जम्मू-कश्मीर की दर्जाबंदी
6 वर्ष पहले 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर के संबंध में नरेन्द्र मोदी सरकार ने एक बेहद अहम फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म करके लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्र शासित राज्यों में विभाजित करने की घोषणा की थी। पाकिस्तान को भी यह दिया गया कड़ा और स्पष्ट सन्देश था, जिसके बाद उसने भारत के साथ शेष बचे संबंध तोड़ने की भी घोषणा कर दी थी। विगत अगस्त को इस संबंध में जम्मू-कश्मीर की प्रांतीय पार्टियों ने अपने-अपने ढंग से केन्द्र द्वारा लिए गए इस फैसले का विरोध करते हुए रैलियों का आयोजन किया था। इनमें प्रशासन चला रही नैशनल कान्फ्रैंस के साथ-साथ महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपल्ज़ डैमोक्रेटिक पार्टी, कांग्रेस की स्थानीय इकाई और वामपंथी पार्टी सहित कुछ अन्य छोटी पार्टियां शामिल हुई थीं। इनकी ओर से प्रदेश को पुन: विशेषाधिकार देने वाली धारा 370 को बहाल करने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की भी मांग की गई थी।
6 वर्ष पूर्व इस धारा को खत्म करने की घोषणा के बाद वहां की कई पार्टियों के साथ-साथ अन्य व्यक्तियों ने इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय तक भी सम्पर्क किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह स्पष्ट कर दिया था कि इस धारा को देश के राष्ट्रपति खत्म करने की शक्ति रखते हैं परन्तु इसके साथ ही मुख्य न्यायालय ने यह भी कहा था कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव करवाये जाने ज़रूरी हैं। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने समय सीमा भी निश्चित कर दी थी, जिसके आधार पर केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 2024 में यहां चुनाव करवाए गए थे। फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली ‘नैशनल कान्फ्रैंस’ को बहुमत प्राप्त हुआ था और लगभग 9 मास पूर्व उमर अब्दुल्ला इस केन्द्र शासित राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। चाहे अभी तक भी कई स्थानीय पार्टियां विशेषाधिकारों की मांग कर रही हैं परन्तु ज्यादातर पार्टियों की अब मुख्य मांग जम्मू-कश्मीर को राज्य का पूर्ण दर्जा दिलाने की रह गई है।
नि:संदेह पिछले 9 मास में उमर अब्दुल्ला की सरकार ने यहां बेहतर ढंग से प्रशासन चलाया है। पहलगाम में हुए हमले के संबंध में भी अन्य पार्टियों के साथ-साथ उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली ‘नैशनल कान्फ्रैंस’ ने पाकिस्तान का संरक्षण प्राप्त आतंकवादियों द्वारा की गई इस शर्मनाक कार्रवाई की कड़ी निंदा की थी। उस समय जम्मू-कश्मीर में भारी संख्या में लोग आतंकवादियों के इस कृत्य के विरुद्ध गलियों, बाज़ारों में उतर आए थे। आज यहां के लोगों की मानसिकता बड़ी सीमा तक बदली हुई दिखाई देती है। चाहे केन्द्र सरकार अभी भी आतंकवादी संगठनों का अपने सुरक्षा बलों द्वारा कड़ा मुकाबला कर रही है परन्तु इसके साथ-साथ अब ज़मीनी हालात बड़ी सीमा तक बदल चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान यहां प्रधानमंत्री और गृह मंत्री भी बार-बार राज्य का दर्जा बहाल करने की बात कहते रहे हैं। इस संबंध में उमर अब्दुल्ला ने देश की भिन्न-भिन्न पार्टियों को एक पत्र भी लिखा है कि वे चल रहे मानसून अधिवेशन में इस संबंध में बिल पेश करके उसे पास करवाएं।
हम समझते हैं कि अब जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया ही जाना चाहिए। इसके साथ यहां के लोग स्वयं को मानसिक तौर पर देश के साथ और भी जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। इसमें की गई देरी कई पक्षों से नकारात्मक प्रभाव वाली ही सिद्ध होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द