ट्रम्प को संदेश
इस वर्ष जनवरी में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपने देश के हितों को प्राथमिकता देते हुए विश्व भर से अमरीका में आते सामान पर अधिक से अधिक कर (टैरिफ) लगाने की घोषणा करके सभी देशों के साथ अलग-अलग स्तर पर व्यापारिक आदान-प्रदान के लिए समझौते किए हैं। बहुत बड़े और छोटे देशों पर तो अमरीकी राष्ट्रपति ने अपने तौर पर ही आयात टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी थी। भारत पर भी उसने अपने तौर पर सामान के आयात में 25 प्रतिशत टैरिफ (टैक्स) लगाने की घोषणा कर दी थी।
द्विपक्षीय व्यापार के लिए दोनों देशों की लम्बी और विस्तारपूर्वक बैठकें भी होती रही हैं, परन्तु यह अभी किसी परिणाम तक नहीं पहुंचीं। विशेष रूप से कृषि और डेयरी फार्मिंग से संबंधित अपने उत्पादों पर अमरीका भारत द्वारा टैरिफ में कमी चाहता है। भारत द्वारा अमरीका के इन कृषि उत्पादों पर इसलिए अधिक टैरिफ लगाया जाता रहा है, ताकि इन अमरीकी वस्तुओं की भारत के बाज़ारों में आने से भारत के अपने कृषि उत्पादों पर प्रभाव न पड़े। आपसी व्यापारिक समझौता सफल न होने के कारण दोनों देशों में दूरियां भी बढ़ती दिखाई दे रही हैं। इससे पहले पहलगाम पर आतंकवादी हमले के बाद और भारत द्वारा पाकिस्तान पर की गई कार्रवाई के समय जिस तरह की बयानबाज़ी डोनाल्ड ट्रम्प ने की थी, वह भारत के हित में नहीं थी। इसके लिए केन्द्र सरकार को कई बार उत्तरदायी भी होना पड़ा था। ट्रम्प अक्सर अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर ऐसी टिप्पणियां करते हैं जो बड़ा विवाद पैदा करने वाली होती हैं। यही कारण है कि वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दरपेश गम्भीर मामलों को हल करवाने में तो सफल नहीं हो सके परन्तु इसी दौरान उनकी ज्यादातर देशों के साथ दूरियां बढ़ती दिखाई दी हैं। ट्रम्प की व्यापारिक नीतियों का प्रभाव विश्व भर में देखा जा सकता है। यही कारण है कि आज ज्यादातर देश अमरीका से दूरी बना कर व्यापारिक आदान-प्रदान में आपसी सहमति वाले समझौते करने लगे हैं।
चीन और ब्राज़ील जैसे देशों ने इस दिशा में बड़े कदम उठाए हैं। ब्रिटेन और भारत ने लम्बी बातचीत के बाद आपसी सहमति से दोनों देश के लिए लाभदायक सिद्ध होने वाला व्यापारिक समझौता कर लिया है। इससे भी अमरीका को एक स्पष्ट संदेश दिया गया है। ज्यादातर यूरोपियन देश भी नए सिरे से व्यापारिक संबंधों के नवीनीकरण की नीति पर चल रहे हैं। इसी दौरान ट्रम्प द्वारा भारत को रूस से कच्चा तेल न मंगवाने की बात पर दिया जा रहा ज़ोर बेहद आपत्तिजनक कहा जा सकता है। भारत रूस के साथ विगत लम्बी अवधि से न सिर्फ हर तरह का व्यापार ही करता आया है, अपितु दोनों देशों के अक्सर बेहद नज़दीकी संबंध भी बने रहे हैं। दोनों देशों के प्रमुख लगातार आपस में मिलते भी रहे हैं। पहले सोवियत यूनियन और फिर रूस ने भारत की हर कठिन समय में सहायता ही नहीं की अपितु इसके साथ खड़ा होने को प्राथमिकता दी है। ऐसी स्थिति में अमरीकी राष्ट्रपति का ऐसा आदेश भारत को स्वीकार नहीं हुआ। इसी सन्दर्भ में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा यह बयान सामने आया है कि भारत के लिए अपने लोगों के विशेष रूप से किसानों, मछुआरों और पशु पालकों के हक अधिक सर्वोच्च हैं और यह कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर चलने को प्राथमिकता देता रहेगा। ट्रम्प द्वारा भारत को रूस से तेल लेने के विरुद्ध सबक सिखाने के लिए 25 प्रतिशत टैक्स और लगाने की घोषणा की गई है। इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी का संदेश बड़ा स्पष्ट और दृढ़ता वाला कहा जा सकता है। भारत के पास अब ऐसा अवसर भी है कि वह अपने हितों के अनुसार विश्व के अन्य देशों के साथ आपसी संबंधों को प्रत्येक क्षेत्र में और भी आगे ले जाने का यत्न करे। नि:संदेह आज भारत ऐसी स्थिति में ज़रूर है, जहां वह अपनी अन्तर्राष्ट्रीय रणनीति को प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ाने की समर्था रखता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द