नए बाग कैसे लगाए जाएं ?

फलों के माध्यम से फसली विभिन्नता लाने का बहुत महत्व है। मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी फलों का इस्तेमाल बेहद ज़रूरी है। फलों की प्रति सदस्य खपत स्वास्थ्य के पक्ष से पर्याप्त मात्रा से बहुत कम है। फलों में स्वास्थ्य के लिए आवश्यक विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडैंट उपलब्ध होते हैं, परन्तु फल महंगे होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति के लिए उनकी खपत बढ़ाना बहुत कठिन है। बढ़िया किस्म का ‘ए’ ग्रेड आम 300 रुपये प्रति किलो बिक  रहा है, अंगूर 400 रुपये प्रति किलो, आलूबुखारा 200 रुपये प्रति किलो, अनार तथा माल्टा 300 रुपये प्रति किलो, ड्रैगन फ्रूट 150 रुपये प्रति किलो, सेब 150 से 300 रुपये प्रति किलो तथा चैरी का डिब्बा 700 रुपये प्रति किलो है। तरबूज की कीमत 60 रुपये प्रति किलो, नाशपाती 100 से 150 रुपये प्रति किलो तथा कीवी (बढ़िया गोल्डन) 300 रुपये पीस और आम 150 रुपये प्रति पीस है।  
चाहे भारत विश्व में फलों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है, परन्तु पंजाब में अभी भी इनकी काश्त बढ़ाने की ज़रूरत है, विशेषकर फसली विभिन्नता के पक्ष से। इस समय पंजाब में फलों की काश्त के अधीन लाख से भी कम रकबा है। आजकल का मौसमी फल आम है, जो आम तौर पर कैल्शियम कार्बाइड मसाले का इस्तेमाल करके पकाया जाता है। इसका इस्तेमाल करना ‘प्रीवैंशन ऑफ फूड एडल्ट्रेशन एक्ट’ के तहत वर्जित है। इसके बावजूद व्यापारी तथा ठेकेदार इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें एस्टलीन नामक गैस होती है। यह आक्सीजन की सप्लाई की मात्रा को कम करके नर्वस सिस्टम पर दुष्प्रभाव डालती है। इसकी गैस से पकाए गए फल मुंह में छाले, अल्सर तथा पेट में जलन पैदा करते हैं।
पंजाब की भूमि तथा वातावरण आम की काश्त के लिए बेहद अनुकूल हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) (आई.सी.ए.आर.) द्वारा पुरानी अम्रपाली तथा मलिका किस्मों के अतिरिक्त हाईब्रिड किस्में पूसा सूर्या, पूसा अरुणिमा, पूसा पातंबर, पूसा लालिमा, पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ आदि भी विकसित की गई हैं। इन किस्मों का पुरानी किस्मों के मुकाबले अपना अलग स्वाद है। अमरूद की काश्त बढ़ाने के लिए भी बागवानी विभाग प्रोत्साहन दे रहा है। बागवानी विभाग बागवानी मिशन की योजनाओं के माध्यम से बागवानों को आवश्यक मदद तथा तकनीकी सहायता दे रहा है। इसके अतिरिक्त आम तथा अन्य फलों के बाग लगाने के लिए भी बागवानी विभाग द्वारा किसानों को मदद दी जा रही है।  
लोगों में घरों में बागीचे बनाने का शौक बढ़ रहा है, परन्तु उनको पूरी तकनीकी जानकारी न होने के कारण जब पौधे बढ़ते नहीं तो वे मायूस हो जाते हैं। इसलिए पूरी तकनीकी जानकारी की ज़रूरत है, जिसके लिए बागवानी विभाग ने प्रसार सेवा स्थापित की हुई है, परन्तु वह ज़रूरत से बहुत कम है। इसे बढ़ाने की आवश्यकता है। फसली विभिन्नता में भी फलों की काश्त की भूमिका बढ़ रही है। बागवानी विभाग से मिट्टी, पानी की जांच करवाने, नए लगने वाले बागों की रूपरेखा तैयार करने, बीमारियों तथा कीड़े-मकौड़ों के हमले रोकने के लिए इलाज करने संबंधी जानकारी दी जाती है। नए बाग लगाने से पहले बागवानों को हवा रोधी बाड़ खेतों के चारों ओर लगा देनी चाहिए। इसके लिए देसी आम, जामुन, बिल, देसी आंवला आदि के पेड़ चुने जा सकते हैं। ऐसा करने से बागों को गर्म हवाओं से बचाया जा सकेगा और आंधी में शाखाओं से फल नहीं टूटेंगे। ऐसा करने से आय में वृद्धि होगी। नया बाग लगाते समय निर्धारित अंतराल पर 3×3 फुट के गड्ढे 15 दिन पहले खोद लेने चाहिएं। इन गड्ढों को एक सप्ताह धूप लगने के बाद ही भरा जाए। गड्ढों में पौधे लगाने से पहले पानी दे देना चाहिए ताकि मिट्टी बैठ जाए और इसके तीन-चार दिन बाद पौधे लगा देने चाहिएं। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि जब पौधे नर्सरी से लाए जाएं तो ट्राली या ट्रैक्टर में पराली या मिट्टी डाल ली जाए ताकि पौधों की गाची न टूटे और पौधे बचे रहें। पतझड़ वाले पौधे जैसे आड़ू, नाशपाती, बग्गूगोशा, अंगूर, अनार, आलू बुखारा, फाल्सा तथा अंजीर आदि नर्सरी से लाते समय उनकी जड़ों को बोरी से लपेट देना चाहिए। जितने पौधों की ज़रूरत है, उससे 10 प्रतिशत अधिक खरीदें ताकि जो पौधे मर जाएं उनके स्थान पर अन्य पौधे लगाए जा सकें। पौधे लगाने के बाद दीमक की रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरोफास दवाई वर्ष में कम से कम दो बार इस्तेमाल कर लेनी चाहिए। जुलाई-अगस्त तथा दिसम्बर में इस्तेमाल करना उचित होगा। नए लगाए गए पौधों में से कोई पौधा टेढ़ा हो जाए तो उसे छड़ी का सहारा देकर सीधा कर देना चाहिए। अधिक गर्मी तथा सर्दी से पौधों को पराली से ढंक कर बचाना चाहिए।

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