुनीर ने भारत को यह धमकी 10 अगस्त 2025 को दी है। लेकिन इन दोनों के बीच जो खतरनाक आशंका की सघनता है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्या कुछ हो सकता है। यह तो सभी मानेंगे कि देश के सेनाध्यक्ष का बयान कोई सियासी जुमला नहीं होता है। उन्होंने अनुभव, दूरदर्शिता, सुराग एवं सूचनाओं की कसौटी पर परखकर ही यह बात कही होगी। जाहिर है, यदि देश के सेनाध्यक्ष यह स्वीकरते हैं कि जल्द ही हम एक पूर्ण पर गैर पारंपरिक युद्ध के लिये जा सकते हैं तो इसे अटकल नहीं सच मानना होगा। 
सेना, सरकार, उद्यम-उद्योग संक्षेप में कहें से तो समूचा देश इस जंग में चाहे अनचाहे शामिल होगा। उन्होंने कहा भी है कि यह नई जेनेरेशन का युद्ध सेना ही नहीं जनता भी लड़ेगी। सेनाध्यक्ष जैसे शीर्ष सैन्य पुरुष द्वारा कही इस बात को एक गंभीर और स्पष्ट संकेत समझना कोई भूल नहीं होगी और मान लेना होगा कि देश जंग के मुहाने पर है। 4 अगस्त को दिया उपेंद्र द्विवेदी का यह बयान 10 अगस्त को जारी किया गया, सियासी तौर पर सरगर्मियां पैदा करेगा। इससे एक दिन पहले वायुसेना प्रमुख के बयान पर भी प्रश्न उठे और सत्ता पक्ष ने माकूल जवाब दिये। सेना प्रमुख का बयान जो वस्तुत: वायुसेना प्रमुख की बात को ही आगे बढ़ाता, बल देता है, उस पर भी सवाल उठने लाज़िमी हैं। सप्ताह भर पुराने बयान को तकरीबन ताजे बयान के तुरंत बाद रिलीज़ करने का मंतव्य, दोनों के द्वारा खुली सरकारी छूट, पहली बार नेतृत्व में राजनीतिक स्पष्टता देखने की टेक और बहुत दिन बीतने पर किए जा रहे दावे इत्यादि को लेकर विपक्षी राजनीति कर सकते हैं पर सेनाध्यक्ष की इस बात को नकारने का कोई ठोस तर्क उनके पास नहीं कि ऑपरेशन सिंदूर ने पूरे देश को एक सूत्र में बांध दिया और भविष्य में हमें एक निर्णायक युद्ध में जाना पड़ेगा। 
सेनाध्यक्ष ने ये सारगर्भित बातें आम जनता से ही नहीं सेना और सरकार को लेकर राजनीति करने वालों को भी सचेत, सतर्क करने के लिए भी कही हैं। पाकिस्तान विगत से सबक नहीं सीखता। उसे ऑपरेशन सिंदूर’ ने पाठ पढ़ाया, सोचना बेमानी है। पाक सेना और सरकार भारतीय सेना द्वारा नष्ट आतंकी ठिकानों को फिर से बना, बसा चुकी है, बहावलपुर, गढ़ मुरीदके, मुजफ्फराबाद वगैरह के अड्डों के पुनर्निर्माण के लिए सेना ने अपने आर्मी वैल्फेयर फंड से करोड़ों रुपये बांटे हैं। आतंकियों को फिर खड़ा कर राजस्थान, पंजाब के रास्ते घुसपैठ की भी योजना है। साफ है कि सरकार, सेना और आतंकी संगठनों की सांठगांठ ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बावजूद जारी है और वे फिर से भारत विरोधी कार्रवाइयों में जुटे हैं। आसिम मुनीर अपने बयानों में कहते हैं, ‘भारत सिंधु नदी पर बांध बनाएगा तो पाकिस्तान 10 मिसाइलों से उसे नष्ट कर देगा’ और ‘पाकिस्तान के अस्तित्व पर खतरा हुआ तो वे पूरी दुनिया को परमाणु युद्ध की चपेट में लेने से गुरेज नहीं करेंगे’।
यह भभकी सही पर मुनीर की मंशा समझी जा सकती है। मुनीर पाकिस्तान में सियासी तौर पर कमजोर पड़ते ही पूर्ववर्तियों की तरह भारत के साथ सैन्य झड़प का दुस्साहसी फैसला ले सकते हैं। फिर स्थितियां ऑपरेशन सिंदूर के भाग दो जारी होने की बन जाएंगी। कुछ कह सकते हैं कि राष्ट्र या व्यक्ति के जीवन में कभी-कभी अस्तित्व, अस्मिता अथवा आत्म-सम्मान के लिए युद्ध अनिवार्य हो जाता है, तो इससे बचने की बजाए स्वीकारना चाहिये। 
पाकिस्तान से एक निर्णायक युद्ध हो और हम अपनी ताकत से उसे इस कदर खौफज़दा कर दें कि फिर कोई पाकी हुक्मरान इस बावत सोच भी न सके। परन्तु साथ यह भी सत्य है कि सेनाध्यक्ष के बयान के बाद आमजन को युद्ध की आशंका किंचित भयाक्रांत कर सकती है क्योंकि युद्ध कोई भी पक्ष जीते हारती हमेशा जनता ही है। सेनाध्यक्ष का उद्बोधन राष्ट्रवाद को पोषित करने के लिए स्वागत योग्य है, पर समग्रता में देखें तो युद्ध तभी होना चाहिये जब सभी विकल्प समाप्त हो जाएं। सेनाध्यक्ष को अपने राजनीतिकों, कूटनीतिकों पर यकीन रखना होगा। नि:संदेह मुकाबले में भारत हावी, प्रभावी, विजयी होगा लेकिन नुकसान हमारा भी होगा। दुनिया देख रही है कि छोटे देश किस तरह से दूसरों की मदद के जरिये युद्ध को लंबा खींचकर बड़े देशों को किस कदर परेशान कर रहे हैं।   
नैतिक-राजनीतिक दृष्टि से निर्णायक युद्ध किसी भी तरह ‘उचित’ नहीं कहा जा सकता। अरबों रुपये प्रति दिन की लागत वाली लंबी लड़ाई हमारे विकास-लक्ष्यों पर पानी फेर देगी। रक्षा व्यय तेज़ी से बढ़ेगा, विकास के मद में किए जाने वाले खर्चों में कटौती होगी तो सार्वजनिक निवेश, शिक्षा, स्वास्थ्य पर दबाव और कज़र् बढ़ेगा, जनता दुश्वारियां झेलेगी उसका जीवन युद्धग्रस्त हो जाएगा। हम विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर हैं, बेशक युद्ध प्रधानमंत्री के इस सपने को बरसों पीछे छोड़ देगा। लंबी लड़ाई के दौरान सकल घरेलू उत्पाद गिरेगा, उत्पादन, निवेश और मानव पूंजी पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा, बढत थमेगी तो इनकी वार्षिक प्रगति धीमी हो सकती है। इस तरह लड़ाई पूर्ण युद्ध के तौर पर न हो और लंबी न चले तो भी छोटे-मध्यम संघर्ष में भी लक्ष्य हासिल करने की समय सीमा कुछ साल बढ़ जाएगी। 
चीन सीधे भारत-पाक के युद्ध में कब और किस रूप में खुलकर हस्तक्षेप करेगा, यह तो अंतर्राष्ट्रीय-राजनीतिक समीकरण यह तय करेंगे, पर वह भीतर ही भीतर सामरिक-सहायता जैसे लॉजिस्टिक्स, उन्नत किस्म की मिसाइलें, ड्रोन इत्यादि की अबाध आपूर्ति के अलावा अपने उपग्रहों से प्राप्त सटीक खुफिया जानकारी से पाकिस्तान को मदद करता रहेगा। खुले दुश्मन से ज्यादा खतरनाक और नुकसानदायक छिपा शत्रु होता है। मतलब हमें युद्ध की स्थिति में बहु-आयामी सावधानी बरतनी होगी। 
 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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