भारत ‘मृत’ नहीं, जीवंत अर्थ-व्यवस्था

भारत केवल एक भूगोल नहीं बल्कि एक निरन्तर सभ्यता है। इस सभ्यता का मूल चरित्र सनातन है जिसका अर्थ है सस्टेनेबल, शाश्वत, स्थायी, निरन्तर और अनश्वर। यही विशेषता भारत की अर्थ-व्यवस्था में भी परिलक्षित होती है। भारत की अर्थ-व्यवस्था हमेशा से जीवंत रही है क्योंकि इसकी जड़ें प्रकृति, सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक मूल्यों में गहराई से पैठी हुई हैं। इसका आधार सनातन अर्थ-शास्त्र रहा है। भारत का चरित्र हमेशा से प्रकृति संरक्षण और पारिस्थितिकीय संतुलन को महत्व देता रहा है। धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवहार में यह स्पष्ट दिखता है पेड़ों एवं नदियों का सम्मान, कृषि और स्थानीय उत्पादन का प्रोत्साहन, ये सब भारत के आर्थिक डीएनए का हिस्सा हैं।
भारतीय समाज में उत्सवधर्मिता एक अद्वितीय तत्व है। हर मौसम में त्योहार, हर महीने कोई न कोई आयोजन, यह न केवल सांस्कृतिक पहचान है बल्कि यह अर्थ-व्यवस्था के निरन्तर गतिशील रहने का रहस्य भी है। शादियों और त्योहारों का मौसम भारत की अर्थ-व्यवस्था में नियमित अंतराल पर नई जान डालता है। यही कारण है कि यहां मंदी का असर भी सीमित रहता है। यदि कोई कहता है कि भारत की अर्थ-व्यवस्था ‘मृत अर्थ-व्यवस्था’ है तो वह भारत के सनातन अर्थचरित्र को नहीं समझता। भारत सदियों तक आत्मनिर्भर रहा है और आज भी सर्व-सक्षम है। वर्तमान भारत आज भी एक गतिशील अर्थ-व्यवस्था है। आज़ादी के बाद भारत ने लम्बा सफर तय किया है। लाइसेंस राज और आयात निर्भरता कम करके भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बन चुका है। 2027 तक भारत के तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने का अनुमान है। यह बदलाव इस बात का प्रमाण है कि भारत बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है।
अगर भारत की अर्थ-व्यवस्था जीवंत नहीं होती तो इतनी विदेशी कम्पनियां भारत में निवेश नहीं करतीं। ग्लोबल ब्रांड भारत में आकर अपने उत्पाद नहीं बेचते। मृत होती अर्थ-व्यवस्था में कोई अपनी दुकान नहीं खोलता। भारत आज भी तेज़ी से बड़ती अर्थ-व्यवस्था है। आज भारत दुनिया के सबसे बड़े और सबसे आकर्षक बाज़ारों में से एक है। विदेशी निवेशकों को मालूम है कि भारत को नज़रअंदाज़ करना असंभव है। यह अब केवल एक बड़ा बाज़ार नहीं, अवसरों का केंद्र भी है। जीसीसी का खुलना इस बात का प्रमाण है। मेक इन इंडिया और डाक जीनव बीमा (पीएलआई) योजनाओं से भारत ने उत्पादन में बड़ी छलांग लगाई है। डिजिटल पेमेंट में भारत दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। यूपीआई एक वैश्विक मॉडल बन गया है और कई देश इसे अपना रहे हैं। रुपे कार्ड, आधार, डिजिटल इंडिया पहल ने भारत को टेक्नोलॉजी-संचालित अर्थव्यवस्था बना दिया है।
भारत की जीवंत अर्थ-व्यवस्था के सात स्तंभ हैं—पहला, सनातन अर्थचरित्र, प्रकृति, संस्कृति और स्थिरता पर आधारित मॉडल। दूसरा, उत्सवधर्मिता, त्योहार और शादियों से निरन्तर आर्थिक प्रवाह। तीसरा डेमोग्राफिक डिविडेंड दुनिया का सबसे बड़ा युवा कार्यबल। चौथा, नवाचार और स्टार्टअप बूम, हर महीने नए यूनिकॉर्न, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम। पांचवां, डिजिटल इंडिया, 1 बिलियन से अधिक इंटरनेट यूजर्स, यूपीआई, आईटी सेक्टर का वैश्विक नेतृत्व। छठा, स्थायी और सबसे तेज़ ग्रोथ। सातवां  वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भूमिका ‘चीन प्लस वन’ स्ट्रेटेजी में भारत सबसे बड़ी पसंद।
अभी हमें इस ताकत और अवसर को कॅश करने के लिए स्वदेशी उपभोग को बढ़ाना है और भारतीय कम्पनियों और ब्रांड्स को वैश्विक पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभानी है। हमें रिसर्च एंड डिवेल्पमेंट पर निवेश बढ़ा ज्यादा से ज्यादा पेटेंट हासिल करना है। अपने हर खोज, विधि और प्रोसेस का पेटेंट हासिल करना है। वैल्यू-एडेड मैन्युफैक्चरिंग में दुनिया में नेतृत्व हासिल करना है। शिक्षा, स्किल और टेक्नोलॉजी में निवेश को प्राथमिकता देनी है।  भारत का भविष्य सुरक्षित है क्योंकि दुनिया की ग्रोथ स्टोरी का केंद्र आज भारत केवल 1.4 अरब उपभोक्ताओं का देश नहीं बल्कि 1.4 अरब रचनाकारों और सृजकों का देश है। बस इसे दृष्टि दिशा और नेतृत्व देने की ज़रूरत है।
भारत की अर्थ-व्यवस्था आने वाले दशक में ग्लोबल ग्रोथ इंजन बनने की राह पर है। भारत का चरित्र सनातन है। यह कभी ‘मृत’ हो ही नहीं सकता और यही उसे स्थायी बनाता है। भारत दुनिया की सबसे शक्तिशाली आर्थिक व्यवस्था बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। 
भारत के बैंकों और नियामकों को यह ध्यान में रखने की ज़रूरत है कि अगर कोई कंपनी या ब्रांड अच्छा कार्य कर रही है तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए है। पूर्व में देखा गया है कि भारत के बहुत से ब्रांड प्रमोटरों की गलती से बंद हो गए क्यूंकि बैंकों ने प्रमोटरों की गलती की सजा कंपनी को दे दी। यहां सरकार की तरफ  से एक सहायता भारत के उभरते ब्रांड और कॉर्पोरेट को चाहिए कि अगर उनका ब्रांड और कारोबार स्थायी है तो कार्रवाई ऐसी हो कि दोषियों को सज़ा तो मिले लेकिन ब्रांड और कंपनी चलती रहे। एक कंपनी और ब्रांड में निवेश सिर्फ पूंजी का नहीं होता, उसके हज़ारों कर्मचारियों और सप्लाई चेन इकोसिस्टम में लगे प्लेयर का होता है। दोषी को सज़ा देने के चक्कर में इन्हें कोई नुकसान न हो तो भारत तेज़ी से आगे बढ़ सकता है। (युवराज)

#भारत ‘मृत’ नहीं
# जीवंत अर्थ-व्यवस्था