डेरा प्रमुख की फरलो
सिरसा के डेरा प्रमुख राम रहीम को एक बार फिर फरलो की इजाज़त दे दी गई है। इसने व्यापक स्तर पर आश्चर्य और परेशानी पैदा की है। डेरा प्रमुख कुछ बेहद गम्भीर आरोपों में 20 वर्ष की सज़ा काट रहा है। उसे विशेष न्यायालय ने 2017 में उम्र कैद की सज़ा सुनाई थी। उस पर पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति की हत्या करवाने का आरोप लगा था। इसी तरह अपनी दो शिष्याओं के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में उसे 20 वर्ष की कैद की सज़ा सुनाई गई थी। अब वह रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है परन्तु प्रतीत होता है कि जैसे डेरा प्रमुख जेल में बंद ही न हो। समय-समय पर वह बाहर आकर मटरगश्ती करने का प्रभाव देता है। वह किसी न किसी बहाने अपने प्रभाव से फरलो पर आ जाता है। कुछ ही वर्षों में उसे 367 दिन की पैरोल (फरलो) मिल चुकी है।
केन्द्र और हरियाणा सरकारों की ओर से डेरा प्रमुख पर की जा रही ऐसी दयालुता कई तरह के सन्देहों और सवालों को जन्म देती है। मात्र 8 वर्ष की अवधि में उसके 14वीं बार पैरोल पर आने से भारतीय न्यायिक प्रणाली पर भी प्रश्न-चिन्ह लगता है। यह सब कुछ सम्बद्ध सरकारों की मिलीभुगत से ही सम्भव हो सकता है। यह भी कि उसकी ज्यादातर फरलो का समय हरियाणा, पंजाब या अन्य किसी प्रदेश के चुनावों के साथ मिलता है। राम रहीम का हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रभाव माना जाता है। उसके अनुयायियों की भी बड़ी संख्या है, जो उसके कट्टर श्रद्धालु हैं। ऐसा चरित्र और ऐसी श्रद्धा का यह एक अनोखा उदाहरण कहा जा सकता है। आज भी उस पर लगभग 400 अनुयायी साधुओं को नपुंसक बनाने के मामले में सी.बी.आई. की विशेष अदालत में मामला चल रहा है। साध्वियों के साथ दुष्कर्म, एक पत्रकार की हत्या, अपने ही डेरे के मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या और अपने ही अनुयायियों को नपुसंक बनाने के ऐसे आरोप हैं जो बेहद गम्भीर श्रेणी में आते हैं। ऐसा व्यक्ति चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, उस पर सरकारों की ‘मेहरबानी’ देश के समूचे तंत्र को कमज़ोर और ढीला कर देती है।
विगत लम्बी अवधि से डेरा प्रमुख का सिख समाज से बड़ा विवाद चलता रहा है। उस पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि उसने दशम गुरु की नकल का ढोंग रचाया था। उसके विरुद्ध बहुत बड़ा तूफान उठा था परन्तु उस समय भी डेरा प्रमुख इस बात पर पश्चाताप न करने की अपनी ज़िद्द पर अडिग रहा था। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करवाने के भी उस पर गम्भीर आरोप लगे हुए हैं। इसी कारण बाद में घटित घटनाक्रम के कारण स. प्रकाश सिंह बादल वाले अकाली दल के प्रशासन को भी उत्तरदायी होना पड़ा था, जिसका प्रभाव अभी भी महसूस किया जा रहा है। बार-बार यह भी सवाल उठ रहा है कि एक तरफ जहां डेरा प्रमुख को लगातार पैरोल दी जा रही है, दूसरी तरफ बंदी सिंहों को जो दशकों से जेल की सलाखों के पीछे बंद हैं, की सज़ाएं पूरी होने के बाद भी उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा। यह भी कि अमृतपाल सिंह और उसके साथियों द्वारा की गई कार्रवाइयों को आधार बना कर उन्हें सज़ा दिलाने की बजाय एन.एस.ए. जैसे अन्य अनेक तरह के मामले दर्ज कर दिए गए हैं जिससे वह शीघ्र कहीं बाहर न आ सकें। समय की संबंधित सरकारों को इस संबंध में अपनी ईमानदारी वाली सोच अपनाने की ज़रूरत होगी, ताकि न्याय का तराज़ू असंतुलित हुआ दिखाई न दे।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द