युवा : वर्तमान की क्रांति एवं शांति के वाहक
आज अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष
अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस केवल एक कैलेंडर की तारीख नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि आज की दुनिया में परिवर्तन का सबसे बड़ा वाहक युवा हैं। यह दिन संयुक्त राष्ट्र ने युवाओं के अधिकार, अवसर और योगदान को मान्यता देने के लिए तय किया है, लेकिन इसकी वास्तविक सार्थकता तभी है जब हम युवाओं को केवल ‘भविष्य के नेता’ कहकर टालें नहीं, बल्कि उन्हें वर्तमान का निर्णायक शक्ति केंद्र मानें। आज भारत की आबादी में लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा 35 वर्ष से कम उम्र का है। यह केवल सांख्यिकीय तथ्य नहीं, बल्कि संभावनाओं का महासागर है। लेकिन इन संभावनाओं को दिशा देने के लिए केवल शिक्षा या नौकरी पर्याप्तक नहीं; दृष्टि, मूल्यों और संकल्प की भी उतनी ही आवश्यकता है। क्योंकि युवा क्रांति का प्रतीक है, ऊर्जा का स्रोत है, इस क्रांति एवं ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक एवं सृजनात्मक हो, इसी ध्येय से सारी दुनिया प्रतिवर्ष में सन् 2000 में अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन आरम्भ किया गया था। यह दिवस मनाने का मतलब है कि युवाशक्ति का उपयोग विध्वंस में न होकर निर्माण में हो। युवा, शांति और सुरक्षा पर सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 2250 (9 दिसंबर 2015) शांति को बढ़ावा देने और उग्रवाद का मुकाबला करने में युवा शांति निर्माताओं को शामिल करने की तत्काल आवश्यकता की अभूतपूर्व स्वीकृति का प्रतिनिधित्व करता है, और स्पष्ट रूप से युवाओं को वैश्विक प्रयासों में महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थान देता है।
स्वामी विवेकानंद का आह्वान आज भी गूंजता है-‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।’ इस अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर हमें न केवल युवाओं की सराहना करनी है, बल्कि उन्हें जिम्मेदारी सौंपनी है, क्योंकि वे सिर्फ कल के नहीं, बल्कि आज के भी निर्माता हैं। स्वामी विवेकानन्द ने भारत के नवनिर्माण के लिये मात्र सौ युवकों की अपेक्षा की थी। क्योंकि वे जानते थे कि युवा ‘विजनरी’ होते हैं और उनका विजन दूरगामी एवं बुनियादी होता है। उनमें नव निर्माण करने की क्षमता होती है। नया भारत निर्मित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी युवाशक्ति को आगे लाना होगा। युवा किसी भी देश का वर्तमान और भविष्य हैं। वो देश की नींव हैं, जिस पर देश की प्रगति और विकास निर्भर करता है। लेकिन आज भी बहुत से ऐसे विकसित और विकासशील राष्ट्र हैं, जहां नौजवान ऊर्जा व्यर्थ हो रही है।
आज के युवा के सामने बेरोज़गारी, मानसिक तनाव, नशे की लत, डिजिटल व्यसन, और सामाजिक असमानता जैसी चुनौतियां हैं लेकिन इन्हीं के बीच नवाचार, स्टार्टअप संस्कृति, डिजिटल क्रांति, और वैश्विक मंच पर पहचान बनाने के अनगिनत अवसर भी हैं। ज़रूरत है-आत्मनिर्भर सोच की, नैतिकता आधारित नेतृत्व की और सतत विकास के प्रति प्रतिबद्धता की। जब जलवायु परिवर्तन, शांति स्थापना, मानवाधिकार, और वैश्विक न्याय जैसे मुद्दों की बात आती है, तो दुनिया युवाओं की आवाज सुनना चाहती है। स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग से लेकर भारत के अनगिनत सामाजिक नवप्रवर्तकों तक-युवा यह साबित कर रहे हैं कि उम्र कोई बाधा नहीं, दृष्टि और साहस ही असली पूंजी है। युवाओं के हाथ में केवल भविष्य की मशाल नहीं, बल्कि वर्तमान की बागडोर भी है। अगर वे खुद को केवल दर्शक बनाकर रखेंगे, तो इतिहास उनके बिना आगे बढ़ जाएगा लेकिन अगर वे सक्रिय भागीदारी करेंगे, तो इतिहास उन्हें अपने पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज करेगा।
अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हुए मूल प्रश्न है कि क्या हमारे आज के नौजवान भारत को एक सक्षम देश बनाने का स्वप्न देखते हैं? या कि हमारी वर्तमान युवा पीढ़ी केवल उपभोक्तावादी संस्कृति से जन्मी आत्मकेन्द्रित पीढ़ी है? दोनों में से सच क्या है? दरअसल हमारी युवा पीढ़ी महज स्वप्नजीवी पीढ़ी नहीं है, वह रोज यथार्थ से जूझती है, उसके सामने भ्रष्टाचार, आरक्षण का बिगड़ता स्वरूप, महंगी होती जाती शिक्षा, कैरियर की चुनौती और उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को कुचलने की राजनीति विसंगतियां जैसी तमाम विषमताओं और अवरोधों की ढेरों समस्याएं भी हैं। उनके पास कोरे स्वप्न ही नहीं, बल्कि आंखों में किरकिराता सच भी है। इन जटिल स्थितियों से लौहा लेने की ताकत युवक में ही हैं। क्योंकि युवक शब्द क्रांति का प्रतीक है। विचारों के नभ पर कल्पना के इन्द्रधनुष टांगने मात्र से कुछ होने वाला नहीं है, बेहतर जिंदगी जीने के लिए मनुष्य को संघर्ष आमंत्रित करना होगा। वह संघर्ष होगा विश्व के सार्वभौम मूल्यों और मानदंडों को बदलने के लिए। सत्ता, संपदा, धर्म और जाति के आधार पर मनुष्य का जो मूल्यांकन हो रहा है मानव जाति के हित में नहीं है। दूसरा भी तो कोई पैमाना होगा, मनुष्य के अंकन का, पर उसे काम में नहीं लिया जा रहा है। क्योंकि उसमें अहं को पोषण देने की सुविधा नहीं है। क्योंकि वह रास्ता जोखिम भरा है। क्योंकि उस रास्तें में व्यक्तिगत स्वार्थ और व्यामोह की सुरक्षा नहीं है। युवा पीढ़ी पर यह दायित्व है कि संघर्ष को आमंत्रित करे, मूल्यांकन का पैमाना बदले, अहं को तोड़े, जोखिम का स्वागत करे, स्वार्थ और व्यामोह से ऊपर उठे।